Answer
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अनन्तश्चास्मि नागानां वरुणो यादसामहम् | पितृणामर्यमा चास्मि यम: संयमतामहम् ॥29॥ | what is chapter 10 verse 29 in bhagvad gita ? | what is chapter 10 verse 29 in bhagvad gita ?
अनन्तश्चास्मि नागानां वरुणो यादसामहम् | पितृणामर्यमा चास्मि यम: संयमतामहम् ॥29॥ |
प्रह्लादश्चास्मि दैत्यानां काल: कलयतामहम् | मृगाणां च मृगेन्द्रोऽहं वैनतेयश्च पक्षिणाम् ॥30॥ | what is chapter 10 verse 30 in bhagvad gita ? | what is chapter 10 verse 30 in bhagvad gita ?
प्रह्लादश्चास्मि दैत्यानां काल: कलयतामहम् | मृगाणां च मृगेन्द्रोऽहं वैनतेयश्च पक्षिणाम् ॥30॥ |
पवन: पवतामस्मि राम: शस्त्रभृतामहम् | झषाणां मकरश्चास्मि स्रोतसामस्मि जाह्नवी ॥31॥ | what is chapter 10 verse 31 in bhagvad gita ? | what is chapter 10 verse 31 in bhagvad gita ?
पवन: पवतामस्मि राम: शस्त्रभृतामहम् | झषाणां मकरश्चास्मि स्रोतसामस्मि जाह्नवी ॥31॥ |
सर्गाणामादिरन्तश्च मध्यं चैवाहमर्जुन | अध्यात्मविद्या विद्यानां वाद: प्रवदतामहम् ॥32॥ | what is chapter 10 verse 32 in bhagvad gita ? | what is chapter 10 verse 32 in bhagvad gita ?
सर्गाणामादिरन्तश्च मध्यं चैवाहमर्जुन | अध्यात्मविद्या विद्यानां वाद: प्रवदतामहम् ॥32॥ |
अक्षराणामकारोऽस्मि द्वन्द्व: सामासिकस्य च | अहमेवाक्षय: कालो धाताहं विश्वतोमुख: ॥33॥ | what is chapter 10 verse 33 in bhagvad gita ? | what is chapter 10 verse 33 in bhagvad gita ?
अक्षराणामकारोऽस्मि द्वन्द्व: सामासिकस्य च | अहमेवाक्षय: कालो धाताहं विश्वतोमुख: ॥33॥ |
मृत्यु: सर्वहरश्चाहमुद्भवश्च भविष्यताम् | कीर्ति: श्रीर्वाक्च नारीणां स्मृतिर्मेधा धृति: क्षमा ॥34॥ | what is chapter 10 verse 34 in bhagvad gita ? | what is chapter 10 verse 34 in bhagvad gita ?
मृत्यु: सर्वहरश्चाहमुद्भवश्च भविष्यताम् | कीर्ति: श्रीर्वाक्च नारीणां स्मृतिर्मेधा धृति: क्षमा ॥34॥ |
बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्दसामहम् | मासानां मार्गशीर्षोऽहमृतूनां कुसुमाकर: ॥35॥ | what is chapter 10 verse 35 in bhagvad gita ? | what is chapter 10 verse 35 in bhagvad gita ?
बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्दसामहम् | मासानां मार्गशीर्षोऽहमृतूनां कुसुमाकर: ॥35॥ |
द्यूतं छलयतामस्मि तेजस्तेजस्विनामहम् | जयोऽस्मि व्यवसायोऽस्मि सत्वं सत्ववतामहम् ॥36॥ | what is chapter 10 verse 36 in bhagvad gita ? | what is chapter 10 verse 36 in bhagvad gita ?
द्यूतं छलयतामस्मि तेजस्तेजस्विनामहम् | जयोऽस्मि व्यवसायोऽस्मि सत्वं सत्ववतामहम् ॥36॥ |
वृष्णीनां वासुदेवोऽस्मि पाण्डवानां धनञ्जय: | मुनीनामप्यहं व्यास: कवीनामुशना कवि: ॥37॥ | what is chapter 10 verse 37 in bhagvad gita ? | what is chapter 10 verse 37 in bhagvad gita ?
वृष्णीनां वासुदेवोऽस्मि पाण्डवानां धनञ्जय: | मुनीनामप्यहं व्यास: कवीनामुशना कवि: ॥37॥ |
दण्डो दमयतामस्मि नीतिरस्मि जिगीषताम् | मौनं चैवास्मि गुह्यानां ज्ञानं ज्ञानवतामहम् ॥38॥ | what is chapter 10 verse 38 in bhagvad gita ? | what is chapter 10 verse 38 in bhagvad gita ?
दण्डो दमयतामस्मि नीतिरस्मि जिगीषताम् | मौनं चैवास्मि गुह्यानां ज्ञानं ज्ञानवतामहम् ॥38॥ |
यच्चापि सर्वभूतानां बीजं तदहमर्जुन | न तदस्ति विना यत्स्यान्मया भूतं चराचरम् ॥39॥ | what is chapter 10 verse 39 in bhagvad gita ? | what is chapter 10 verse 39 in bhagvad gita ?
यच्चापि सर्वभूतानां बीजं तदहमर्जुन | न तदस्ति विना यत्स्यान्मया भूतं चराचरम् ॥39॥ |
नान्तोऽस्ति मम दिव्यानां विभूतीनां परन्तप | एष तूद्देशत: प्रोक्तो विभूतेर्विस्तरो मया ॥40॥ | what is chapter 10 verse 40 in bhagvad gita ? | what is chapter 10 verse 40 in bhagvad gita ?
नान्तोऽस्ति मम दिव्यानां विभूतीनां परन्तप | एष तूद्देशत: प्रोक्तो विभूतेर्विस्तरो मया ॥40॥ |
यद्यद्विभूतिमत्सत्वं श्रीमदूर्जितमेव वा | तत्देवावगच्छ त्वं मम तेजोंऽशसम्भवम् ॥41॥ | what is chapter 10 verse 41 in bhagvad gita ? | what is chapter 10 verse 41 in bhagvad gita ?
यद्यद्विभूतिमत्सत्वं श्रीमदूर्जितमेव वा | तत्देवावगच्छ त्वं मम तेजोंऽशसम्भवम् ॥41॥ |
अथवा बहुनैतेन किं ज्ञातेन तवार्जुन | विष्टभ्याहमिदं कृत्स्नमेकांशेन स्थितो जगत् ॥42॥ | what is chapter 10 verse 42 in bhagvad gita ? | what is chapter 10 verse 42 in bhagvad gita ?
अथवा बहुनैतेन किं ज्ञातेन तवार्जुन | विष्टभ्याहमिदं कृत्स्नमेकांशेन स्थितो जगत् ॥42॥ |
अर्जुन उवाच | मदनुग्रहाय परमं गुह्यमध्यात्मसञ्ज्ञितम् | यत्वयोक्तं वचस्तेन मोहोऽयं विगतो मम ॥1॥ | what is chapter 11 verse 1 in bhagvad gita ? | what is chapter 11 verse 1 in bhagvad gita ?
अर्जुन उवाच | मदनुग्रहाय परमं गुह्यमध्यात्मसञ्ज्ञितम् | यत्वयोक्तं वचस्तेन मोहोऽयं विगतो मम ॥1॥ |
भवाप्ययौ हि भूतानां श्रुतौ विस्तरशो मया | त्वत्त: कमलपत्राक्ष माहात्म्यमपि चाव्ययम् ॥2॥ | what is chapter 11 verse 2 in bhagvad gita ? | what is chapter 11 verse 2 in bhagvad gita ?
भवाप्ययौ हि भूतानां श्रुतौ विस्तरशो मया | त्वत्त: कमलपत्राक्ष माहात्म्यमपि चाव्ययम् ॥2॥ |
एवमेतद्यथात्थ त्वमात्मानं परमेश्वर | द्रष्टुमिच्छामि ते रूपमैश्वरं पुरुषोत्तम ॥3॥ | what is chapter 11 verse 3 in bhagvad gita ? | what is chapter 11 verse 3 in bhagvad gita ?
एवमेतद्यथात्थ त्वमात्मानं परमेश्वर | द्रष्टुमिच्छामि ते रूपमैश्वरं पुरुषोत्तम ॥3॥ |
मन्यसे यदि तच्छक्यं मया द्रष्टुमिति प्रभो | योगेश्वर ततो मे त्वं दर्शयात्मानमव्ययम् ॥4॥ | what is chapter 11 verse 4 in bhagvad gita ? | what is chapter 11 verse 4 in bhagvad gita ?
मन्यसे यदि तच्छक्यं मया द्रष्टुमिति प्रभो | योगेश्वर ततो मे त्वं दर्शयात्मानमव्ययम् ॥4॥ |
श्रीभगवानुवाच | पश्य मे पार्थ रूपाणि शतशोऽथ सहस्रश: | नानाविधानि दिव्यानि नानावर्णाकृतीनि च ॥5॥ | what is chapter 11 verse 5 in bhagvad gita ? | what is chapter 11 verse 5 in bhagvad gita ?
श्रीभगवानुवाच | पश्य मे पार्थ रूपाणि शतशोऽथ सहस्रश: | नानाविधानि दिव्यानि नानावर्णाकृतीनि च ॥5॥ |
पश्यादित्यान्वसून् रुद्रानश्विनौ मरुतस्तथा | बहून्यदृष्टपूर्वाणि पश्याश्चर्याणि भारत ॥6॥ | what is chapter 11 verse 6 in bhagvad gita ? | what is chapter 11 verse 6 in bhagvad gita ?
पश्यादित्यान्वसून् रुद्रानश्विनौ मरुतस्तथा | बहून्यदृष्टपूर्वाणि पश्याश्चर्याणि भारत ॥6॥ |
इहैकस्थं जगत्कृत्स्नं पश्याद्य सचराचरम् | मम देहे गुडाकेश यच्चान्यद्द्रष्टुमिच्छसि ॥7॥ | what is chapter 11 verse 7 in bhagvad gita ? | what is chapter 11 verse 7 in bhagvad gita ?
इहैकस्थं जगत्कृत्स्नं पश्याद्य सचराचरम् | मम देहे गुडाकेश यच्चान्यद्द्रष्टुमिच्छसि ॥7॥ |
न तु मां शक्यसे द्रष्टुमनेनैव स्वचक्षुषा | दिव्यं ददामि ते चक्षु: पश्य मे योगमैश्वरम् ॥8॥ | what is chapter 11 verse 8 in bhagvad gita ? | what is chapter 11 verse 8 in bhagvad gita ?
न तु मां शक्यसे द्रष्टुमनेनैव स्वचक्षुषा | दिव्यं ददामि ते चक्षु: पश्य मे योगमैश्वरम् ॥8॥ |
सञ्जय उवाच | एवमुक्त्वा ततो राजन्महायोगेश्वरो हरि: | दर्शयामास पार्थाय परमं रूपमैश्वरम् ॥9॥ | what is chapter 11 verse 9 in bhagvad gita ? | what is chapter 11 verse 9 in bhagvad gita ?
सञ्जय उवाच | एवमुक्त्वा ततो राजन्महायोगेश्वरो हरि: | दर्शयामास पार्थाय परमं रूपमैश्वरम् ॥9॥ |
अनेकवक्त्रनयनमनेकाद्भुतदर्शनम् | अनेकदिव्याभरणं दिव्यानेकोद्यतायुधम् ॥10॥ | what is chapter 11 verse 10 in bhagvad gita ? | what is chapter 11 verse 10 in bhagvad gita ?
अनेकवक्त्रनयनमनेकाद्भुतदर्शनम् | अनेकदिव्याभरणं दिव्यानेकोद्यतायुधम् ॥10॥ |
दिव्यमाल्याम्बरधरं दिव्यगन्धानुलेपनम् | सर्वाश्चर्यमयं देवमनन्तं विश्वतोमुखम् ॥11॥ | what is chapter 11 verse 11 in bhagvad gita ? | what is chapter 11 verse 11 in bhagvad gita ?
दिव्यमाल्याम्बरधरं दिव्यगन्धानुलेपनम् | सर्वाश्चर्यमयं देवमनन्तं विश्वतोमुखम् ॥11॥ |
दिवि सूर्यसहस्रस्य भवेद्युगपदुत्थिता | यदि भा: सदृशी सा स्याद्भासस्तस्य महात्मन: ॥12॥ | what is chapter 11 verse 12 in bhagvad gita ? | what is chapter 11 verse 12 in bhagvad gita ?
दिवि सूर्यसहस्रस्य भवेद्युगपदुत्थिता | यदि भा: सदृशी सा स्याद्भासस्तस्य महात्मन: ॥12॥ |
तत्रैकस्थं जगत्कृत्स्नं प्रविभक्तमनेकधा | अपश्यद्देवदेवस्य शरीरे पाण्डवस्तदा ॥13॥ | what is chapter 11 verse 13 in bhagvad gita ? | what is chapter 11 verse 13 in bhagvad gita ?
तत्रैकस्थं जगत्कृत्स्नं प्रविभक्तमनेकधा | अपश्यद्देवदेवस्य शरीरे पाण्डवस्तदा ॥13॥ |
तत: स विस्मयाविष्टो हृष्टरोमा धनञ्जय: | प्रणम्य शिरसा देवं कृताञ्जलिरभाषत ॥14॥ | what is chapter 11 verse 14 in bhagvad gita ? | what is chapter 11 verse 14 in bhagvad gita ?
तत: स विस्मयाविष्टो हृष्टरोमा धनञ्जय: | प्रणम्य शिरसा देवं कृताञ्जलिरभाषत ॥14॥ |
अर्जुन उवाच | पश्यामि देवांस्तव देव देहे सर्वांस्तथा भूतविशेषसङ्घान् | ब्रह्माणमीशं कमलासनस्थ- मृषींश्च सर्वानुरगांश्च दिव्यान् ॥15॥ | what is chapter 11 verse 15 in bhagvad gita ? | what is chapter 11 verse 15 in bhagvad gita ?
अर्जुन उवाच | पश्यामि देवांस्तव देव देहे सर्वांस्तथा भूतविशेषसङ्घान् | ब्रह्माणमीशं कमलासनस्थ- मृषींश्च सर्वानुरगांश्च दिव्यान् ॥15॥ |
अनेकबाहूदरवक्त्रनेत्रं पश्यामि त्वां सर्वतोऽनन्तरूपम् | नान्तं न मध्यं न पुनस्तवादिं पश्यामि विश्वेश्वर विश्वरूप ॥16॥ | what is chapter 11 verse 16 in bhagvad gita ? | what is chapter 11 verse 16 in bhagvad gita ?
अनेकबाहूदरवक्त्रनेत्रं पश्यामि त्वां सर्वतोऽनन्तरूपम् | नान्तं न मध्यं न पुनस्तवादिं पश्यामि विश्वेश्वर विश्वरूप ॥16॥ |
किरीटिनं गदिनं चक्रिणं च तेजोराशिं सर्वतो दीप्तिमन्तम् | पश्यामि त्वां दुर्निरीक्ष्यं समन्ताद् दीप्तानलार्कद्युतिमप्रमेयम् ॥17॥ | what is chapter 11 verse 17 in bhagvad gita ? | what is chapter 11 verse 17 in bhagvad gita ?
किरीटिनं गदिनं चक्रिणं च तेजोराशिं सर्वतो दीप्तिमन्तम् | पश्यामि त्वां दुर्निरीक्ष्यं समन्ताद् दीप्तानलार्कद्युतिमप्रमेयम् ॥17॥ |
त्वमक्षरं परमं वेदितव्यं त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम् | त्वमव्यय: शाश्वतधर्मगोप्ता सनातनस्त्वं पुरुषो मतो मे ॥18॥ | what is chapter 11 verse 18 in bhagvad gita ? | what is chapter 11 verse 18 in bhagvad gita ?
त्वमक्षरं परमं वेदितव्यं त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम् | त्वमव्यय: शाश्वतधर्मगोप्ता सनातनस्त्वं पुरुषो मतो मे ॥18॥ |
अनादिमध्यान्तमनन्तवीर्य- मनन्तबाहुं शशिसूर्यनेत्रम् | पश्यामि त्वां दीप्तहुताशवक्त्रं- | what is chapter 11 verse 19 in bhagvad gita ? | what is chapter 11 verse 19 in bhagvad gita ?
अनादिमध्यान्तमनन्तवीर्य- मनन्तबाहुं शशिसूर्यनेत्रम् | पश्यामि त्वां दीप्तहुताशवक्त्रं- |
द्यावापृथिव्योरिदमन्तरं हि व्याप्तं त्वयैकेन दिशश्च सर्वा: | दृष्ट्वाद्भुतं रूपमुग्रं तवेदं लोकत्रयं प्रव्यथितं महात्मन् ॥20॥ | what is chapter 11 verse 20 in bhagvad gita ? | what is chapter 11 verse 20 in bhagvad gita ?
द्यावापृथिव्योरिदमन्तरं हि व्याप्तं त्वयैकेन दिशश्च सर्वा: | दृष्ट्वाद्भुतं रूपमुग्रं तवेदं लोकत्रयं प्रव्यथितं महात्मन् ॥20॥ |
अमी हि त्वां सुरसङ्घा विशन्ति केचिद्भीता: प्राञ्जलयो गृणन्ति | स्वस्तीत्युक्त्वा महर्षिसिद्धसङ्घा: स्तुवन्ति त्वां स्तुतिभि: पुष्कलाभि: ॥21॥ | what is chapter 11 verse 21 in bhagvad gita ? | what is chapter 11 verse 21 in bhagvad gita ?
अमी हि त्वां सुरसङ्घा विशन्ति केचिद्भीता: प्राञ्जलयो गृणन्ति | स्वस्तीत्युक्त्वा महर्षिसिद्धसङ्घा: स्तुवन्ति त्वां स्तुतिभि: पुष्कलाभि: ॥21॥ |
रुद्रादित्या वसवो ये च साध्या विश्वेऽश्विनौ मरुतश्चोष्मपाश्च | गन्धर्वयक्षासुरसिद्धसङ्घा वीक्षन्ते त्वां विस्मिताश्चैव सर्वे ॥22॥ | what is chapter 11 verse 22 in bhagvad gita ? | what is chapter 11 verse 22 in bhagvad gita ?
रुद्रादित्या वसवो ये च साध्या विश्वेऽश्विनौ मरुतश्चोष्मपाश्च | गन्धर्वयक्षासुरसिद्धसङ्घा वीक्षन्ते त्वां विस्मिताश्चैव सर्वे ॥22॥ |
रूपं महत्ते बहुवक्त्रनेत्रं महाबाहो बहुबाहूरुपादम् | बहूदरं बहुदंष्ट्राकरालं दृष्ट्वा लोका: प्रव्यथितास्तथाहम् ॥23॥ | what is chapter 11 verse 23 in bhagvad gita ? | what is chapter 11 verse 23 in bhagvad gita ?
रूपं महत्ते बहुवक्त्रनेत्रं महाबाहो बहुबाहूरुपादम् | बहूदरं बहुदंष्ट्राकरालं दृष्ट्वा लोका: प्रव्यथितास्तथाहम् ॥23॥ |
नभ:स्पृशं दीप्तमनेकवर्णं व्यात्ताननं दीप्तविशालनेत्रम् | दृष्ट्वा हि त्वां प्रव्यथितान्तरात्मा धृतिं न विन्दामि शमं च विष्णो ॥24॥ | what is chapter 11 verse 24 in bhagvad gita ? | what is chapter 11 verse 24 in bhagvad gita ?
नभ:स्पृशं दीप्तमनेकवर्णं व्यात्ताननं दीप्तविशालनेत्रम् | दृष्ट्वा हि त्वां प्रव्यथितान्तरात्मा धृतिं न विन्दामि शमं च विष्णो ॥24॥ |
दंष्ट्राकरालानि च ते मुखानि दृष्ट्वैव कालानलसन्निभानि | दिशो न जाने न लभे च शर्म प्रसीद देवेश जगन्निवास ॥25॥ | what is chapter 11 verse 25 in bhagvad gita ? | what is chapter 11 verse 25 in bhagvad gita ?
दंष्ट्राकरालानि च ते मुखानि दृष्ट्वैव कालानलसन्निभानि | दिशो न जाने न लभे च शर्म प्रसीद देवेश जगन्निवास ॥25॥ |
अमी च त्वां धृतराष्ट्रस्य पुत्रा: सर्वे सहैवावनिपालसङ्घै: | भीष्मो द्रोण: सूतपुत्रस्तथासौ सहास्मदीयैरपि योधमुख्यै: ॥26॥ वक्त्राणि ते त्वरमाणा विशन्ति दंष्ट्राकरालानि भयानकानि | केचिद्विलग्ना दशनान्तरेषु सन्दृश्यन्ते चूर्णितैरुत्तमाङ्गै: ॥27॥ | what is chapter 11 verse 26 in bhagvad gita ? | what is chapter 11 verse 26 in bhagvad gita ?
अमी च त्वां धृतराष्ट्रस्य पुत्रा: सर्वे सहैवावनिपालसङ्घै: | भीष्मो द्रोण: सूतपुत्रस्तथासौ सहास्मदीयैरपि योधमुख्यै: ॥26॥ वक्त्राणि ते त्वरमाणा विशन्ति दंष्ट्राकरालानि भयानकानि | केचिद्विलग्ना दशनान्तरेषु सन्दृश्यन्ते चूर्णितैरुत्तमाङ्गै: ॥27॥ |
अमी च त्वां धृतराष्ट्रस्य पुत्रा: सर्वे सहैवावनिपालसङ्घै: | भीष्मो द्रोण: सूतपुत्रस्तथासौ सहास्मदीयैरपि योधमुख्यै: ॥26॥ वक्त्राणि ते त्वरमाणा विशन्ति दंष्ट्राकरालानि भयानकानि | केचिद्विलग्ना दशनान्तरेषु सन्दृश्यन्ते चूर्णितैरुत्तमाङ्गै: ॥27॥ | what is chapter 11 verse 27 in bhagvad gita ? | what is chapter 11 verse 27 in bhagvad gita ?
अमी च त्वां धृतराष्ट्रस्य पुत्रा: सर्वे सहैवावनिपालसङ्घै: | भीष्मो द्रोण: सूतपुत्रस्तथासौ सहास्मदीयैरपि योधमुख्यै: ॥26॥ वक्त्राणि ते त्वरमाणा विशन्ति दंष्ट्राकरालानि भयानकानि | केचिद्विलग्ना दशनान्तरेषु सन्दृश्यन्ते चूर्णितैरुत्तमाङ्गै: ॥27॥ |
यथा नदीनां बहवोऽम्बुवेगा: समुद्रमेवाभिमुखा द्रवन्ति | तथा तवामी नरलोकवीरा विशन्ति वक्त्राण्यभिविज्वलन्ति ॥28॥ | what is chapter 11 verse 28 in bhagvad gita ? | what is chapter 11 verse 28 in bhagvad gita ?
यथा नदीनां बहवोऽम्बुवेगा: समुद्रमेवाभिमुखा द्रवन्ति | तथा तवामी नरलोकवीरा विशन्ति वक्त्राण्यभिविज्वलन्ति ॥28॥ |
यथा प्रदीप्तं ज्वलनं पतङ्गा विशन्ति नाशाय समृद्धवेगा: | तथैव नाशाय विशन्ति लोका- स्तवापि वक्त्राणि समृद्धवेगा: ॥29॥ | what is chapter 11 verse 29 in bhagvad gita ? | what is chapter 11 verse 29 in bhagvad gita ?
यथा प्रदीप्तं ज्वलनं पतङ्गा विशन्ति नाशाय समृद्धवेगा: | तथैव नाशाय विशन्ति लोका- स्तवापि वक्त्राणि समृद्धवेगा: ॥29॥ |
लेलिह्यसे ग्रसमान: समन्ता- ल्लोकान्समग्रान्वदनैर्ज्वलद्भि: | तेजोभिरापूर्य जगत्समग्रं भासस्तवोग्रा: प्रतपन्ति विष्णो ॥30॥ | what is chapter 11 verse 30 in bhagvad gita ? | what is chapter 11 verse 30 in bhagvad gita ?
लेलिह्यसे ग्रसमान: समन्ता- ल्लोकान्समग्रान्वदनैर्ज्वलद्भि: | तेजोभिरापूर्य जगत्समग्रं भासस्तवोग्रा: प्रतपन्ति विष्णो ॥30॥ |
आख्याहि मे को भवानुग्ररूपो नमोऽस्तु ते देववर प्रसीद | विज्ञातुमिच्छामि भवन्तमाद्यं न हि प्रजानामि तव प्रवृत्तिम् ॥31॥ | what is chapter 11 verse 31 in bhagvad gita ? | what is chapter 11 verse 31 in bhagvad gita ?
आख्याहि मे को भवानुग्ररूपो नमोऽस्तु ते देववर प्रसीद | विज्ञातुमिच्छामि भवन्तमाद्यं न हि प्रजानामि तव प्रवृत्तिम् ॥31॥ |
श्रीभगवानुवाच | कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्त: | ऋतेऽपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे येऽवस्थिता: प्रत्यनीकेषु योधा: ॥32॥ | what is chapter 11 verse 32 in bhagvad gita ? | what is chapter 11 verse 32 in bhagvad gita ?
श्रीभगवानुवाच | कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्त: | ऋतेऽपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे येऽवस्थिता: प्रत्यनीकेषु योधा: ॥32॥ |
तस्मात्वमुत्तिष्ठ यशो लभस्व जित्वा शत्रून्भुङ् क्ष्व राज्यं समृद्धम् | मयैवैते निहता: पूर्वमेव निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन् ॥33॥ | what is chapter 11 verse 33 in bhagvad gita ? | what is chapter 11 verse 33 in bhagvad gita ?
तस्मात्वमुत्तिष्ठ यशो लभस्व जित्वा शत्रून्भुङ् क्ष्व राज्यं समृद्धम् | मयैवैते निहता: पूर्वमेव निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन् ॥33॥ |
द्रोणं च भीष्मं च जयद्रथं च कर्णं तथान्यानपि योधवीरान् | मया हतांस्त्वं जहि मा व्यथिष्ठा युध्यस्व जेतासि रणे सपत्नान् ॥34॥ | what is chapter 11 verse 34 in bhagvad gita ? | what is chapter 11 verse 34 in bhagvad gita ?
द्रोणं च भीष्मं च जयद्रथं च कर्णं तथान्यानपि योधवीरान् | मया हतांस्त्वं जहि मा व्यथिष्ठा युध्यस्व जेतासि रणे सपत्नान् ॥34॥ |
सञ्जय उवाच | एतच्छ्रुत्वा वचनं केशवस्य कृताञ्जलिर्वेपमान: किरीटी | नमस्कृत्वा भूय एवाह कृष्णं सगद्गदं भीतभीत: प्रणम्य ॥35॥ | what is chapter 11 verse 35 in bhagvad gita ? | what is chapter 11 verse 35 in bhagvad gita ?
सञ्जय उवाच | एतच्छ्रुत्वा वचनं केशवस्य कृताञ्जलिर्वेपमान: किरीटी | नमस्कृत्वा भूय एवाह कृष्णं सगद्गदं भीतभीत: प्रणम्य ॥35॥ |
अर्जुन उवाच | स्थाने हृषीकेश तव प्रकीर्त्या जगत्प्रहृष्यत्यनुरज्यते च | रक्षांसि भीतानि दिशो द्रवन्ति सर्वे नमस्यन्ति च सिद्धसङ्घा: ॥36॥ | what is chapter 11 verse 36 in bhagvad gita ? | what is chapter 11 verse 36 in bhagvad gita ?
अर्जुन उवाच | स्थाने हृषीकेश तव प्रकीर्त्या जगत्प्रहृष्यत्यनुरज्यते च | रक्षांसि भीतानि दिशो द्रवन्ति सर्वे नमस्यन्ति च सिद्धसङ्घा: ॥36॥ |
कस्माच्च ते न नमेरन्महात्मन् गरीयसे ब्रह्मणोऽप्यादिकर्त्रे | अनन्त देवेश जगन्निवास त्वमक्षरं सदसतत्परं यत् ॥37॥ | what is chapter 11 verse 37 in bhagvad gita ? | what is chapter 11 verse 37 in bhagvad gita ?
कस्माच्च ते न नमेरन्महात्मन् गरीयसे ब्रह्मणोऽप्यादिकर्त्रे | अनन्त देवेश जगन्निवास त्वमक्षरं सदसतत्परं यत् ॥37॥ |
त्वमादिदेव: पुरुष: पुराण- स्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम् | वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप ॥38॥ | what is chapter 11 verse 38 in bhagvad gita ? | what is chapter 11 verse 38 in bhagvad gita ?
त्वमादिदेव: पुरुष: पुराण- स्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम् | वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप ॥38॥ |
वायुर्यमोऽग्निर्वरुण: शशाङ्क: प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च | नमो नमस्तेऽस्तु सहस्रकृत्व: पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते ॥39॥ | what is chapter 11 verse 39 in bhagvad gita ? | what is chapter 11 verse 39 in bhagvad gita ?
वायुर्यमोऽग्निर्वरुण: शशाङ्क: प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च | नमो नमस्तेऽस्तु सहस्रकृत्व: पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते ॥39॥ |
नम: पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व | अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वं सर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्व: ॥40॥ | what is chapter 11 verse 40 in bhagvad gita ? | what is chapter 11 verse 40 in bhagvad gita ?
नम: पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व | अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वं सर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्व: ॥40॥ |
सखेति मत्वा प्रसभं यदुक्तं हे कृष्ण हे यादव हे सखेति | अजानता महिमानं तवेदं मया प्रमादात्प्रणयेन वापि ॥41॥ | what is chapter 11 verse 41 in bhagvad gita ? | what is chapter 11 verse 41 in bhagvad gita ?
सखेति मत्वा प्रसभं यदुक्तं हे कृष्ण हे यादव हे सखेति | अजानता महिमानं तवेदं मया प्रमादात्प्रणयेन वापि ॥41॥ |
यच्चावहासार्थमसत्कृतोऽसि विहारशय्यासनभोजनेषु | एकोऽथवाप्यच्युत तत्समक्षं तत्क्षामये त्वामहमप्रमेयम् ॥42॥ | what is chapter 11 verse 42 in bhagvad gita ? | what is chapter 11 verse 42 in bhagvad gita ?
यच्चावहासार्थमसत्कृतोऽसि विहारशय्यासनभोजनेषु | एकोऽथवाप्यच्युत तत्समक्षं तत्क्षामये त्वामहमप्रमेयम् ॥42॥ |
पितासि लोकस्य चराचरस्य त्वमस्य पूज्यश्च गुरुर्गरीयान् | न त्वत्समोऽस्त्यभ्यधिक: कुतोऽन्यो लोकत्रयेऽप्यप्रतिमप्रभाव ॥43॥ | what is chapter 11 verse 43 in bhagvad gita ? | what is chapter 11 verse 43 in bhagvad gita ?
पितासि लोकस्य चराचरस्य त्वमस्य पूज्यश्च गुरुर्गरीयान् | न त्वत्समोऽस्त्यभ्यधिक: कुतोऽन्यो लोकत्रयेऽप्यप्रतिमप्रभाव ॥43॥ |
तस्मात्प्रणम्य प्रणिधाय कायं प्रसादये त्वामहमीशमीड्यम् | पितेव पुत्रस्य सखेव सख्यु: प्रिय: प्रियायार्हसि देव सोढुम् ॥44॥ | what is chapter 11 verse 44 in bhagvad gita ? | what is chapter 11 verse 44 in bhagvad gita ?
तस्मात्प्रणम्य प्रणिधाय कायं प्रसादये त्वामहमीशमीड्यम् | पितेव पुत्रस्य सखेव सख्यु: प्रिय: प्रियायार्हसि देव सोढुम् ॥44॥ |
अदृष्टपूर्वं हृषितोऽस्मि दृष्ट्वा भयेन च प्रव्यथितं मनो मे | तदेव मे दर्शय देवरूपं प्रसीद देवेश जगन्निवास ॥45॥ | what is chapter 11 verse 45 in bhagvad gita ? | what is chapter 11 verse 45 in bhagvad gita ?
अदृष्टपूर्वं हृषितोऽस्मि दृष्ट्वा भयेन च प्रव्यथितं मनो मे | तदेव मे दर्शय देवरूपं प्रसीद देवेश जगन्निवास ॥45॥ |
किरीटिनं गदिनं चक्रहस्त- मिच्छामि त्वां द्रष्टुमहं तथैव | तेनैव रूपेण चतुर्भुजेन सहस्रबाहो भव विश्वमूर्ते ॥46॥ | what is chapter 11 verse 46 in bhagvad gita ? | what is chapter 11 verse 46 in bhagvad gita ?
किरीटिनं गदिनं चक्रहस्त- मिच्छामि त्वां द्रष्टुमहं तथैव | तेनैव रूपेण चतुर्भुजेन सहस्रबाहो भव विश्वमूर्ते ॥46॥ |
श्रीभगवानुवाच | मया प्रसन्नेन तवार्जुनेदं रूपं परं दर्शितमात्मयोगात् | तेजोमयं विश्वमनन्तमाद्यं यन्मे त्वदन्येन न दृष्टपूर्वम् ॥47॥ | what is chapter 11 verse 47 in bhagvad gita ? | what is chapter 11 verse 47 in bhagvad gita ?
श्रीभगवानुवाच | मया प्रसन्नेन तवार्जुनेदं रूपं परं दर्शितमात्मयोगात् | तेजोमयं विश्वमनन्तमाद्यं यन्मे त्वदन्येन न दृष्टपूर्वम् ॥47॥ |
न वेदयज्ञाध्ययनैर्न दानै- र्न च क्रियाभिर्न तपोभिरुग्रै: | एवंरूप: शक्य अहं नृलोके द्रष्टुं त्वदन्येन कुरुप्रवीर ॥48॥ | what is chapter 11 verse 48 in bhagvad gita ? | what is chapter 11 verse 48 in bhagvad gita ?
न वेदयज्ञाध्ययनैर्न दानै- र्न च क्रियाभिर्न तपोभिरुग्रै: | एवंरूप: शक्य अहं नृलोके द्रष्टुं त्वदन्येन कुरुप्रवीर ॥48॥ |
मा ते व्यथा मा च विमूढभावो दृष्ट्वा रूपं घोरमीदृङ्ममेदम् | व्यपेतभी: प्रीतमना: पुनस्त्वं तदेव मे रूपमिदं प्रपश्य ॥49॥ | what is chapter 11 verse 49 in bhagvad gita ? | what is chapter 11 verse 49 in bhagvad gita ?
मा ते व्यथा मा च विमूढभावो दृष्ट्वा रूपं घोरमीदृङ्ममेदम् | व्यपेतभी: प्रीतमना: पुनस्त्वं तदेव मे रूपमिदं प्रपश्य ॥49॥ |
सञ्जय उवाच | इत्यर्जुनं वासुदेवस्तथोक्त्वा स्वकं रूपं दर्शयामास भूय: | आश्वासयामास च भीतमेनं भूत्वा पुन: सौम्यवपुर्महात्मा ॥50॥ | what is chapter 11 verse 50 in bhagvad gita ? | what is chapter 11 verse 50 in bhagvad gita ?
सञ्जय उवाच | इत्यर्जुनं वासुदेवस्तथोक्त्वा स्वकं रूपं दर्शयामास भूय: | आश्वासयामास च भीतमेनं भूत्वा पुन: सौम्यवपुर्महात्मा ॥50॥ |
अर्जुन उवाच | दृष्ट्वेदं मानुषं रूपं तव सौम्यं जनार्दन | इदानीमस्मि संवृत्त: सचेता: प्रकृतिं गत: ॥51॥ | what is chapter 11 verse 51 in bhagvad gita ? | what is chapter 11 verse 51 in bhagvad gita ?
अर्जुन उवाच | दृष्ट्वेदं मानुषं रूपं तव सौम्यं जनार्दन | इदानीमस्मि संवृत्त: सचेता: प्रकृतिं गत: ॥51॥ |
श्रीभगवानुवाच | सुदुर्दर्शमिदं रूपं दृष्टवानसि यन्मम | देवा अप्यस्य रूपस्य नित्यं दर्शनकाङ्क्षिण: ॥52॥ | what is chapter 11 verse 52 in bhagvad gita ? | what is chapter 11 verse 52 in bhagvad gita ?
श्रीभगवानुवाच | सुदुर्दर्शमिदं रूपं दृष्टवानसि यन्मम | देवा अप्यस्य रूपस्य नित्यं दर्शनकाङ्क्षिण: ॥52॥ |
नाहं वेदैर्न तपसा न दानेन न चेज्यया | शक्य एवंविधो द्रष्टुं दृष्टवानसि मां यथा ॥53॥ | what is chapter 11 verse 53 in bhagvad gita ? | what is chapter 11 verse 53 in bhagvad gita ?
नाहं वेदैर्न तपसा न दानेन न चेज्यया | शक्य एवंविधो द्रष्टुं दृष्टवानसि मां यथा ॥53॥ |
भक्त्या त्वनन्यया शक्य अहमेवंविधोऽर्जुन | ज्ञातुं द्रष्टुं च तत्वेन प्रवेष्टुं च परन्तप ॥54॥ | what is chapter 11 verse 54 in bhagvad gita ? | what is chapter 11 verse 54 in bhagvad gita ?
भक्त्या त्वनन्यया शक्य अहमेवंविधोऽर्जुन | ज्ञातुं द्रष्टुं च तत्वेन प्रवेष्टुं च परन्तप ॥54॥ |
मत्कर्मकृन्मत्परमो मद्भक्त: सङ्गवर्जित: | निर्वैर: सर्वभूतेषु य: स मामेति पाण्डव ॥55॥ | what is chapter 11 verse 55 in bhagvad gita ? | what is chapter 11 verse 55 in bhagvad gita ?
मत्कर्मकृन्मत्परमो मद्भक्त: सङ्गवर्जित: | निर्वैर: सर्वभूतेषु य: स मामेति पाण्डव ॥55॥ |
अर्जुन उवाच | एवं सततयुक्ता ये भक्तास्त्वां पर्युपासते | ये चाप्यक्षरमव्यक्तं तेषां के योगवित्तमा: ॥1॥ | what is chapter 12 verse 1 in bhagvad gita ? | what is chapter 12 verse 1 in bhagvad gita ?
अर्जुन उवाच | एवं सततयुक्ता ये भक्तास्त्वां पर्युपासते | ये चाप्यक्षरमव्यक्तं तेषां के योगवित्तमा: ॥1॥ |
श्रीभगवानुवाच | मय्यावेश्य मनो ये मां नित्ययुक्ता उपासते | श्रद्धया परयोपेतास्ते मे युक्ततमा मता: ॥2॥ | what is chapter 12 verse 2 in bhagvad gita ? | what is chapter 12 verse 2 in bhagvad gita ?
श्रीभगवानुवाच | मय्यावेश्य मनो ये मां नित्ययुक्ता उपासते | श्रद्धया परयोपेतास्ते मे युक्ततमा मता: ॥2॥ |
ये त्वक्षरमनिर्देश्यमव्यक्तं पर्युपासते | सर्वत्रगमचिन्त्यञ्च कूटस्थमचलन्ध्रुवम् ॥3॥ सन्नियम्येन्द्रियग्रामं सर्वत्र समबुद्धय: | ते प्राप्नुवन्ति मामेव सर्वभूतहिते रता: ॥4॥ | what is chapter 12 verse 3 in bhagvad gita ? | what is chapter 12 verse 3 in bhagvad gita ?
ये त्वक्षरमनिर्देश्यमव्यक्तं पर्युपासते | सर्वत्रगमचिन्त्यञ्च कूटस्थमचलन्ध्रुवम् ॥3॥ सन्नियम्येन्द्रियग्रामं सर्वत्र समबुद्धय: | ते प्राप्नुवन्ति मामेव सर्वभूतहिते रता: ॥4॥ |
ये त्वक्षरमनिर्देश्यमव्यक्तं पर्युपासते | सर्वत्रगमचिन्त्यञ्च कूटस्थमचलन्ध्रुवम् ॥3॥ सन्नियम्येन्द्रियग्रामं सर्वत्र समबुद्धय: | ते प्राप्नुवन्ति मामेव सर्वभूतहिते रता: ॥4॥ | what is chapter 12 verse 4 in bhagvad gita ? | what is chapter 12 verse 4 in bhagvad gita ?
ये त्वक्षरमनिर्देश्यमव्यक्तं पर्युपासते | सर्वत्रगमचिन्त्यञ्च कूटस्थमचलन्ध्रुवम् ॥3॥ सन्नियम्येन्द्रियग्रामं सर्वत्र समबुद्धय: | ते प्राप्नुवन्ति मामेव सर्वभूतहिते रता: ॥4॥ |
क्लेशोऽधिकतरस्तेषामव्यक्तासक्तचेतसाम् || अव्यक्ता हि गतिर्दु:खं देहवद्भिरवाप्यते ॥5॥ | what is chapter 12 verse 5 in bhagvad gita ? | what is chapter 12 verse 5 in bhagvad gita ?
क्लेशोऽधिकतरस्तेषामव्यक्तासक्तचेतसाम् || अव्यक्ता हि गतिर्दु:खं देहवद्भिरवाप्यते ॥5॥ |
ये तु सर्वाणि कर्माणि मयि संन्न्यस्य मत्पर: | अनन्येनैव योगेन मां ध्यायन्त उपासते ॥6॥ | what is chapter 12 verse 6 in bhagvad gita ? | what is chapter 12 verse 6 in bhagvad gita ?
ये तु सर्वाणि कर्माणि मयि संन्न्यस्य मत्पर: | अनन्येनैव योगेन मां ध्यायन्त उपासते ॥6॥ |
तेषामहं समुद्धर्ता मृत्युसंसारसागरात् | भवामि नचिरात्पार्थ मय्यावेशितचेतसाम् ॥7॥ | what is chapter 12 verse 7 in bhagvad gita ? | what is chapter 12 verse 7 in bhagvad gita ?
तेषामहं समुद्धर्ता मृत्युसंसारसागरात् | भवामि नचिरात्पार्थ मय्यावेशितचेतसाम् ॥7॥ |
मय्येव मन आधत्स्व मयि बुद्धिं निवेशय | निवसिष्यसि मय्येव अत ऊर्ध्वं न संशय: ॥8॥ | what is chapter 12 verse 8 in bhagvad gita ? | what is chapter 12 verse 8 in bhagvad gita ?
मय्येव मन आधत्स्व मयि बुद्धिं निवेशय | निवसिष्यसि मय्येव अत ऊर्ध्वं न संशय: ॥8॥ |
अथ चित्तं समाधातुं न शक्नोषि मयि स्थिरम् | अभ्यासयोगेन ततो मामिच्छाप्तुं धनञ्जय ॥9॥ | what is chapter 12 verse 9 in bhagvad gita ? | what is chapter 12 verse 9 in bhagvad gita ?
अथ चित्तं समाधातुं न शक्नोषि मयि स्थिरम् | अभ्यासयोगेन ततो मामिच्छाप्तुं धनञ्जय ॥9॥ |
अभ्यासेऽप्यसमर्थोऽसि मत्कर्मपरमो भव | मदर्थमपि कर्माणि कुर्वन्सिद्धिमवाप्स्यसि ॥10॥ | what is chapter 12 verse 10 in bhagvad gita ? | what is chapter 12 verse 10 in bhagvad gita ?
अभ्यासेऽप्यसमर्थोऽसि मत्कर्मपरमो भव | मदर्थमपि कर्माणि कुर्वन्सिद्धिमवाप्स्यसि ॥10॥ |
अथैतदप्यशक्तोऽसि कर्तुं मद्योगमाश्रित: | सर्वकर्मफलत्यागं तत: कुरु यतात्मवान् ॥11॥ | what is chapter 12 verse 11 in bhagvad gita ? | what is chapter 12 verse 11 in bhagvad gita ?
अथैतदप्यशक्तोऽसि कर्तुं मद्योगमाश्रित: | सर्वकर्मफलत्यागं तत: कुरु यतात्मवान् ॥11॥ |
श्रेयो हि ज्ञानमभ्यासाज्ज्ञानाद्ध्यानं विशिष्यते | ध्यानात्कर्मफलत्यागस्त्यागाच्छान्तिरनन्तरम् ॥12॥ | what is chapter 12 verse 12 in bhagvad gita ? | what is chapter 12 verse 12 in bhagvad gita ?
श्रेयो हि ज्ञानमभ्यासाज्ज्ञानाद्ध्यानं विशिष्यते | ध्यानात्कर्मफलत्यागस्त्यागाच्छान्तिरनन्तरम् ॥12॥ |
अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्र: करुण एव च | निर्ममो निरहङ्कार: समदु:खसुख: क्षमी ॥13॥ | what is chapter 12 verse 13 in bhagvad gita ? | what is chapter 12 verse 13 in bhagvad gita ?
अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्र: करुण एव च | निर्ममो निरहङ्कार: समदु:खसुख: क्षमी ॥13॥ |
सन्तुष्ट: सततं योगी यतात्मा दृढनिश्चय: | मय्यर्पितमनोबुद्धिर्यो मद्भक्त: स मे प्रिय: ॥14॥ | what is chapter 12 verse 14 in bhagvad gita ? | what is chapter 12 verse 14 in bhagvad gita ?
सन्तुष्ट: सततं योगी यतात्मा दृढनिश्चय: | मय्यर्पितमनोबुद्धिर्यो मद्भक्त: स मे प्रिय: ॥14॥ |
यस्मान्नोद्विजते लोको लोकान्नोद्विजते च य: | हर्षामर्षभयोद्वेगैर्मुक्तो य: स च मे प्रिय: ॥15॥ | what is chapter 12 verse 15 in bhagvad gita ? | what is chapter 12 verse 15 in bhagvad gita ?
यस्मान्नोद्विजते लोको लोकान्नोद्विजते च य: | हर्षामर्षभयोद्वेगैर्मुक्तो य: स च मे प्रिय: ॥15॥ |
अनपेक्ष: शुचिर्दक्ष उदासीनो गतव्यथ: | सर्वारम्भपरित्यागी यो मद्भक्त: स मे प्रिय: ॥16॥ | what is chapter 12 verse 16 in bhagvad gita ? | what is chapter 12 verse 16 in bhagvad gita ?
अनपेक्ष: शुचिर्दक्ष उदासीनो गतव्यथ: | सर्वारम्भपरित्यागी यो मद्भक्त: स मे प्रिय: ॥16॥ |
यो न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काङ् क्षति | शुभाशुभपरित्यागी भक्तिमान्य: स मे प्रिय: ॥17॥ | what is chapter 12 verse 17 in bhagvad gita ? | what is chapter 12 verse 17 in bhagvad gita ?
यो न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काङ् क्षति | शुभाशुभपरित्यागी भक्तिमान्य: स मे प्रिय: ॥17॥ |
सम: शत्रौ च मित्रे च तथा मानापमानयो: | शीतोष्णसुखदु:खेषु सम: सङ्गविवर्जित: ॥18॥ | what is chapter 12 verse 18 in bhagvad gita ? | what is chapter 12 verse 18 in bhagvad gita ?
सम: शत्रौ च मित्रे च तथा मानापमानयो: | शीतोष्णसुखदु:खेषु सम: सङ्गविवर्जित: ॥18॥ |
तुल्यनिन्दास्तुतिर्मौनी सन्तुष्टो येन केनचित् | अनिकेत: स्थिरमतिर्भक्तिमान्मे प्रियो नर: ॥19॥ | what is chapter 12 verse 19 in bhagvad gita ? | what is chapter 12 verse 19 in bhagvad gita ?
तुल्यनिन्दास्तुतिर्मौनी सन्तुष्टो येन केनचित् | अनिकेत: स्थिरमतिर्भक्तिमान्मे प्रियो नर: ॥19॥ |
ये तु धर्म्यामृतमिदं यथोक्तं पर्युपासते | श्रद्दधाना मत्परमा भक्तास्तेऽतीव मे प्रिया: ॥20॥ | what is chapter 12 verse 20 in bhagvad gita ? | what is chapter 12 verse 20 in bhagvad gita ?
ये तु धर्म्यामृतमिदं यथोक्तं पर्युपासते | श्रद्दधाना मत्परमा भक्तास्तेऽतीव मे प्रिया: ॥20॥ |
अर्जुन उवाच | प्रकृतिं पुरुषं चैव क्षेत्रं क्षेत्रज्ञमेव च | एतद्वेदितुमिच्छामि ज्ञानं ज्ञेयं च केशव ॥1॥ | what is chapter 13 verse 1 in bhagvad gita ? | what is chapter 13 verse 1 in bhagvad gita ?
अर्जुन उवाच | प्रकृतिं पुरुषं चैव क्षेत्रं क्षेत्रज्ञमेव च | एतद्वेदितुमिच्छामि ज्ञानं ज्ञेयं च केशव ॥1॥ |
श्रीभगवानुवाच | इदं शरीरं कौन्तेय क्षेत्रमित्यभिधीयते | एतद्यो वेत्ति तं प्राहु: क्षेत्रज्ञ इति तद्विद: ॥2॥ | what is chapter 13 verse 2 in bhagvad gita ? | what is chapter 13 verse 2 in bhagvad gita ?
श्रीभगवानुवाच | इदं शरीरं कौन्तेय क्षेत्रमित्यभिधीयते | एतद्यो वेत्ति तं प्राहु: क्षेत्रज्ञ इति तद्विद: ॥2॥ |
क्षेत्रज्ञं चापि मां विद्धि सर्वक्षेत्रेषु भारत | क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोर्ज्ञानं यत्तज्ज्ञानं मतं मम ॥3॥ | what is chapter 13 verse 3 in bhagvad gita ? | what is chapter 13 verse 3 in bhagvad gita ?
क्षेत्रज्ञं चापि मां विद्धि सर्वक्षेत्रेषु भारत | क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोर्ज्ञानं यत्तज्ज्ञानं मतं मम ॥3॥ |
तत्क्षेत्रं यच्च यादृक्च यद्विकारि यतश्च यत् | स च यो यत्प्रभावश्च तत्समासेन मे शृणु ॥4॥ | what is chapter 13 verse 4 in bhagvad gita ? | what is chapter 13 verse 4 in bhagvad gita ?
तत्क्षेत्रं यच्च यादृक्च यद्विकारि यतश्च यत् | स च यो यत्प्रभावश्च तत्समासेन मे शृणु ॥4॥ |
ऋषिभिर्बहुधा गीतं छन्दोभिर्विविधै: पृथक् | ब्रह्मसूत्रपदैश्चैव हेतुमद्भिर्विनिश्चितै: || 5 || | what is chapter 13 verse 5 in bhagvad gita ? | what is chapter 13 verse 5 in bhagvad gita ?
ऋषिभिर्बहुधा गीतं छन्दोभिर्विविधै: पृथक् | ब्रह्मसूत्रपदैश्चैव हेतुमद्भिर्विनिश्चितै: || 5 || |
महाभूतान्यङ्ककारो बुद्धिरव्यक्त मेव च | इन्द्रियाणि दशैकं च पञ्च चेन्द्रियगोचरा: ॥6॥ | what is chapter 13 verse 6 in bhagvad gita ? | what is chapter 13 verse 6 in bhagvad gita ?
महाभूतान्यङ्ककारो बुद्धिरव्यक्त मेव च | इन्द्रियाणि दशैकं च पञ्च चेन्द्रियगोचरा: ॥6॥ |
इच्छा द्वेष: सुखं दु:खं सङ्घातश्चेतना धृति: | एतत्क्षेत्रं समासेन सविकारमुदाहृतम् ॥7॥ | what is chapter 13 verse 7 in bhagvad gita ? | what is chapter 13 verse 7 in bhagvad gita ?
इच्छा द्वेष: सुखं दु:खं सङ्घातश्चेतना धृति: | एतत्क्षेत्रं समासेन सविकारमुदाहृतम् ॥7॥ |
अमानित्वमदम्भित्वमहिंसा क्षान्तिरार्जवम् | आचार्योपासनं शौचं स्थैर्यमात्मविनिग्रह: ॥8॥ | what is chapter 13 verse 8 in bhagvad gita ? | what is chapter 13 verse 8 in bhagvad gita ?
अमानित्वमदम्भित्वमहिंसा क्षान्तिरार्जवम् | आचार्योपासनं शौचं स्थैर्यमात्मविनिग्रह: ॥8॥ |
इन्द्रियार्थेषु वैराग्यमनहङ्कार एव च | जन्ममृत्युजराव्याधिदु:खदोषानुदर्शनम् ॥9॥ | what is chapter 13 verse 9 in bhagvad gita ? | what is chapter 13 verse 9 in bhagvad gita ?
इन्द्रियार्थेषु वैराग्यमनहङ्कार एव च | जन्ममृत्युजराव्याधिदु:खदोषानुदर्शनम् ॥9॥ |
असक्तिरनभिष्वङ्ग: पुत्रदारगृहादिषु | नित्यं च समचित्तत्वमिष्टानिष्टोपपत्तिषु ॥10॥ | what is chapter 13 verse 10 in bhagvad gita ? | what is chapter 13 verse 10 in bhagvad gita ?
असक्तिरनभिष्वङ्ग: पुत्रदारगृहादिषु | नित्यं च समचित्तत्वमिष्टानिष्टोपपत्तिषु ॥10॥ |
मयि चानन्ययोगेन भक्तिरव्यभिचारिणी | विविक्तदेशसेवित्वमरतिर्जनसंसदि ॥11॥ | what is chapter 13 verse 11 in bhagvad gita ? | what is chapter 13 verse 11 in bhagvad gita ?
मयि चानन्ययोगेन भक्तिरव्यभिचारिणी | विविक्तदेशसेवित्वमरतिर्जनसंसदि ॥11॥ |