Answer
stringlengths 40
241
| question
stringlengths 43
45
| text
stringlengths 84
287
|
---|---|---|
धृतराष्ट्र उवाच | धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः | मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय ॥1॥ | what is chapter 1 verse 1 in bhagvad gita ? | what is chapter 1 verse 1 in bhagvad gita ?
धृतराष्ट्र उवाच | धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः | मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय ॥1॥ |
सञ्जय उवाच । दृष्ट्वा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा । आचार्यमुपसङ्गम्य राजा वचनमब्रवीत् ॥2॥ | what is chapter 1 verse 2 in bhagvad gita ? | what is chapter 1 verse 2 in bhagvad gita ?
सञ्जय उवाच । दृष्ट्वा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा । आचार्यमुपसङ्गम्य राजा वचनमब्रवीत् ॥2॥ |
पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम् । व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता ॥3॥ | what is chapter 1 verse 3 in bhagvad gita ? | what is chapter 1 verse 3 in bhagvad gita ?
पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम् । व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता ॥3॥ |
अत्र शूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि | युयुधानो विराटश्च द्रुपदश्च महारथ: ॥4॥ | what is chapter 1 verse 4 in bhagvad gita ? | what is chapter 1 verse 4 in bhagvad gita ?
अत्र शूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि | युयुधानो विराटश्च द्रुपदश्च महारथ: ॥4॥ |
धृष्टकेतुश्चेकितान: काशिराजश्च वीर्यवान् | पुरुजित्कुन्तिभोजश्च शैयश्च नरपुङ्गव: ॥5॥ युधामन्युश्च विक्रान्त उत्तमौजाश्च वीर्यवान् | | what is chapter 1 verse 5 in bhagvad gita ? | what is chapter 1 verse 5 in bhagvad gita ?
धृष्टकेतुश्चेकितान: काशिराजश्च वीर्यवान् | पुरुजित्कुन्तिभोजश्च शैयश्च नरपुङ्गव: ॥5॥ युधामन्युश्च विक्रान्त उत्तमौजाश्च वीर्यवान् | |
सौभद्रो द्रौपदेयाश्च सर्व एव महारथा: ॥6॥ | what is chapter 1 verse 6 in bhagvad gita ? | what is chapter 1 verse 6 in bhagvad gita ?
सौभद्रो द्रौपदेयाश्च सर्व एव महारथा: ॥6॥ |
अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम | नायका मम सैन्यस्य संज्ञार्थं तान्ब्रवीमि ते ॥7॥ | what is chapter 1 verse 7 in bhagvad gita ? | what is chapter 1 verse 7 in bhagvad gita ?
अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम | नायका मम सैन्यस्य संज्ञार्थं तान्ब्रवीमि ते ॥7॥ |
भवान्भीष्मश्च कर्णश्च कृपश्च समितिञ्जय: | अश्वत्थामा विकर्णश्च सौमदत्तिस्तथैव च ॥8॥ | what is chapter 1 verse 8 in bhagvad gita ? | what is chapter 1 verse 8 in bhagvad gita ?
भवान्भीष्मश्च कर्णश्च कृपश्च समितिञ्जय: | अश्वत्थामा विकर्णश्च सौमदत्तिस्तथैव च ॥8॥ |
अन्ये च बहव: शूरा मदर्थे त्यक्तजीविता: | नानाशस्त्रप्रहरणा: सर्वे युद्धविशारदा: ॥9॥ | what is chapter 1 verse 9 in bhagvad gita ? | what is chapter 1 verse 9 in bhagvad gita ?
अन्ये च बहव: शूरा मदर्थे त्यक्तजीविता: | नानाशस्त्रप्रहरणा: सर्वे युद्धविशारदा: ॥9॥ |
अपर्याप्तं तदस्माकं बलं भीष्माभिरक्षितम् | पर्याप्तं त्विदमेतेषां बलं भीमाभिरक्षितम् ॥10॥ | what is chapter 1 verse 10 in bhagvad gita ? | what is chapter 1 verse 10 in bhagvad gita ?
अपर्याप्तं तदस्माकं बलं भीष्माभिरक्षितम् | पर्याप्तं त्विदमेतेषां बलं भीमाभिरक्षितम् ॥10॥ |
अयनेषु च सर्वेषु यथाभागमवस्थिता: | भीष्ममेवाभिरक्षन्तु भवन्त: सर्व एव हि ॥11॥ | what is chapter 1 verse 11 in bhagvad gita ? | what is chapter 1 verse 11 in bhagvad gita ?
अयनेषु च सर्वेषु यथाभागमवस्थिता: | भीष्ममेवाभिरक्षन्तु भवन्त: सर्व एव हि ॥11॥ |
तस्य सञ्जनयन्हर्षं कुरुवृद्ध: पितामह: | सिंहनादं विनद्योच्चै: शङ्खं दध्मौ प्रतापवान् ॥12॥ | what is chapter 1 verse 12 in bhagvad gita ? | what is chapter 1 verse 12 in bhagvad gita ?
तस्य सञ्जनयन्हर्षं कुरुवृद्ध: पितामह: | सिंहनादं विनद्योच्चै: शङ्खं दध्मौ प्रतापवान् ॥12॥ |
तत: शङ्खाश्च भेर्यश्च पणवानकगोमुखा: | सहसैवाभ्यहन्यन्त स शब्दस्तुमुलोऽभवत् ॥13॥ | what is chapter 1 verse 13 in bhagvad gita ? | what is chapter 1 verse 13 in bhagvad gita ?
तत: शङ्खाश्च भेर्यश्च पणवानकगोमुखा: | सहसैवाभ्यहन्यन्त स शब्दस्तुमुलोऽभवत् ॥13॥ |
तत: श्वेतैर्हयैर्युक्ते महति स्यन्दने स्थितौ | माधव: पाण्डवश्चैव दिव्यौ शङ्खौ प्रदध्मतु: ॥14॥ | what is chapter 1 verse 14 in bhagvad gita ? | what is chapter 1 verse 14 in bhagvad gita ?
तत: श्वेतैर्हयैर्युक्ते महति स्यन्दने स्थितौ | माधव: पाण्डवश्चैव दिव्यौ शङ्खौ प्रदध्मतु: ॥14॥ |
पाञ्चजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनञ्जय: | पौण्ड्रं दध्मौ महाशङ्खं भीमकर्मा वृकोदर: ॥15॥ | what is chapter 1 verse 15 in bhagvad gita ? | what is chapter 1 verse 15 in bhagvad gita ?
पाञ्चजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनञ्जय: | पौण्ड्रं दध्मौ महाशङ्खं भीमकर्मा वृकोदर: ॥15॥ |
अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिर: | नकुल: सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ ॥16॥ | what is chapter 1 verse 16 in bhagvad gita ? | what is chapter 1 verse 16 in bhagvad gita ?
अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिर: | नकुल: सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ ॥16॥ |
काश्यश्च परमेष्वास: शिखण्डी च महारथ: | धृष्टद्युम्नो विराटश्च सात्यकिश्चापराजित: ॥17॥ | what is chapter 1 verse 17 in bhagvad gita ? | what is chapter 1 verse 17 in bhagvad gita ?
काश्यश्च परमेष्वास: शिखण्डी च महारथ: | धृष्टद्युम्नो विराटश्च सात्यकिश्चापराजित: ॥17॥ |
द्रुपदो द्रौपदेयाश्च सर्वश: पृथिवीपते | सौभद्रश्च महाबाहु: शङ्खान्दध्मु: पृथक् पृथक् ॥18॥ | what is chapter 1 verse 18 in bhagvad gita ? | what is chapter 1 verse 18 in bhagvad gita ?
द्रुपदो द्रौपदेयाश्च सर्वश: पृथिवीपते | सौभद्रश्च महाबाहु: शङ्खान्दध्मु: पृथक् पृथक् ॥18॥ |
स घोषो धार्तराष्ट्राणां हृदयानि व्यदारयत् | नभश्च पृथिवीं चैव तुमुलो नुनादयन् ॥19॥ | what is chapter 1 verse 19 in bhagvad gita ? | what is chapter 1 verse 19 in bhagvad gita ?
स घोषो धार्तराष्ट्राणां हृदयानि व्यदारयत् | नभश्च पृथिवीं चैव तुमुलो नुनादयन् ॥19॥ |
अथ व्यवस्थितान्दृष्ट्वा धार्तराष्ट्रान् कपिध्वज: | प्रवृत्ते शस्त्रसम्पाते धनुरुद्यम्य पाण्डव: ॥20॥ हृषीकेशं तदा वाक्यमिदमाह महीपते | | what is chapter 1 verse 20 in bhagvad gita ? | what is chapter 1 verse 20 in bhagvad gita ?
अथ व्यवस्थितान्दृष्ट्वा धार्तराष्ट्रान् कपिध्वज: | प्रवृत्ते शस्त्रसम्पाते धनुरुद्यम्य पाण्डव: ॥20॥ हृषीकेशं तदा वाक्यमिदमाह महीपते | |
अर्जुन उवाच | सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थापय मेऽच्युत ॥21॥ | what is chapter 1 verse 21 in bhagvad gita ? | what is chapter 1 verse 21 in bhagvad gita ?
अर्जुन उवाच | सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थापय मेऽच्युत ॥21॥ |
यावदेतान्निरीक्षेऽहं योद्धुकामानवस्थितान् | कैर्मया सह योद्धव्यमस्मिन् रणसमुद्यमे ॥22॥ | what is chapter 1 verse 22 in bhagvad gita ? | what is chapter 1 verse 22 in bhagvad gita ?
यावदेतान्निरीक्षेऽहं योद्धुकामानवस्थितान् | कैर्मया सह योद्धव्यमस्मिन् रणसमुद्यमे ॥22॥ |
योत्स्यमानानवेक्षेऽहं य एतेऽत्र समागता: | धार्तराष्ट्रस्य दुर्बुद्धेर्युद्धे प्रियचिकीर्षव: ॥23॥ | what is chapter 1 verse 23 in bhagvad gita ? | what is chapter 1 verse 23 in bhagvad gita ?
योत्स्यमानानवेक्षेऽहं य एतेऽत्र समागता: | धार्तराष्ट्रस्य दुर्बुद्धेर्युद्धे प्रियचिकीर्षव: ॥23॥ |
सञ्जय उवाच | एवमुक्तो हृषीकेशो गुडाकेशेन भारत | सेनयोरुभयोर्मध्ये स्थापयित्वा रथोत्तमम् ॥24॥ | what is chapter 1 verse 24 in bhagvad gita ? | what is chapter 1 verse 24 in bhagvad gita ?
सञ्जय उवाच | एवमुक्तो हृषीकेशो गुडाकेशेन भारत | सेनयोरुभयोर्मध्ये स्थापयित्वा रथोत्तमम् ॥24॥ |
भीष्मद्रोणप्रमुखत: सर्वेषां च महीक्षिताम् | उवाच पार्थ पश्यैतान्समवेतान्कुरूनिति ॥25॥ | what is chapter 1 verse 25 in bhagvad gita ? | what is chapter 1 verse 25 in bhagvad gita ?
भीष्मद्रोणप्रमुखत: सर्वेषां च महीक्षिताम् | उवाच पार्थ पश्यैतान्समवेतान्कुरूनिति ॥25॥ |
तत्रापश्यत्स्थितान् पार्थ: पितृ नथ पितामहान् | आचार्यान्मातुलान्भ्रातृ न्पुत्रान्पौत्रान्सखींस्तथा ॥26॥ श्वशुरान्सुहृदश्चैव सेनयोरुभयोरपि | | what is chapter 1 verse 26 in bhagvad gita ? | what is chapter 1 verse 26 in bhagvad gita ?
तत्रापश्यत्स्थितान् पार्थ: पितृ नथ पितामहान् | आचार्यान्मातुलान्भ्रातृ न्पुत्रान्पौत्रान्सखींस्तथा ॥26॥ श्वशुरान्सुहृदश्चैव सेनयोरुभयोरपि | |
तान्समीक्ष्य स कौन्तेय: सर्वान्बन्धूनवस्थितान् ॥27॥ कृपया परयाविष्टो विषीदन्निदमब्रवीत् | | what is chapter 1 verse 27 in bhagvad gita ? | what is chapter 1 verse 27 in bhagvad gita ?
तान्समीक्ष्य स कौन्तेय: सर्वान्बन्धूनवस्थितान् ॥27॥ कृपया परयाविष्टो विषीदन्निदमब्रवीत् | |
अर्जुन उवाच | दृष्ट्वेमं स्वजनं कृष्ण युयुत्सुं समुपस्थितम् ॥28॥ | what is chapter 1 verse 28 in bhagvad gita ? | what is chapter 1 verse 28 in bhagvad gita ?
अर्जुन उवाच | दृष्ट्वेमं स्वजनं कृष्ण युयुत्सुं समुपस्थितम् ॥28॥ |
सीदन्ति मम गात्राणि मुखं च परिशुष्यति | वेपथुश्च शरीरे मे रोमहर्षश्च जायते ॥29॥ | what is chapter 1 verse 29 in bhagvad gita ? | what is chapter 1 verse 29 in bhagvad gita ?
सीदन्ति मम गात्राणि मुखं च परिशुष्यति | वेपथुश्च शरीरे मे रोमहर्षश्च जायते ॥29॥ |
गाण्डीवं स्रंसते हस्तात्वक्चै व परिदह्यते | न च शक्नोम्यवस्थातुं भ्रमतीव च मे मन: ॥30॥ | what is chapter 1 verse 30 in bhagvad gita ? | what is chapter 1 verse 30 in bhagvad gita ?
गाण्डीवं स्रंसते हस्तात्वक्चै व परिदह्यते | न च शक्नोम्यवस्थातुं भ्रमतीव च मे मन: ॥30॥ |
निमित्तानि च पश्यामि विपरीतानि केशव | न च श्रेयोऽनुपश्यामि हत्वा स्वजनमाहवे ॥31॥ | what is chapter 1 verse 31 in bhagvad gita ? | what is chapter 1 verse 31 in bhagvad gita ?
निमित्तानि च पश्यामि विपरीतानि केशव | न च श्रेयोऽनुपश्यामि हत्वा स्वजनमाहवे ॥31॥ |
न काङ्क्षे विजयं कृष्ण न च राज्यं सुखानि च | किं नो राज्येन गोविन्द किं भोगैर्जीवितेन वा ॥32॥ | what is chapter 1 verse 32 in bhagvad gita ? | what is chapter 1 verse 32 in bhagvad gita ?
न काङ्क्षे विजयं कृष्ण न च राज्यं सुखानि च | किं नो राज्येन गोविन्द किं भोगैर्जीवितेन वा ॥32॥ |
येषामर्थे काङ्क्षितं नो राज्यं भोगा: सुखानि च | त इमेऽवस्थिता युद्धे प्राणांस्त्यक्त्वा धनानि च ॥33॥ | what is chapter 1 verse 33 in bhagvad gita ? | what is chapter 1 verse 33 in bhagvad gita ?
येषामर्थे काङ्क्षितं नो राज्यं भोगा: सुखानि च | त इमेऽवस्थिता युद्धे प्राणांस्त्यक्त्वा धनानि च ॥33॥ |
आचार्या: पितर: पुत्रास्तथैव च पितामहा: | मातुला: श्वशुरा: पौत्रा: श्याला: सम्बन्धिनस्तथा ॥34॥ | what is chapter 1 verse 34 in bhagvad gita ? | what is chapter 1 verse 34 in bhagvad gita ?
आचार्या: पितर: पुत्रास्तथैव च पितामहा: | मातुला: श्वशुरा: पौत्रा: श्याला: सम्बन्धिनस्तथा ॥34॥ |
एतान्न हन्तुमिच्छामि घ्नतोऽपि मधुसूदन | अपि त्रैलोक्यराज्यस्य हेतो: किं नु महीकृते ॥35॥ | what is chapter 1 verse 35 in bhagvad gita ? | what is chapter 1 verse 35 in bhagvad gita ?
एतान्न हन्तुमिच्छामि घ्नतोऽपि मधुसूदन | अपि त्रैलोक्यराज्यस्य हेतो: किं नु महीकृते ॥35॥ |
निहत्य धार्तराष्ट्रान्न: का प्रीति: स्याज्जनार्दन | पापमेवाश्रयेदस्मान्हत्वैतानाततायिन: || 36 || | what is chapter 1 verse 36 in bhagvad gita ? | what is chapter 1 verse 36 in bhagvad gita ?
निहत्य धार्तराष्ट्रान्न: का प्रीति: स्याज्जनार्दन | पापमेवाश्रयेदस्मान्हत्वैतानाततायिन: || 36 || |
तस्मान्नार्हा वयं हन्तुं धार्तराष्ट्रान्स्वबान्धवान् | स्वजनं हि कथं हत्वा सुखिन: स्याम माधव ॥37॥ | what is chapter 1 verse 37 in bhagvad gita ? | what is chapter 1 verse 37 in bhagvad gita ?
तस्मान्नार्हा वयं हन्तुं धार्तराष्ट्रान्स्वबान्धवान् | स्वजनं हि कथं हत्वा सुखिन: स्याम माधव ॥37॥ |
यद्यप्येते न पश्यन्ति लोभोपहतचेतस: | कुलक्षयकृतं दोषं मित्रद्रोहे च पातकम् ॥38॥ | what is chapter 1 verse 38 in bhagvad gita ? | what is chapter 1 verse 38 in bhagvad gita ?
यद्यप्येते न पश्यन्ति लोभोपहतचेतस: | कुलक्षयकृतं दोषं मित्रद्रोहे च पातकम् ॥38॥ |
कथं न ज्ञेयमस्माभि: पापादस्मान्निवर्तितुम् | कुलक्षयकृतं दोषं प्रपश्यद्भिर्जनार्दन ॥39॥ | what is chapter 1 verse 39 in bhagvad gita ? | what is chapter 1 verse 39 in bhagvad gita ?
कथं न ज्ञेयमस्माभि: पापादस्मान्निवर्तितुम् | कुलक्षयकृतं दोषं प्रपश्यद्भिर्जनार्दन ॥39॥ |
कुलक्षये प्रणश्यन्ति कुलधर्मा: सनातना: | धर्मे नष्टे कुलं कृत्स्नमधर्मोऽभिभवत्युत ॥40॥ | what is chapter 1 verse 40 in bhagvad gita ? | what is chapter 1 verse 40 in bhagvad gita ?
कुलक्षये प्रणश्यन्ति कुलधर्मा: सनातना: | धर्मे नष्टे कुलं कृत्स्नमधर्मोऽभिभवत्युत ॥40॥ |
अधर्माभिभवात्कृष्ण प्रदुष्यन्ति कुलस्त्रिय: | स्त्रीषु दुष्टासु वार्ष्णेय जायते वर्णसङ्कर: ॥41॥ | what is chapter 1 verse 41 in bhagvad gita ? | what is chapter 1 verse 41 in bhagvad gita ?
अधर्माभिभवात्कृष्ण प्रदुष्यन्ति कुलस्त्रिय: | स्त्रीषु दुष्टासु वार्ष्णेय जायते वर्णसङ्कर: ॥41॥ |
सङ्करो नरकायैव कुलघ्नानां कुलस्य च | पतन्ति पितरो ह्येषां लुप्तपिण्डोदकक्रिया: ॥42॥ | what is chapter 1 verse 42 in bhagvad gita ? | what is chapter 1 verse 42 in bhagvad gita ?
सङ्करो नरकायैव कुलघ्नानां कुलस्य च | पतन्ति पितरो ह्येषां लुप्तपिण्डोदकक्रिया: ॥42॥ |
दोषैरेतै: कुलघ्नानां वर्णसङ्करकारकै: | उत्साद्यन्ते जातिधर्मा: कुलधर्माश्च शाश्वता: ॥43॥ | what is chapter 1 verse 43 in bhagvad gita ? | what is chapter 1 verse 43 in bhagvad gita ?
दोषैरेतै: कुलघ्नानां वर्णसङ्करकारकै: | उत्साद्यन्ते जातिधर्मा: कुलधर्माश्च शाश्वता: ॥43॥ |
उत्सन्नकुलधर्माणां मनुष्याणां जनार्दन | नरकेऽनियतं वासो भवतीत्यनुशुश्रुम ॥44॥ | what is chapter 1 verse 44 in bhagvad gita ? | what is chapter 1 verse 44 in bhagvad gita ?
उत्सन्नकुलधर्माणां मनुष्याणां जनार्दन | नरकेऽनियतं वासो भवतीत्यनुशुश्रुम ॥44॥ |
अहो बत महत्पापं कर्तुं व्यवसिता वयम् | यद्राज्यसुखलोभेन हन्तुं स्वजनमुद्यता: ॥45॥ | what is chapter 1 verse 45 in bhagvad gita ? | what is chapter 1 verse 45 in bhagvad gita ?
अहो बत महत्पापं कर्तुं व्यवसिता वयम् | यद्राज्यसुखलोभेन हन्तुं स्वजनमुद्यता: ॥45॥ |
यदि मामप्रतीकारमशस्त्रं शस्त्रपाणय: | धार्तराष्ट्रा रणे हन्युस्तन्मे क्षेमतरं भवेत् ॥46॥ | what is chapter 1 verse 46 in bhagvad gita ? | what is chapter 1 verse 46 in bhagvad gita ?
यदि मामप्रतीकारमशस्त्रं शस्त्रपाणय: | धार्तराष्ट्रा रणे हन्युस्तन्मे क्षेमतरं भवेत् ॥46॥ |
सञ्जय उवाच | एवमुक्त्वार्जुन: सङ्ख्ये रथोपस्थ उपाविशत् | विसृज्य सशरं चापं शोकसंविग्नमानस: ॥47॥ | what is chapter 1 verse 47 in bhagvad gita ? | what is chapter 1 verse 47 in bhagvad gita ?
सञ्जय उवाच | एवमुक्त्वार्जुन: सङ्ख्ये रथोपस्थ उपाविशत् | विसृज्य सशरं चापं शोकसंविग्नमानस: ॥47॥ |
सञ्जय उवाच | तं तथा कृपयाविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम् | विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदन: ॥1॥ | what is chapter 2 verse 1 in bhagvad gita ? | what is chapter 2 verse 1 in bhagvad gita ?
सञ्जय उवाच | तं तथा कृपयाविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम् | विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदन: ॥1॥ |
श्रीभगवानुवाच | कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम् | अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन ॥2॥ | what is chapter 2 verse 2 in bhagvad gita ? | what is chapter 2 verse 2 in bhagvad gita ?
श्रीभगवानुवाच | कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम् | अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन ॥2॥ |
क्लैब्यं मा स्म गम: पार्थ नैतत्तवय्युपपद्यते | क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप ॥3॥ | what is chapter 2 verse 3 in bhagvad gita ? | what is chapter 2 verse 3 in bhagvad gita ?
क्लैब्यं मा स्म गम: पार्थ नैतत्तवय्युपपद्यते | क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप ॥3॥ |
अर्जुन उवाच | कथं भीष्ममहं सङ्ख्ये द्रोणं च मधुसूदन | इषुभि: प्रतियोत्स्यामि पूजार्हावरिसूदन ॥4॥ | what is chapter 2 verse 4 in bhagvad gita ? | what is chapter 2 verse 4 in bhagvad gita ?
अर्जुन उवाच | कथं भीष्ममहं सङ्ख्ये द्रोणं च मधुसूदन | इषुभि: प्रतियोत्स्यामि पूजार्हावरिसूदन ॥4॥ |
गुरूनहत्वा हि महानुभावान् श्रेयो भोक्तुं भैक्ष्यमपीह लोके | हत्वार्थकामांस्तु गुरूनिहैव भुञ्जीय भोगान् रुधिरप्रदिग्धान् ॥5॥ | what is chapter 2 verse 5 in bhagvad gita ? | what is chapter 2 verse 5 in bhagvad gita ?
गुरूनहत्वा हि महानुभावान् श्रेयो भोक्तुं भैक्ष्यमपीह लोके | हत्वार्थकामांस्तु गुरूनिहैव भुञ्जीय भोगान् रुधिरप्रदिग्धान् ॥5॥ |
न चैतद्विद्म: कतरन्नो गरीयो यद्वा जयेम यदि वा नो जयेयु: | यानेव हत्वा न जिजीविषाम स्तेऽवस्थिता: प्रमुखे धार्तराष्ट्रा: ॥6॥ | what is chapter 2 verse 6 in bhagvad gita ? | what is chapter 2 verse 6 in bhagvad gita ?
न चैतद्विद्म: कतरन्नो गरीयो यद्वा जयेम यदि वा नो जयेयु: | यानेव हत्वा न जिजीविषाम स्तेऽवस्थिता: प्रमुखे धार्तराष्ट्रा: ॥6॥ |
कार्पण्यदोषोपहतस्वभाव: पृच्छामि त्वां धर्मसम्मूढचेता: | यच्छ्रेय: स्यान्निश्चितं ब्रूहि तन्मे शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम् ॥7॥ | what is chapter 2 verse 7 in bhagvad gita ? | what is chapter 2 verse 7 in bhagvad gita ?
कार्पण्यदोषोपहतस्वभाव: पृच्छामि त्वां धर्मसम्मूढचेता: | यच्छ्रेय: स्यान्निश्चितं ब्रूहि तन्मे शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम् ॥7॥ |
न हि प्रपश्यामि ममापनुद्याद् यच्छोकमुच्छोषणमिन्द्रियाणाम् | अवाप्य भूमावसपत्नमृद्धं राज्यं सुराणामपि चाधिपत्यम् ॥8॥ | what is chapter 2 verse 8 in bhagvad gita ? | what is chapter 2 verse 8 in bhagvad gita ?
न हि प्रपश्यामि ममापनुद्याद् यच्छोकमुच्छोषणमिन्द्रियाणाम् | अवाप्य भूमावसपत्नमृद्धं राज्यं सुराणामपि चाधिपत्यम् ॥8॥ |
सञ्जय उवाच | एवमुक्त्वा हृषीकेशं गुडाकेश: परन्तप | न योत्स्य इति गोविन्दमुक्त्वा तूष्णीं बभूव ह ॥9॥ | what is chapter 2 verse 9 in bhagvad gita ? | what is chapter 2 verse 9 in bhagvad gita ?
सञ्जय उवाच | एवमुक्त्वा हृषीकेशं गुडाकेश: परन्तप | न योत्स्य इति गोविन्दमुक्त्वा तूष्णीं बभूव ह ॥9॥ |
तमुवाच हृषीकेश: प्रहसन्निव भारत | सेनयोरुभयोर्मध्ये विषीदन्तमिदं वच: ॥10॥ | what is chapter 2 verse 10 in bhagvad gita ? | what is chapter 2 verse 10 in bhagvad gita ?
तमुवाच हृषीकेश: प्रहसन्निव भारत | सेनयोरुभयोर्मध्ये विषीदन्तमिदं वच: ॥10॥ |
श्रीभगवानुवाच | अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे | गतासूनगतासूंश्च नानुशोचन्ति पण्डिता: ॥11॥ | what is chapter 2 verse 11 in bhagvad gita ? | what is chapter 2 verse 11 in bhagvad gita ?
श्रीभगवानुवाच | अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे | गतासूनगतासूंश्च नानुशोचन्ति पण्डिता: ॥11॥ |
न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपा | न चैव न भविष्याम: सर्वे वयमत: परम् ॥12॥ | what is chapter 2 verse 12 in bhagvad gita ? | what is chapter 2 verse 12 in bhagvad gita ?
न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपा | न चैव न भविष्याम: सर्वे वयमत: परम् ॥12॥ |
देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा | तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति ॥13॥ | what is chapter 2 verse 13 in bhagvad gita ? | what is chapter 2 verse 13 in bhagvad gita ?
देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा | तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति ॥13॥ |
मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदु: खदा: | आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत ॥14॥ | what is chapter 2 verse 14 in bhagvad gita ? | what is chapter 2 verse 14 in bhagvad gita ?
मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदु: खदा: | आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत ॥14॥ |
यं हि न व्यथयन्त्येते पुरुषं पुरुषर्षभ | समदु:खसुखं धीरं सोऽमृतत्वाय कल्पते ॥15॥ | what is chapter 2 verse 15 in bhagvad gita ? | what is chapter 2 verse 15 in bhagvad gita ?
यं हि न व्यथयन्त्येते पुरुषं पुरुषर्षभ | समदु:खसुखं धीरं सोऽमृतत्वाय कल्पते ॥15॥ |
नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सत: | उभयोरपि दृष्टोऽन्तस्त्वनयोस्तत्वदर्शिभि: ॥16॥ | what is chapter 2 verse 16 in bhagvad gita ? | what is chapter 2 verse 16 in bhagvad gita ?
नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सत: | उभयोरपि दृष्टोऽन्तस्त्वनयोस्तत्वदर्शिभि: ॥16॥ |
अविनाशि तु तद्विद्धि येन सर्वमिदं ततम् | विनाशमव्ययस्यास्य न कश्चित्कर्तुमर्हति ॥17॥ | what is chapter 2 verse 17 in bhagvad gita ? | what is chapter 2 verse 17 in bhagvad gita ?
अविनाशि तु तद्विद्धि येन सर्वमिदं ततम् | विनाशमव्ययस्यास्य न कश्चित्कर्तुमर्हति ॥17॥ |
अन्तवन्त इमे देहा नित्यस्योक्ता: शरीरिण: | अनाशिनोऽप्रमेयस्य तस्माद्युध्यस्व भारत ॥18॥ | what is chapter 2 verse 18 in bhagvad gita ? | what is chapter 2 verse 18 in bhagvad gita ?
अन्तवन्त इमे देहा नित्यस्योक्ता: शरीरिण: | अनाशिनोऽप्रमेयस्य तस्माद्युध्यस्व भारत ॥18॥ |
य एनं वेत्ति हन्तारं यश्चैनं मन्यते हतम् | उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते ॥19॥ | what is chapter 2 verse 19 in bhagvad gita ? | what is chapter 2 verse 19 in bhagvad gita ?
य एनं वेत्ति हन्तारं यश्चैनं मन्यते हतम् | उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते ॥19॥ |
न जायते म्रियते वा कदाचि नायं भूत्वा भविता वा न भूय: | अजो नित्य: शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे ॥20॥ | what is chapter 2 verse 20 in bhagvad gita ? | what is chapter 2 verse 20 in bhagvad gita ?
न जायते म्रियते वा कदाचि नायं भूत्वा भविता वा न भूय: | अजो नित्य: शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे ॥20॥ |
वेदाविनाशिनं नित्यं य एनमजमव्ययम् | कथं स पुरुष: पार्थ कं घातयति हन्ति कम् ॥21॥ | what is chapter 2 verse 21 in bhagvad gita ? | what is chapter 2 verse 21 in bhagvad gita ?
वेदाविनाशिनं नित्यं य एनमजमव्ययम् | कथं स पुरुष: पार्थ कं घातयति हन्ति कम् ॥21॥ |
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि | तथा शरीराणि विहाय जीर्णा न्यन्यानि संयाति नवानि देही ॥22॥ | what is chapter 2 verse 22 in bhagvad gita ? | what is chapter 2 verse 22 in bhagvad gita ?
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि | तथा शरीराणि विहाय जीर्णा न्यन्यानि संयाति नवानि देही ॥22॥ |
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक: | न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत: ॥23॥ | what is chapter 2 verse 23 in bhagvad gita ? | what is chapter 2 verse 23 in bhagvad gita ?
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक: | न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत: ॥23॥ |
अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च | नित्य: सर्वगत: स्थाणुरचलोऽयं सनातन: ॥24॥ | what is chapter 2 verse 24 in bhagvad gita ? | what is chapter 2 verse 24 in bhagvad gita ?
अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च | नित्य: सर्वगत: स्थाणुरचलोऽयं सनातन: ॥24॥ |
अव्यक्तोऽयमचिन्त्योऽयमविकार्योऽयमुच्यते | तस्मादेवं विदित्वैनं नानुशोचितुमर्हसि ॥25॥ | what is chapter 2 verse 25 in bhagvad gita ? | what is chapter 2 verse 25 in bhagvad gita ?
अव्यक्तोऽयमचिन्त्योऽयमविकार्योऽयमुच्यते | तस्मादेवं विदित्वैनं नानुशोचितुमर्हसि ॥25॥ |
अथ चैनं नित्यजातं नित्यं वा मन्यसे मृतम् | तथापि त्वं महाबाहो नैवं शोचितुमर्हसि ॥26॥ | what is chapter 2 verse 26 in bhagvad gita ? | what is chapter 2 verse 26 in bhagvad gita ?
अथ चैनं नित्यजातं नित्यं वा मन्यसे मृतम् | तथापि त्वं महाबाहो नैवं शोचितुमर्हसि ॥26॥ |
जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च | तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि ॥27॥ | what is chapter 2 verse 27 in bhagvad gita ? | what is chapter 2 verse 27 in bhagvad gita ?
जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च | तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि ॥27॥ |
अव्यक्तादीनि भूतानि व्यक्तमध्यानि भारत | अव्यक्तनिधनान्येव तत्र का परिदेवना ॥28॥ | what is chapter 2 verse 28 in bhagvad gita ? | what is chapter 2 verse 28 in bhagvad gita ?
अव्यक्तादीनि भूतानि व्यक्तमध्यानि भारत | अव्यक्तनिधनान्येव तत्र का परिदेवना ॥28॥ |
आश्चर्यवत्पश्यति कश्चिदेन माश्चर्यवद्वदति तथैव चान्य: | आश्चर्यवच्चैनमन्य: शृ्णोति श्रुत्वाप्येनं वेद न चैव कश्चित् ॥29॥ | what is chapter 2 verse 29 in bhagvad gita ? | what is chapter 2 verse 29 in bhagvad gita ?
आश्चर्यवत्पश्यति कश्चिदेन माश्चर्यवद्वदति तथैव चान्य: | आश्चर्यवच्चैनमन्य: शृ्णोति श्रुत्वाप्येनं वेद न चैव कश्चित् ॥29॥ |
देही नित्यमवध्योऽयं देहे सर्वस्य भारत | तस्मात्सर्वाणि भूतानि न त्वं शोचितुमर्हसि ॥30॥ | what is chapter 2 verse 30 in bhagvad gita ? | what is chapter 2 verse 30 in bhagvad gita ?
देही नित्यमवध्योऽयं देहे सर्वस्य भारत | तस्मात्सर्वाणि भूतानि न त्वं शोचितुमर्हसि ॥30॥ |
स्वधर्ममपि चावेक्ष्य न विकम्पितुमर्हसि | धर्म्याद्धि युद्धाच्छ्रेयोऽन्यत्क्षत्रियस्य न विद्यते ॥31॥ | what is chapter 2 verse 31 in bhagvad gita ? | what is chapter 2 verse 31 in bhagvad gita ?
स्वधर्ममपि चावेक्ष्य न विकम्पितुमर्हसि | धर्म्याद्धि युद्धाच्छ्रेयोऽन्यत्क्षत्रियस्य न विद्यते ॥31॥ |
यदृच्छया चोपपन्नं स्वर्गद्वारमपावृतम् | सुखिन: क्षत्रिया: पार्थ लभन्ते युद्धमीदृशम् ॥32॥ | what is chapter 2 verse 32 in bhagvad gita ? | what is chapter 2 verse 32 in bhagvad gita ?
यदृच्छया चोपपन्नं स्वर्गद्वारमपावृतम् | सुखिन: क्षत्रिया: पार्थ लभन्ते युद्धमीदृशम् ॥32॥ |
अथ चेतत्वमिमं धर्म्यं संग्रामं न करिष्यसि | तत: स्वधर्मं कीर्तिं च हित्वा पापमवाप्स्यसि ॥33॥ | what is chapter 2 verse 33 in bhagvad gita ? | what is chapter 2 verse 33 in bhagvad gita ?
अथ चेतत्वमिमं धर्म्यं संग्रामं न करिष्यसि | तत: स्वधर्मं कीर्तिं च हित्वा पापमवाप्स्यसि ॥33॥ |
अकीर्तिं चापि भूतानि कथयिष्यन्ति तेऽव्ययाम् | सम्भावितस्य चाकीर्ति र्मरणादतिरिच्यते ॥34॥ | what is chapter 2 verse 34 in bhagvad gita ? | what is chapter 2 verse 34 in bhagvad gita ?
अकीर्तिं चापि भूतानि कथयिष्यन्ति तेऽव्ययाम् | सम्भावितस्य चाकीर्ति र्मरणादतिरिच्यते ॥34॥ |
भयाद्रणादुपरतं मंस्यन्ते त्वां महारथा: | येषां च त्वं बहुमतो भूत्वा यास्यसि लाघवम् ॥35॥ | what is chapter 2 verse 35 in bhagvad gita ? | what is chapter 2 verse 35 in bhagvad gita ?
भयाद्रणादुपरतं मंस्यन्ते त्वां महारथा: | येषां च त्वं बहुमतो भूत्वा यास्यसि लाघवम् ॥35॥ |
अवाच्यवादांश्च बहून्वदिष्यन्ति तवाहिता: | निन्दन्तस्तव सामर्थ्यं ततो दु:खतरं नु किम् ॥36॥ | what is chapter 2 verse 36 in bhagvad gita ? | what is chapter 2 verse 36 in bhagvad gita ?
अवाच्यवादांश्च बहून्वदिष्यन्ति तवाहिता: | निन्दन्तस्तव सामर्थ्यं ततो दु:खतरं नु किम् ॥36॥ |
हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम् | तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चय: ॥37॥ | what is chapter 2 verse 37 in bhagvad gita ? | what is chapter 2 verse 37 in bhagvad gita ?
हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम् | तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चय: ॥37॥ |
सुखदु:खे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ | ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि ॥38॥ | what is chapter 2 verse 38 in bhagvad gita ? | what is chapter 2 verse 38 in bhagvad gita ?
सुखदु:खे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ | ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि ॥38॥ |
एषा तेऽभिहिता साङ्ख्ये बुद्धिर्योगे त्विमां शृणु | बुद्ध्या युक्तो यया पार्थ कर्मबन्धं प्रहास्यसि ॥39॥ | what is chapter 2 verse 39 in bhagvad gita ? | what is chapter 2 verse 39 in bhagvad gita ?
एषा तेऽभिहिता साङ्ख्ये बुद्धिर्योगे त्विमां शृणु | बुद्ध्या युक्तो यया पार्थ कर्मबन्धं प्रहास्यसि ॥39॥ |
नेहाभिक्रमनाशोऽस्ति प्रत्यवायो न विद्यते | स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात् ॥40॥ | what is chapter 2 verse 40 in bhagvad gita ? | what is chapter 2 verse 40 in bhagvad gita ?
नेहाभिक्रमनाशोऽस्ति प्रत्यवायो न विद्यते | स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात् ॥40॥ |
व्यवसायात्मिका बुद्धिरेकेह कुरुनन्दन | बहुशाखा ह्यनन्ताश्च बुद्धयोऽव्यवसायिनाम् ॥41॥ | what is chapter 2 verse 41 in bhagvad gita ? | what is chapter 2 verse 41 in bhagvad gita ?
व्यवसायात्मिका बुद्धिरेकेह कुरुनन्दन | बहुशाखा ह्यनन्ताश्च बुद्धयोऽव्यवसायिनाम् ॥41॥ |
यामिमां पुष्पितां वाचं प्रवदन्त्यविपश्चित: | वेदवादरता: पार्थ नान्यदस्तीति वादिन: ॥42॥ कामात्मान: स्वर्गपरा जन्मकर्मफलप्रदाम् | क्रियाविशेषबहुलां भोगैश्वर्यगतिं प्रति ॥43॥ | what is chapter 2 verse 42 in bhagvad gita ? | what is chapter 2 verse 42 in bhagvad gita ?
यामिमां पुष्पितां वाचं प्रवदन्त्यविपश्चित: | वेदवादरता: पार्थ नान्यदस्तीति वादिन: ॥42॥ कामात्मान: स्वर्गपरा जन्मकर्मफलप्रदाम् | क्रियाविशेषबहुलां भोगैश्वर्यगतिं प्रति ॥43॥ |
यामिमां पुष्पितां वाचं प्रवदन्त्यविपश्चित: | वेदवादरता: पार्थ नान्यदस्तीति वादिन: ॥42॥ कामात्मान: स्वर्गपरा जन्मकर्मफलप्रदाम् | क्रियाविशेषबहुलां भोगैश्वर्यगतिं प्रति ॥43॥ | what is chapter 2 verse 43 in bhagvad gita ? | what is chapter 2 verse 43 in bhagvad gita ?
यामिमां पुष्पितां वाचं प्रवदन्त्यविपश्चित: | वेदवादरता: पार्थ नान्यदस्तीति वादिन: ॥42॥ कामात्मान: स्वर्गपरा जन्मकर्मफलप्रदाम् | क्रियाविशेषबहुलां भोगैश्वर्यगतिं प्रति ॥43॥ |
भोगैश्वर्यप्रसक्तानां तयापहृतचेतसाम् | व्यवसायात्मिका बुद्धि: समाधौ न विधीयते ॥44॥ | what is chapter 2 verse 44 in bhagvad gita ? | what is chapter 2 verse 44 in bhagvad gita ?
भोगैश्वर्यप्रसक्तानां तयापहृतचेतसाम् | व्यवसायात्मिका बुद्धि: समाधौ न विधीयते ॥44॥ |
त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन | निर्द्वन्द्वो नित्यसत्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान् ॥45॥ | what is chapter 2 verse 45 in bhagvad gita ? | what is chapter 2 verse 45 in bhagvad gita ?
त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन | निर्द्वन्द्वो नित्यसत्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान् ॥45॥ |
यावानर्थ उदपाने सर्वत: सम्प्लुतोदके | तावान्सर्वेषु वेदेषु ब्राह्मणस्य विजानत: ॥46॥ | what is chapter 2 verse 46 in bhagvad gita ? | what is chapter 2 verse 46 in bhagvad gita ?
यावानर्थ उदपाने सर्वत: सम्प्लुतोदके | तावान्सर्वेषु वेदेषु ब्राह्मणस्य विजानत: ॥46॥ |
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन | मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि || 47 || | what is chapter 2 verse 47 in bhagvad gita ? | what is chapter 2 verse 47 in bhagvad gita ?
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन | मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि || 47 || |
योगस्थ: कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय | सिद्ध्यसिद्ध्यो: समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते ॥48॥ | what is chapter 2 verse 48 in bhagvad gita ? | what is chapter 2 verse 48 in bhagvad gita ?
योगस्थ: कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय | सिद्ध्यसिद्ध्यो: समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते ॥48॥ |
दूरेण ह्यवरं कर्म बुद्धियोगाद्धनञ्जय | बुद्धौ शरणमन्विच्छ कृपणा: फलहेतव: ॥49॥ | what is chapter 2 verse 49 in bhagvad gita ? | what is chapter 2 verse 49 in bhagvad gita ?
दूरेण ह्यवरं कर्म बुद्धियोगाद्धनञ्जय | बुद्धौ शरणमन्विच्छ कृपणा: फलहेतव: ॥49॥ |
बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते | तस्माद्योगाय युज्यस्व योग: कर्मसु कौशलम् ॥50॥ | what is chapter 2 verse 50 in bhagvad gita ? | what is chapter 2 verse 50 in bhagvad gita ?
बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते | तस्माद्योगाय युज्यस्व योग: कर्मसु कौशलम् ॥50॥ |
कर्मजं बुद्धियुक्ता हि फलं त्यक्त्वा मनीषिण: | जन्मबन्धविनिर्मुक्ता: पदं गच्छन्त्यनामयम् ॥51॥ | what is chapter 2 verse 51 in bhagvad gita ? | what is chapter 2 verse 51 in bhagvad gita ?
कर्मजं बुद्धियुक्ता हि फलं त्यक्त्वा मनीषिण: | जन्मबन्धविनिर्मुक्ता: पदं गच्छन्त्यनामयम् ॥51॥ |
यदा ते मोहकलिलं बुद्धिर्व्यतितरिष्यति | तदा गन्तासि निर्वेदं श्रोतव्यस्य श्रुतस्य च ॥52॥ | what is chapter 2 verse 52 in bhagvad gita ? | what is chapter 2 verse 52 in bhagvad gita ?
यदा ते मोहकलिलं बुद्धिर्व्यतितरिष्यति | तदा गन्तासि निर्वेदं श्रोतव्यस्य श्रुतस्य च ॥52॥ |
श्रुतिविप्रतिपन्ना ते यदा स्थास्यति निश्चला | समाधावचला बुद्धिस्तदा योगमवाप्स्यसि ॥53॥ | what is chapter 2 verse 53 in bhagvad gita ? | what is chapter 2 verse 53 in bhagvad gita ?
श्रुतिविप्रतिपन्ना ते यदा स्थास्यति निश्चला | समाधावचला बुद्धिस्तदा योगमवाप्स्यसि ॥53॥ |
End of preview. Expand
in Dataset Viewer.
No dataset card yet
- Downloads last month
- 4