Answer
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यो यो यां यां तनुं भक्त: श्रद्धयार्चितुमिच्छति | तस्य तस्याचलां श्रद्धां तामेव विदधाम्यहम् ॥21॥ | what is chapter 7 verse 21 in bhagvad gita ? | what is chapter 7 verse 21 in bhagvad gita ?
यो यो यां यां तनुं भक्त: श्रद्धयार्चितुमिच्छति | तस्य तस्याचलां श्रद्धां तामेव विदधाम्यहम् ॥21॥ |
स तया श्रद्धया युक्तस्तस्याराधनमीहते | लभते च तत: कामान्मयैव विहितान्हि तान् ॥22॥ | what is chapter 7 verse 22 in bhagvad gita ? | what is chapter 7 verse 22 in bhagvad gita ?
स तया श्रद्धया युक्तस्तस्याराधनमीहते | लभते च तत: कामान्मयैव विहितान्हि तान् ॥22॥ |
अन्तवत्तु फलं तेषां तद्भवत्यल्पमेधसाम् | देवान्देवयजो यान्ति मद्भक्ता यान्ति मामपि ॥23॥ | what is chapter 7 verse 23 in bhagvad gita ? | what is chapter 7 verse 23 in bhagvad gita ?
अन्तवत्तु फलं तेषां तद्भवत्यल्पमेधसाम् | देवान्देवयजो यान्ति मद्भक्ता यान्ति मामपि ॥23॥ |
अव्यक्तं व्यक्तिमापन्नं मन्यन्ते मामबुद्धय: | परं भावमजानन्तो ममाव्ययमनुत्तमम् ॥24॥ | what is chapter 7 verse 24 in bhagvad gita ? | what is chapter 7 verse 24 in bhagvad gita ?
अव्यक्तं व्यक्तिमापन्नं मन्यन्ते मामबुद्धय: | परं भावमजानन्तो ममाव्ययमनुत्तमम् ॥24॥ |
नाहं प्रकाश: सर्वस्य योगमायासमावृत: | मूढोऽयं नाभिजानाति लोको मामजमव्ययम् ॥25॥ | what is chapter 7 verse 25 in bhagvad gita ? | what is chapter 7 verse 25 in bhagvad gita ?
नाहं प्रकाश: सर्वस्य योगमायासमावृत: | मूढोऽयं नाभिजानाति लोको मामजमव्ययम् ॥25॥ |
वेदाहं समतीतानि वर्तमानानि चार्जुन | भविष्याणि च भूतानि मां तु वेद न कश्चन ॥26॥ | what is chapter 7 verse 26 in bhagvad gita ? | what is chapter 7 verse 26 in bhagvad gita ?
वेदाहं समतीतानि वर्तमानानि चार्जुन | भविष्याणि च भूतानि मां तु वेद न कश्चन ॥26॥ |
इच्छाद्वेषसमुत्थेन द्वन्द्वमोहेन भारत | सर्वभूतानि सम्मोहं सर्गे यान्ति परन्तप ॥27॥ | what is chapter 7 verse 27 in bhagvad gita ? | what is chapter 7 verse 27 in bhagvad gita ?
इच्छाद्वेषसमुत्थेन द्वन्द्वमोहेन भारत | सर्वभूतानि सम्मोहं सर्गे यान्ति परन्तप ॥27॥ |
येषां त्वन्तगतं पापं जनानां पुण्यकर्मणाम् | ते द्वन्द्वमोहनिर्मुक्ता भजन्ते मां दृढव्रता: ॥28॥ | what is chapter 7 verse 28 in bhagvad gita ? | what is chapter 7 verse 28 in bhagvad gita ?
येषां त्वन्तगतं पापं जनानां पुण्यकर्मणाम् | ते द्वन्द्वमोहनिर्मुक्ता भजन्ते मां दृढव्रता: ॥28॥ |
जरामरणमोक्षाय मामाश्रित्य यतन्ति ये | ते ब्रह्म तद्विदु: कृत्स्नमध्यात्मं कर्म चाखिलम् ॥29॥ | what is chapter 7 verse 29 in bhagvad gita ? | what is chapter 7 verse 29 in bhagvad gita ?
जरामरणमोक्षाय मामाश्रित्य यतन्ति ये | ते ब्रह्म तद्विदु: कृत्स्नमध्यात्मं कर्म चाखिलम् ॥29॥ |
साधिभूताधिदैवं मां साधियज्ञं च ये विदु: | प्रयाणकालेऽपि च मां ते विदुर्युक्तचेतस: ॥30॥ | what is chapter 7 verse 30 in bhagvad gita ? | what is chapter 7 verse 30 in bhagvad gita ?
साधिभूताधिदैवं मां साधियज्ञं च ये विदु: | प्रयाणकालेऽपि च मां ते विदुर्युक्तचेतस: ॥30॥ |
अर्जुन उवाच | किं तद्ब्रह्म किमध्यात्मं किं कर्म पुरुषोत्तम | अधिभूतं च किं प्रोक्तमधिदैवं किमुच्यते ॥1॥ | what is chapter 8 verse 1 in bhagvad gita ? | what is chapter 8 verse 1 in bhagvad gita ?
अर्जुन उवाच | किं तद्ब्रह्म किमध्यात्मं किं कर्म पुरुषोत्तम | अधिभूतं च किं प्रोक्तमधिदैवं किमुच्यते ॥1॥ |
अधियज्ञ: कथं कोऽत्र देहेऽस्मिन्मधुसूदन | प्रयाणकाले च कथं ज्ञेयोऽसि नियतात्मभि: ॥2॥ | what is chapter 8 verse 2 in bhagvad gita ? | what is chapter 8 verse 2 in bhagvad gita ?
अधियज्ञ: कथं कोऽत्र देहेऽस्मिन्मधुसूदन | प्रयाणकाले च कथं ज्ञेयोऽसि नियतात्मभि: ॥2॥ |
श्रीभगवानुवाच | अक्षरं ब्रह्म परमं स्वभावोऽध्यात्ममुच्यते | भूतभावोद्भवकरो विसर्ग: कर्मसञ्ज्ञित: ॥3॥ | what is chapter 8 verse 3 in bhagvad gita ? | what is chapter 8 verse 3 in bhagvad gita ?
श्रीभगवानुवाच | अक्षरं ब्रह्म परमं स्वभावोऽध्यात्ममुच्यते | भूतभावोद्भवकरो विसर्ग: कर्मसञ्ज्ञित: ॥3॥ |
अधिभूतं क्षरो भाव: पुरुषश्चाधिदैवतम् | अधियज्ञोऽहमेवात्र देहे देहभृतां वर ॥4॥ | what is chapter 8 verse 4 in bhagvad gita ? | what is chapter 8 verse 4 in bhagvad gita ?
अधिभूतं क्षरो भाव: पुरुषश्चाधिदैवतम् | अधियज्ञोऽहमेवात्र देहे देहभृतां वर ॥4॥ |
अन्तकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम् | य: प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशय: ॥5॥ | what is chapter 8 verse 5 in bhagvad gita ? | what is chapter 8 verse 5 in bhagvad gita ?
अन्तकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम् | य: प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशय: ॥5॥ |
यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम् | तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद्भावभावित: ॥6॥ | what is chapter 8 verse 6 in bhagvad gita ? | what is chapter 8 verse 6 in bhagvad gita ?
यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम् | तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद्भावभावित: ॥6॥ |
तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च | मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम् ॥7॥ | what is chapter 8 verse 7 in bhagvad gita ? | what is chapter 8 verse 7 in bhagvad gita ?
तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च | मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम् ॥7॥ |
अभ्यासयोगयुक्तेन चेतसा नान्यगामिना | परमं पुरुषं दिव्यं याति पार्थानुचिन्तयन् ॥8॥ | what is chapter 8 verse 8 in bhagvad gita ? | what is chapter 8 verse 8 in bhagvad gita ?
अभ्यासयोगयुक्तेन चेतसा नान्यगामिना | परमं पुरुषं दिव्यं याति पार्थानुचिन्तयन् ॥8॥ |
कविं पुराणमनुशासितार मणोरणीयांसमनुस्मरेद्य: | सर्वस्य धातारमचिन्त्यरूप मादित्यवर्णं तमस: परस्तात् ॥9॥ | what is chapter 8 verse 9 in bhagvad gita ? | what is chapter 8 verse 9 in bhagvad gita ?
कविं पुराणमनुशासितार मणोरणीयांसमनुस्मरेद्य: | सर्वस्य धातारमचिन्त्यरूप मादित्यवर्णं तमस: परस्तात् ॥9॥ |
प्रयाणकाले मनसाचलेन भक्त्या युक्तो योगबलेन चैव | भ्रुवोर्मध्ये प्राणमावेश्य सम्यक् स तं परं पुरुषमुपैति दिव्यम् ॥10॥ | what is chapter 8 verse 10 in bhagvad gita ? | what is chapter 8 verse 10 in bhagvad gita ?
प्रयाणकाले मनसाचलेन भक्त्या युक्तो योगबलेन चैव | भ्रुवोर्मध्ये प्राणमावेश्य सम्यक् स तं परं पुरुषमुपैति दिव्यम् ॥10॥ |
यदक्षरं वेदविदो वदन्ति विशन्ति यद्यतयो वीतरागा: | यदिच्छन्तो ब्रह्मचर्यं चरन्ति तत्ते पदं संग्रहेण प्रवक्ष्ये ॥11॥ | what is chapter 8 verse 11 in bhagvad gita ? | what is chapter 8 verse 11 in bhagvad gita ?
यदक्षरं वेदविदो वदन्ति विशन्ति यद्यतयो वीतरागा: | यदिच्छन्तो ब्रह्मचर्यं चरन्ति तत्ते पदं संग्रहेण प्रवक्ष्ये ॥11॥ |
सर्वद्वाराणि संयम्य मनो हृदि निरुध्य च | मूर्ध्न्याधायात्मन: प्राणमास्थितो योगधारणाम् ॥12॥ | what is chapter 8 verse 12 in bhagvad gita ? | what is chapter 8 verse 12 in bhagvad gita ?
सर्वद्वाराणि संयम्य मनो हृदि निरुध्य च | मूर्ध्न्याधायात्मन: प्राणमास्थितो योगधारणाम् ॥12॥ |
ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन्मामनुस्मरन् | य: प्रयाति त्यजन्देहं स याति परमां गतिम् ॥13॥ | what is chapter 8 verse 13 in bhagvad gita ? | what is chapter 8 verse 13 in bhagvad gita ?
ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन्मामनुस्मरन् | य: प्रयाति त्यजन्देहं स याति परमां गतिम् ॥13॥ |
अनन्यचेता: सततं यो मां स्मरति नित्यश: | तस्याहं सुलभ: पार्थ नित्ययुक्तस्य योगिन: ॥14॥ | what is chapter 8 verse 14 in bhagvad gita ? | what is chapter 8 verse 14 in bhagvad gita ?
अनन्यचेता: सततं यो मां स्मरति नित्यश: | तस्याहं सुलभ: पार्थ नित्ययुक्तस्य योगिन: ॥14॥ |
मामुपेत्य पुनर्जन्म दु:खालयमशाश्वतम् | नाप्नुवन्ति महात्मान: संसिद्धिं परमां गता: ॥15॥ | what is chapter 8 verse 15 in bhagvad gita ? | what is chapter 8 verse 15 in bhagvad gita ?
मामुपेत्य पुनर्जन्म दु:खालयमशाश्वतम् | नाप्नुवन्ति महात्मान: संसिद्धिं परमां गता: ॥15॥ |
आब्रह्मभुवनाल्लोका: पुनरावर्तिनोऽर्जुन | मामुपेत्य तु कौन्तेय पुनर्जन्म न विद्यते ॥16॥ | what is chapter 8 verse 16 in bhagvad gita ? | what is chapter 8 verse 16 in bhagvad gita ?
आब्रह्मभुवनाल्लोका: पुनरावर्तिनोऽर्जुन | मामुपेत्य तु कौन्तेय पुनर्जन्म न विद्यते ॥16॥ |
सहस्रयुगपर्यन्तमहर्यद्ब्रह्मणो विदु: | रात्रिं युगसहस्रान्तां तेऽहोरात्रविदो जना: ॥17॥ | what is chapter 8 verse 17 in bhagvad gita ? | what is chapter 8 verse 17 in bhagvad gita ?
सहस्रयुगपर्यन्तमहर्यद्ब्रह्मणो विदु: | रात्रिं युगसहस्रान्तां तेऽहोरात्रविदो जना: ॥17॥ |
अव्यक्ताद्व्यक्तय: सर्वा: प्रभवन्त्यहरागमे | रात्र्यागमे प्रलीयन्ते तत्रैवाव्यक्तसञ्ज्ञके ॥18॥ | what is chapter 8 verse 18 in bhagvad gita ? | what is chapter 8 verse 18 in bhagvad gita ?
अव्यक्ताद्व्यक्तय: सर्वा: प्रभवन्त्यहरागमे | रात्र्यागमे प्रलीयन्ते तत्रैवाव्यक्तसञ्ज्ञके ॥18॥ |
भूतग्राम: स एवायं भूत्वा भूत्वा प्रलीयते | रात्र्यागमेऽवश: पार्थ प्रभवत्यहरागमे ॥19॥ | what is chapter 8 verse 19 in bhagvad gita ? | what is chapter 8 verse 19 in bhagvad gita ?
भूतग्राम: स एवायं भूत्वा भूत्वा प्रलीयते | रात्र्यागमेऽवश: पार्थ प्रभवत्यहरागमे ॥19॥ |
परस्तस्मात्तु भावोऽन्योऽव्यक्तोऽव्यक्तात्सनातन: | य: स सर्वेषु भूतेषु नश्यत्सु न विनश्यति ॥20॥ | what is chapter 8 verse 20 in bhagvad gita ? | what is chapter 8 verse 20 in bhagvad gita ?
परस्तस्मात्तु भावोऽन्योऽव्यक्तोऽव्यक्तात्सनातन: | य: स सर्वेषु भूतेषु नश्यत्सु न विनश्यति ॥20॥ |
अव्यक्तोऽक्षर इत्युक्तस्तमाहु: परमां गतिम् | यं प्राप्य न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम ॥21॥ | what is chapter 8 verse 21 in bhagvad gita ? | what is chapter 8 verse 21 in bhagvad gita ?
अव्यक्तोऽक्षर इत्युक्तस्तमाहु: परमां गतिम् | यं प्राप्य न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम ॥21॥ |
पुरुष: स पर: पार्थ भक्त्या लभ्यस्त्वनन्यया | यस्यान्त:स्थानि भूतानि येन सर्वमिदं ततम् ॥22॥ | what is chapter 8 verse 22 in bhagvad gita ? | what is chapter 8 verse 22 in bhagvad gita ?
पुरुष: स पर: पार्थ भक्त्या लभ्यस्त्वनन्यया | यस्यान्त:स्थानि भूतानि येन सर्वमिदं ततम् ॥22॥ |
यत्र काले त्वनावृत्तिमावृत्तिं चैव योगिन: | प्रयाता यान्ति तं कालं वक्ष्यामि भरतर्षभ ॥23॥ | what is chapter 8 verse 23 in bhagvad gita ? | what is chapter 8 verse 23 in bhagvad gita ?
यत्र काले त्वनावृत्तिमावृत्तिं चैव योगिन: | प्रयाता यान्ति तं कालं वक्ष्यामि भरतर्षभ ॥23॥ |
अग्निर्ज्योतिरह: शुक्ल: षण्मासा उत्तरायणम् | तत्र प्रयाता गच्छन्ति ब्रह्म ब्रह्मविदो जना: ॥24॥ | what is chapter 8 verse 24 in bhagvad gita ? | what is chapter 8 verse 24 in bhagvad gita ?
अग्निर्ज्योतिरह: शुक्ल: षण्मासा उत्तरायणम् | तत्र प्रयाता गच्छन्ति ब्रह्म ब्रह्मविदो जना: ॥24॥ |
धूमो रात्रिस्तथा कृष्ण: षण्मासा दक्षिणायनम् | तत्र चान्द्रमसं ज्योतिर्योगी प्राप्य निवर्तते ॥25॥ | what is chapter 8 verse 25 in bhagvad gita ? | what is chapter 8 verse 25 in bhagvad gita ?
धूमो रात्रिस्तथा कृष्ण: षण्मासा दक्षिणायनम् | तत्र चान्द्रमसं ज्योतिर्योगी प्राप्य निवर्तते ॥25॥ |
शुक्लकृष्णे गती ह्येते जगत: शाश्वते मते | एकया यात्यनावृत्तिमन्ययावर्तते पुन: ॥26॥ | what is chapter 8 verse 26 in bhagvad gita ? | what is chapter 8 verse 26 in bhagvad gita ?
शुक्लकृष्णे गती ह्येते जगत: शाश्वते मते | एकया यात्यनावृत्तिमन्ययावर्तते पुन: ॥26॥ |
नैते सृती पार्थ जानन्योगी मुह्यति कश्चन | तस्मात्सर्वेषु कालेषु योगयुक्तो भवार्जुन ॥27॥ | what is chapter 8 verse 27 in bhagvad gita ? | what is chapter 8 verse 27 in bhagvad gita ?
नैते सृती पार्थ जानन्योगी मुह्यति कश्चन | तस्मात्सर्वेषु कालेषु योगयुक्तो भवार्जुन ॥27॥ |
वेदेषु यज्ञेषु तप:सु चैव दानेषु यत्पुण्यफलं प्रदिष्टम् | अत्येति तत्सर्वमिदं विदित्वा योगी परं स्थानमुपैति चाद्यम् ॥28॥ | what is chapter 8 verse 28 in bhagvad gita ? | what is chapter 8 verse 28 in bhagvad gita ?
वेदेषु यज्ञेषु तप:सु चैव दानेषु यत्पुण्यफलं प्रदिष्टम् | अत्येति तत्सर्वमिदं विदित्वा योगी परं स्थानमुपैति चाद्यम् ॥28॥ |
श्रीभगवानुवाच | इदं तु ते गुह्यतमं प्रवक्ष्याम्यनसूयवे | ज्ञानं विज्ञानसहितं यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात् ॥1॥ | what is chapter 9 verse 1 in bhagvad gita ? | what is chapter 9 verse 1 in bhagvad gita ?
श्रीभगवानुवाच | इदं तु ते गुह्यतमं प्रवक्ष्याम्यनसूयवे | ज्ञानं विज्ञानसहितं यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात् ॥1॥ |
राजविद्या राजगुह्यं पवित्रमिदमुत्तमम् | प्रत्यक्षावगमं धर्म्यं सुसुखं कर्तुमव्ययम् ॥2॥ | what is chapter 9 verse 2 in bhagvad gita ? | what is chapter 9 verse 2 in bhagvad gita ?
राजविद्या राजगुह्यं पवित्रमिदमुत्तमम् | प्रत्यक्षावगमं धर्म्यं सुसुखं कर्तुमव्ययम् ॥2॥ |
अश्रद्दधाना: पुरुषा धर्मस्यास्य परन्तप | अप्राप्य मां निवर्तन्ते मृत्युसंसारवर्त्मनि ॥3॥ | what is chapter 9 verse 3 in bhagvad gita ? | what is chapter 9 verse 3 in bhagvad gita ?
अश्रद्दधाना: पुरुषा धर्मस्यास्य परन्तप | अप्राप्य मां निवर्तन्ते मृत्युसंसारवर्त्मनि ॥3॥ |
मया ततमिदं सर्वं जगदव्यक्तमूर्तिना | मत्स्थानि सर्वभूतानि न चाहं तेष्ववस्थित: ॥4॥ | what is chapter 9 verse 4 in bhagvad gita ? | what is chapter 9 verse 4 in bhagvad gita ?
मया ततमिदं सर्वं जगदव्यक्तमूर्तिना | मत्स्थानि सर्वभूतानि न चाहं तेष्ववस्थित: ॥4॥ |
न च मत्स्थानि भूतानि पश्य मे योगमैश्वरम् | भूतभृन्न च भूतस्थो ममात्मा भूतभावन: ॥5॥ | what is chapter 9 verse 5 in bhagvad gita ? | what is chapter 9 verse 5 in bhagvad gita ?
न च मत्स्थानि भूतानि पश्य मे योगमैश्वरम् | भूतभृन्न च भूतस्थो ममात्मा भूतभावन: ॥5॥ |
यथाकाशस्थितो नित्यं वायु: सर्वत्रगो महान् | तथा सर्वाणि भूतानि मत्स्थानीत्युपधारय ॥6॥ | what is chapter 9 verse 6 in bhagvad gita ? | what is chapter 9 verse 6 in bhagvad gita ?
यथाकाशस्थितो नित्यं वायु: सर्वत्रगो महान् | तथा सर्वाणि भूतानि मत्स्थानीत्युपधारय ॥6॥ |
सर्वभूतानि कौन्तेय प्रकृतिं यान्ति मामिकाम् | कल्पक्षये पुनस्तानि कल्पादौ विसृजाम्यहम् ॥7॥ | what is chapter 9 verse 7 in bhagvad gita ? | what is chapter 9 verse 7 in bhagvad gita ?
सर्वभूतानि कौन्तेय प्रकृतिं यान्ति मामिकाम् | कल्पक्षये पुनस्तानि कल्पादौ विसृजाम्यहम् ॥7॥ |
प्रकृतिं स्वामवष्टभ्य विसृजामि पुन: पुन: | भूतग्राममिमं कृत्स्नमवशं प्रकृतेर्वशात् ॥8॥ | what is chapter 9 verse 8 in bhagvad gita ? | what is chapter 9 verse 8 in bhagvad gita ?
प्रकृतिं स्वामवष्टभ्य विसृजामि पुन: पुन: | भूतग्राममिमं कृत्स्नमवशं प्रकृतेर्वशात् ॥8॥ |
न च मां तानि कर्माणि निबध्नन्ति धनञ्जय | उदासीनवदासीनमसक्तं तेषु कर्मसु ॥9॥ | what is chapter 9 verse 9 in bhagvad gita ? | what is chapter 9 verse 9 in bhagvad gita ?
न च मां तानि कर्माणि निबध्नन्ति धनञ्जय | उदासीनवदासीनमसक्तं तेषु कर्मसु ॥9॥ |
मयाध्यक्षेण प्रकृति: सूयते सचराचरम् | हेतुनानेन कौन्तेय जगद्विपरिवर्तते ॥10॥ | what is chapter 9 verse 10 in bhagvad gita ? | what is chapter 9 verse 10 in bhagvad gita ?
मयाध्यक्षेण प्रकृति: सूयते सचराचरम् | हेतुनानेन कौन्तेय जगद्विपरिवर्तते ॥10॥ |
अवजानन्ति मां मूढा मानुषीं तनुमाश्रितम् | परं भावमजानन्तो मम भूतमहेश्वरम् ॥11॥ | what is chapter 9 verse 11 in bhagvad gita ? | what is chapter 9 verse 11 in bhagvad gita ?
अवजानन्ति मां मूढा मानुषीं तनुमाश्रितम् | परं भावमजानन्तो मम भूतमहेश्वरम् ॥11॥ |
मोघाशा मोघकर्माणो मोघज्ञाना विचेतस: | राक्षसीमासुरीं चैव प्रकृतिं मोहिनीं श्रिता: ॥12॥ | what is chapter 9 verse 12 in bhagvad gita ? | what is chapter 9 verse 12 in bhagvad gita ?
मोघाशा मोघकर्माणो मोघज्ञाना विचेतस: | राक्षसीमासुरीं चैव प्रकृतिं मोहिनीं श्रिता: ॥12॥ |
महात्मानस्तु मां पार्थ दैवीं प्रकृतिमाश्रिता: | भजन्त्यनन्यमनसो ज्ञात्वा भूतादिमव्ययम् ॥13॥ | what is chapter 9 verse 13 in bhagvad gita ? | what is chapter 9 verse 13 in bhagvad gita ?
महात्मानस्तु मां पार्थ दैवीं प्रकृतिमाश्रिता: | भजन्त्यनन्यमनसो ज्ञात्वा भूतादिमव्ययम् ॥13॥ |
सततं कीर्तयन्तो मां यतन्तश्च दृढव्रता: | नमस्यन्तश्च मां भक्त्या नित्ययुक्ता उपासते ॥14॥ | what is chapter 9 verse 14 in bhagvad gita ? | what is chapter 9 verse 14 in bhagvad gita ?
सततं कीर्तयन्तो मां यतन्तश्च दृढव्रता: | नमस्यन्तश्च मां भक्त्या नित्ययुक्ता उपासते ॥14॥ |
ज्ञानयज्ञेन चाप्यन्ये यजन्तो मामुपासते | एकत्वेन पृथक्त्वेन बहुधा विश्वतोमुखम् ॥15॥ | what is chapter 9 verse 15 in bhagvad gita ? | what is chapter 9 verse 15 in bhagvad gita ?
ज्ञानयज्ञेन चाप्यन्ये यजन्तो मामुपासते | एकत्वेन पृथक्त्वेन बहुधा विश्वतोमुखम् ॥15॥ |
अहं क्रतुरहं यज्ञ: स्वधाहमहमौषधम् | मन्त्रोऽहमहमेवाज्यमहमग्निरहं हुतम् ॥16॥ | what is chapter 9 verse 16 in bhagvad gita ? | what is chapter 9 verse 16 in bhagvad gita ?
अहं क्रतुरहं यज्ञ: स्वधाहमहमौषधम् | मन्त्रोऽहमहमेवाज्यमहमग्निरहं हुतम् ॥16॥ |
पिताहमस्य जगतो माता धाता पितामह: | वेद्यं पवित्रमोङ्कार ऋक्साम यजुरेव च ॥17॥ | what is chapter 9 verse 17 in bhagvad gita ? | what is chapter 9 verse 17 in bhagvad gita ?
पिताहमस्य जगतो माता धाता पितामह: | वेद्यं पवित्रमोङ्कार ऋक्साम यजुरेव च ॥17॥ |
गतिर्भर्ता प्रभु: साक्षी निवास: शरणं सुहृत् | प्रभव: प्रलय: स्थानं निधानं बीजमव्ययम् ॥18॥ | what is chapter 9 verse 18 in bhagvad gita ? | what is chapter 9 verse 18 in bhagvad gita ?
गतिर्भर्ता प्रभु: साक्षी निवास: शरणं सुहृत् | प्रभव: प्रलय: स्थानं निधानं बीजमव्ययम् ॥18॥ |
तपाम्यहमहं वर्षं निगृह्णम्युत्सृजामि च | अमृतं चैव मृत्युश्च सदसच्चाहमर्जुन ॥19॥ | what is chapter 9 verse 19 in bhagvad gita ? | what is chapter 9 verse 19 in bhagvad gita ?
तपाम्यहमहं वर्षं निगृह्णम्युत्सृजामि च | अमृतं चैव मृत्युश्च सदसच्चाहमर्जुन ॥19॥ |
त्रैविद्या मां सोमपा: पूतपापा यज्ञैरिष्ट्वा स्वर्गतिं प्रार्थयन्ते | ते पुण्यमासाद्य सुरेन्द्रलोक मश्नन्ति दिव्यान्दिवि देवभोगान् ॥20॥ | what is chapter 9 verse 20 in bhagvad gita ? | what is chapter 9 verse 20 in bhagvad gita ?
त्रैविद्या मां सोमपा: पूतपापा यज्ञैरिष्ट्वा स्वर्गतिं प्रार्थयन्ते | ते पुण्यमासाद्य सुरेन्द्रलोक मश्नन्ति दिव्यान्दिवि देवभोगान् ॥20॥ |
ते तं भुक्त्वा स्वर्गलोकं विशालं क्षीणे पुण्ये मर्त्यलोकं विशन्ति | एवं त्रयीधर्ममनुप्रपन्ना गतागतं कामकामा लभन्ते ॥21॥ | what is chapter 9 verse 21 in bhagvad gita ? | what is chapter 9 verse 21 in bhagvad gita ?
ते तं भुक्त्वा स्वर्गलोकं विशालं क्षीणे पुण्ये मर्त्यलोकं विशन्ति | एवं त्रयीधर्ममनुप्रपन्ना गतागतं कामकामा लभन्ते ॥21॥ |
अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जना: पर्युपासते | तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् ॥22॥ | what is chapter 9 verse 22 in bhagvad gita ? | what is chapter 9 verse 22 in bhagvad gita ?
अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जना: पर्युपासते | तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् ॥22॥ |
येऽप्यन्यदेवता भक्ता यजन्ते श्रद्धयान्विता: | तेऽपि मामेव कौन्तेय यजन्त्यविधिपूर्वकम् ॥23॥ | what is chapter 9 verse 23 in bhagvad gita ? | what is chapter 9 verse 23 in bhagvad gita ?
येऽप्यन्यदेवता भक्ता यजन्ते श्रद्धयान्विता: | तेऽपि मामेव कौन्तेय यजन्त्यविधिपूर्वकम् ॥23॥ |
अहं हि सर्वयज्ञानां भोक्ता च प्रभुरेव च | न तु मामभिजानन्ति तत्वेनातश्च्यवन्ति ते ॥24॥ | what is chapter 9 verse 24 in bhagvad gita ? | what is chapter 9 verse 24 in bhagvad gita ?
अहं हि सर्वयज्ञानां भोक्ता च प्रभुरेव च | न तु मामभिजानन्ति तत्वेनातश्च्यवन्ति ते ॥24॥ |
यान्ति देवव्रता देवान्पितॄ न्यान्ति पितृव्रता: | भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मद्याजिनोऽपि माम् ||25|| | what is chapter 9 verse 25 in bhagvad gita ? | what is chapter 9 verse 25 in bhagvad gita ?
यान्ति देवव्रता देवान्पितॄ न्यान्ति पितृव्रता: | भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मद्याजिनोऽपि माम् ||25|| |
पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति | तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मन: ॥26॥ | what is chapter 9 verse 26 in bhagvad gita ? | what is chapter 9 verse 26 in bhagvad gita ?
पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति | तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मन: ॥26॥ |
यत्करोषि यदश्नासि यज्जुहोषि ददासि यत् | यत्तपस्यसि कौन्तेय तत्कुरुष्व मदर्पणम् ॥27॥ | what is chapter 9 verse 27 in bhagvad gita ? | what is chapter 9 verse 27 in bhagvad gita ?
यत्करोषि यदश्नासि यज्जुहोषि ददासि यत् | यत्तपस्यसि कौन्तेय तत्कुरुष्व मदर्पणम् ॥27॥ |
शुभाशुभफलैरेवं मोक्ष्यसे कर्मबन्धनै: | संन्यासयोगयुक्तात्मा विमुक्तो मामुपैष्यसि ॥28॥ | what is chapter 9 verse 28 in bhagvad gita ? | what is chapter 9 verse 28 in bhagvad gita ?
शुभाशुभफलैरेवं मोक्ष्यसे कर्मबन्धनै: | संन्यासयोगयुक्तात्मा विमुक्तो मामुपैष्यसि ॥28॥ |
समोऽहं सर्वभूतेषु न मे द्वेष्योऽस्ति न प्रिय: | ये भजन्ति तु मां भक्त्या मयि ते तेषु चाप्यहम् ॥29॥ | what is chapter 9 verse 29 in bhagvad gita ? | what is chapter 9 verse 29 in bhagvad gita ?
समोऽहं सर्वभूतेषु न मे द्वेष्योऽस्ति न प्रिय: | ये भजन्ति तु मां भक्त्या मयि ते तेषु चाप्यहम् ॥29॥ |
अपि चेत्सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक् | साधुरेव स मन्तव्य: सम्यग्व्यवसितो हि स: ॥30॥ | what is chapter 9 verse 30 in bhagvad gita ? | what is chapter 9 verse 30 in bhagvad gita ?
अपि चेत्सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक् | साधुरेव स मन्तव्य: सम्यग्व्यवसितो हि स: ॥30॥ |
क्षिप्रं भवति धर्मात्मा शश्वच्छान्तिं निगच्छति | कौन्तेय प्रतिजानीहि न मे भक्त: प्रणश्यति ॥31॥ | what is chapter 9 verse 31 in bhagvad gita ? | what is chapter 9 verse 31 in bhagvad gita ?
क्षिप्रं भवति धर्मात्मा शश्वच्छान्तिं निगच्छति | कौन्तेय प्रतिजानीहि न मे भक्त: प्रणश्यति ॥31॥ |
मां हि पार्थ व्यपाश्रित्य येऽपि स्यु: पापयोनय: | स्त्रियो वैश्यास्तथा शूद्रास्तेऽपि यान्ति परां गतिम् ॥32॥ | what is chapter 9 verse 32 in bhagvad gita ? | what is chapter 9 verse 32 in bhagvad gita ?
मां हि पार्थ व्यपाश्रित्य येऽपि स्यु: पापयोनय: | स्त्रियो वैश्यास्तथा शूद्रास्तेऽपि यान्ति परां गतिम् ॥32॥ |
किं पुनर्ब्राह्मणा: पुण्या भक्ता राजर्षयस्तथा | अनित्यमसुखं लोकमिमं प्राप्य भजस्व माम् ॥33॥ | what is chapter 9 verse 33 in bhagvad gita ? | what is chapter 9 verse 33 in bhagvad gita ?
किं पुनर्ब्राह्मणा: पुण्या भक्ता राजर्षयस्तथा | अनित्यमसुखं लोकमिमं प्राप्य भजस्व माम् ॥33॥ |
मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु | मामेवैष्यसि युक्त्वैवमात्मानं मत्परायण: ॥34॥ | what is chapter 9 verse 34 in bhagvad gita ? | what is chapter 9 verse 34 in bhagvad gita ?
मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु | मामेवैष्यसि युक्त्वैवमात्मानं मत्परायण: ॥34॥ |
श्रीभगवानुवाच | भूय एव महाबाहो शृणु मे परमं वच: | यत्तेऽहं प्रीयमाणाय वक्ष्यामि हितकाम्यया ॥1॥ | what is chapter 10 verse 1 in bhagvad gita ? | what is chapter 10 verse 1 in bhagvad gita ?
श्रीभगवानुवाच | भूय एव महाबाहो शृणु मे परमं वच: | यत्तेऽहं प्रीयमाणाय वक्ष्यामि हितकाम्यया ॥1॥ |
न मे विदु: सुरगणा: प्रभवं न महर्षय: | अहमादिर्हि देवानां महर्षीणां च सर्वश: ॥2॥ | what is chapter 10 verse 2 in bhagvad gita ? | what is chapter 10 verse 2 in bhagvad gita ?
न मे विदु: सुरगणा: प्रभवं न महर्षय: | अहमादिर्हि देवानां महर्षीणां च सर्वश: ॥2॥ |
यो मामजमनादिं च वेत्ति लोकमहेश्वरम् | असम्मूढ: स मर्त्येषु सर्वपापै: प्रमुच्यते ॥3॥ | what is chapter 10 verse 3 in bhagvad gita ? | what is chapter 10 verse 3 in bhagvad gita ?
यो मामजमनादिं च वेत्ति लोकमहेश्वरम् | असम्मूढ: स मर्त्येषु सर्वपापै: प्रमुच्यते ॥3॥ |
बुद्धिर्ज्ञानमसम्मोह: क्षमा सत्यं दम: शम: | सुखं दु:खं भवोऽभावो भयं चाभयमेव च ॥4॥ अहिंसा समता तुष्टिस्तपो दानं यशोऽयशः। भवन्ति भावा भूतानां मत्त एव पृथग्विधाः॥ ॥5॥ | what is chapter 10 verse 4 in bhagvad gita ? | what is chapter 10 verse 4 in bhagvad gita ?
बुद्धिर्ज्ञानमसम्मोह: क्षमा सत्यं दम: शम: | सुखं दु:खं भवोऽभावो भयं चाभयमेव च ॥4॥ अहिंसा समता तुष्टिस्तपो दानं यशोऽयशः। भवन्ति भावा भूतानां मत्त एव पृथग्विधाः॥ ॥5॥ |
बुद्धिर्ज्ञानमसम्मोह: क्षमा सत्यं दम: शम: | सुखं दु:खं भवोऽभावो भयं चाभयमेव च ॥4॥ अहिंसा समता तुष्टिस्तपो दानं यशोऽयशः। भवन्ति भावा भूतानां मत्त एव पृथग्विधाः॥ ॥5॥ | what is chapter 10 verse 5 in bhagvad gita ? | what is chapter 10 verse 5 in bhagvad gita ?
बुद्धिर्ज्ञानमसम्मोह: क्षमा सत्यं दम: शम: | सुखं दु:खं भवोऽभावो भयं चाभयमेव च ॥4॥ अहिंसा समता तुष्टिस्तपो दानं यशोऽयशः। भवन्ति भावा भूतानां मत्त एव पृथग्विधाः॥ ॥5॥ |
महर्षय: सप्त पूर्वे चत्वारो मनवस्तथा | मद्भावा मानसा जाता येषां लोक इमा: प्रजा: ॥6॥ | what is chapter 10 verse 6 in bhagvad gita ? | what is chapter 10 verse 6 in bhagvad gita ?
महर्षय: सप्त पूर्वे चत्वारो मनवस्तथा | मद्भावा मानसा जाता येषां लोक इमा: प्रजा: ॥6॥ |
एतां विभूतिं योगं च मम यो वेत्ति तत्वत: | सोऽविकम्पेन योगेन युज्यते नात्र संशय: ॥7॥ | what is chapter 10 verse 7 in bhagvad gita ? | what is chapter 10 verse 7 in bhagvad gita ?
एतां विभूतिं योगं च मम यो वेत्ति तत्वत: | सोऽविकम्पेन योगेन युज्यते नात्र संशय: ॥7॥ |
अहं सर्वस्य प्रभवो मत्त: सर्वं प्रवर्तते | इति मत्वा भजन्ते मां बुधा भावसमन्विता: ॥8॥ | what is chapter 10 verse 8 in bhagvad gita ? | what is chapter 10 verse 8 in bhagvad gita ?
अहं सर्वस्य प्रभवो मत्त: सर्वं प्रवर्तते | इति मत्वा भजन्ते मां बुधा भावसमन्विता: ॥8॥ |
मच्चित्ता मद्गतप्राणा बोधयन्त: परस्परम् | कथयन्तश्च मां नित्यं तुष्यन्ति च रमन्ति च ॥9॥ | what is chapter 10 verse 9 in bhagvad gita ? | what is chapter 10 verse 9 in bhagvad gita ?
मच्चित्ता मद्गतप्राणा बोधयन्त: परस्परम् | कथयन्तश्च मां नित्यं तुष्यन्ति च रमन्ति च ॥9॥ |
तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम् | ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते ॥10॥ | what is chapter 10 verse 10 in bhagvad gita ? | what is chapter 10 verse 10 in bhagvad gita ?
तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम् | ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते ॥10॥ |
तेषामेवानुकम्पार्थमहमज्ञानजं तम: | नाशयाम्यात्मभावस्थो ज्ञानदीपेन भास्वता ॥11॥ | what is chapter 10 verse 11 in bhagvad gita ? | what is chapter 10 verse 11 in bhagvad gita ?
तेषामेवानुकम्पार्थमहमज्ञानजं तम: | नाशयाम्यात्मभावस्थो ज्ञानदीपेन भास्वता ॥11॥ |
अर्जुन उवाच | परं ब्रह्म परं धाम पवित्रं परमं भवान् | पुरुषं शाश्वतं दिव्यमादिदेवमजं विभुम् ॥12॥ | what is chapter 10 verse 12 in bhagvad gita ? | what is chapter 10 verse 12 in bhagvad gita ?
अर्जुन उवाच | परं ब्रह्म परं धाम पवित्रं परमं भवान् | पुरुषं शाश्वतं दिव्यमादिदेवमजं विभुम् ॥12॥ |
आहुस्त्वामृषय: सर्वे देवर्षिर्नारदस्तथा | असितो देवलो व्यास: स्वयं चैव ब्रवीषि मे ॥13॥ | what is chapter 10 verse 13 in bhagvad gita ? | what is chapter 10 verse 13 in bhagvad gita ?
आहुस्त्वामृषय: सर्वे देवर्षिर्नारदस्तथा | असितो देवलो व्यास: स्वयं चैव ब्रवीषि मे ॥13॥ |
सर्वमेतदृतं मन्ये यन्मां वदसि केशव | न हि ते भगवन्व्यक्तिं विदुर्देवा न दानवा: ॥14॥ | what is chapter 10 verse 14 in bhagvad gita ? | what is chapter 10 verse 14 in bhagvad gita ?
सर्वमेतदृतं मन्ये यन्मां वदसि केशव | न हि ते भगवन्व्यक्तिं विदुर्देवा न दानवा: ॥14॥ |
स्वयमेवात्मनात्मानं वेत्थ त्वं पुरुषोत्तम | भूतभावन भूतेश देवदेव जगत्पते ॥15॥ | what is chapter 10 verse 15 in bhagvad gita ? | what is chapter 10 verse 15 in bhagvad gita ?
स्वयमेवात्मनात्मानं वेत्थ त्वं पुरुषोत्तम | भूतभावन भूतेश देवदेव जगत्पते ॥15॥ |
वक्तुमर्हस्यशेषेण दिव्या ह्यात्मविभूतय: | याभिर्विभूतिभिर्लोकानिमांस्त्वं व्याप्य तिष्ठसि ॥16॥ | what is chapter 10 verse 16 in bhagvad gita ? | what is chapter 10 verse 16 in bhagvad gita ?
वक्तुमर्हस्यशेषेण दिव्या ह्यात्मविभूतय: | याभिर्विभूतिभिर्लोकानिमांस्त्वं व्याप्य तिष्ठसि ॥16॥ |
कथं विद्यामहं योगिंस्त्वां सदा परिचिन्तयन् | केषु केषु च भावेषु चिन्त्योऽसि भगवन्मया ॥17॥ | what is chapter 10 verse 17 in bhagvad gita ? | what is chapter 10 verse 17 in bhagvad gita ?
कथं विद्यामहं योगिंस्त्वां सदा परिचिन्तयन् | केषु केषु च भावेषु चिन्त्योऽसि भगवन्मया ॥17॥ |
विस्तरेणात्मनो योगं विभूतिं च जनार्दन | भूय: कथय तृप्तिर्हि शृण्वतो नास्ति मेऽमृतम् ॥18॥ | what is chapter 10 verse 18 in bhagvad gita ? | what is chapter 10 verse 18 in bhagvad gita ?
विस्तरेणात्मनो योगं विभूतिं च जनार्दन | भूय: कथय तृप्तिर्हि शृण्वतो नास्ति मेऽमृतम् ॥18॥ |
श्रीभगवानुवाच | हन्त ते कथयिष्यामि दिव्या ह्यात्मविभूतय: | प्राधान्यत: कुरुश्रेष्ठ नास्त्यन्तो विस्तरस्य मे ||19|| | what is chapter 10 verse 19 in bhagvad gita ? | what is chapter 10 verse 19 in bhagvad gita ?
श्रीभगवानुवाच | हन्त ते कथयिष्यामि दिव्या ह्यात्मविभूतय: | प्राधान्यत: कुरुश्रेष्ठ नास्त्यन्तो विस्तरस्य मे ||19|| |
अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थित: | अहमादिश्च मध्यं च भूतानामन्त एव च ॥20॥ | what is chapter 10 verse 20 in bhagvad gita ? | what is chapter 10 verse 20 in bhagvad gita ?
अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थित: | अहमादिश्च मध्यं च भूतानामन्त एव च ॥20॥ |
आदित्यानामहं विष्णुर्ज्योतिषां रविरंशुमान् | मरीचिर्मरुतामस्मि नक्षत्राणामहं शशी ॥21॥ | what is chapter 10 verse 21 in bhagvad gita ? | what is chapter 10 verse 21 in bhagvad gita ?
आदित्यानामहं विष्णुर्ज्योतिषां रविरंशुमान् | मरीचिर्मरुतामस्मि नक्षत्राणामहं शशी ॥21॥ |
वेदानां सामवेदोऽस्मि देवानामस्मि वासव: | इन्द्रियाणां मनश्चास्मि भूतानामस्मि चेतना ॥22॥ | what is chapter 10 verse 22 in bhagvad gita ? | what is chapter 10 verse 22 in bhagvad gita ?
वेदानां सामवेदोऽस्मि देवानामस्मि वासव: | इन्द्रियाणां मनश्चास्मि भूतानामस्मि चेतना ॥22॥ |
रुद्राणां शङ्करश्चास्मि वित्तेशो यक्षरक्षसाम् | वसूनां पावकश्चास्मि मेरु: शिखरिणामहम् ॥23॥ | what is chapter 10 verse 23 in bhagvad gita ? | what is chapter 10 verse 23 in bhagvad gita ?
रुद्राणां शङ्करश्चास्मि वित्तेशो यक्षरक्षसाम् | वसूनां पावकश्चास्मि मेरु: शिखरिणामहम् ॥23॥ |
पुरोधसां च मुख्यं मां विद्धि पार्थ बृहस्पतिम् | सेनानीनामहं स्कन्द: सरसामस्मि सागर: ॥24॥ | what is chapter 10 verse 24 in bhagvad gita ? | what is chapter 10 verse 24 in bhagvad gita ?
पुरोधसां च मुख्यं मां विद्धि पार्थ बृहस्पतिम् | सेनानीनामहं स्कन्द: सरसामस्मि सागर: ॥24॥ |
महर्षीणां भृगुरहं गिरामस्म्येकमक्षरम् | यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि स्थावराणां हिमालय: ॥25॥ | what is chapter 10 verse 25 in bhagvad gita ? | what is chapter 10 verse 25 in bhagvad gita ?
महर्षीणां भृगुरहं गिरामस्म्येकमक्षरम् | यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि स्थावराणां हिमालय: ॥25॥ |
अश्वत्थ: सर्ववृक्षाणां देवर्षीणां च नारद: | गन्धर्वाणां चित्ररथ: सिद्धानां कपिलो मुनि: ॥26॥ | what is chapter 10 verse 26 in bhagvad gita ? | what is chapter 10 verse 26 in bhagvad gita ?
अश्वत्थ: सर्ववृक्षाणां देवर्षीणां च नारद: | गन्धर्वाणां चित्ररथ: सिद्धानां कपिलो मुनि: ॥26॥ |
उच्चै:श्रवसमश्वानां विद्धि माममृतोद्भवम् | ऐरावतं गजेन्द्राणां नराणां च नराधिपम् ॥27॥ | what is chapter 10 verse 27 in bhagvad gita ? | what is chapter 10 verse 27 in bhagvad gita ?
उच्चै:श्रवसमश्वानां विद्धि माममृतोद्भवम् | ऐरावतं गजेन्द्राणां नराणां च नराधिपम् ॥27॥ |
आयुधानामहं वज्रं धेनूनामस्मि कामधुक् | प्रजनश्चास्मि कन्दर्प: सर्पाणामस्मि वासुकि: ॥28॥ | what is chapter 10 verse 28 in bhagvad gita ? | what is chapter 10 verse 28 in bhagvad gita ?
आयुधानामहं वज्रं धेनूनामस्मि कामधुक् | प्रजनश्चास्मि कन्दर्प: सर्पाणामस्मि वासुकि: ॥28॥ |