Answer
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श्रद्धावान् लभते ज्ञानं तत्पर: संयतेन्द्रिय: | ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति ॥39॥ | what is chapter 4 verse 39 in bhagvad gita ? | what is chapter 4 verse 39 in bhagvad gita ?
श्रद्धावान् लभते ज्ञानं तत्पर: संयतेन्द्रिय: | ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति ॥39॥ |
अज्ञश्चाश्रद्दधानश्च संशयात्मा विनश्यति | नायं लोकोऽस्ति न परो न सुखं संशयात्मन: ॥40॥ | what is chapter 4 verse 40 in bhagvad gita ? | what is chapter 4 verse 40 in bhagvad gita ?
अज्ञश्चाश्रद्दधानश्च संशयात्मा विनश्यति | नायं लोकोऽस्ति न परो न सुखं संशयात्मन: ॥40॥ |
योगसंन्यस्तकर्माणं ज्ञानसञ्छिन्नसंशयम् | आत्मवन्तं न कर्माणि निबध्नन्ति धनञ्जय ॥41॥ | what is chapter 4 verse 41 in bhagvad gita ? | what is chapter 4 verse 41 in bhagvad gita ?
योगसंन्यस्तकर्माणं ज्ञानसञ्छिन्नसंशयम् | आत्मवन्तं न कर्माणि निबध्नन्ति धनञ्जय ॥41॥ |
तस्मादज्ञानसम्भूतं हृत्स्थं ज्ञानासिनात्मन: | छित्त्वैनं संशयं योगमातिष्ठोत्तिष्ठ भारत ॥42॥ | what is chapter 4 verse 42 in bhagvad gita ? | what is chapter 4 verse 42 in bhagvad gita ?
तस्मादज्ञानसम्भूतं हृत्स्थं ज्ञानासिनात्मन: | छित्त्वैनं संशयं योगमातिष्ठोत्तिष्ठ भारत ॥42॥ |
अर्जुन उवाच | संन्यासं कर्मणां कृष्ण पुनर्योगं च शंससि | यच्छ्रेय एतयोरेकं तन्मे ब्रूहि सुनिश्चितम् ॥1॥ | what is chapter 5 verse 1 in bhagvad gita ? | what is chapter 5 verse 1 in bhagvad gita ?
अर्जुन उवाच | संन्यासं कर्मणां कृष्ण पुनर्योगं च शंससि | यच्छ्रेय एतयोरेकं तन्मे ब्रूहि सुनिश्चितम् ॥1॥ |
श्रीभगवानुवाच | संन्यास: कर्मयोगश्च नि:श्रेयसकरावुभौ | तयोस्तु कर्मसंन्यासात्कर्मयोगो विशिष्यते ॥2॥ | what is chapter 5 verse 2 in bhagvad gita ? | what is chapter 5 verse 2 in bhagvad gita ?
श्रीभगवानुवाच | संन्यास: कर्मयोगश्च नि:श्रेयसकरावुभौ | तयोस्तु कर्मसंन्यासात्कर्मयोगो विशिष्यते ॥2॥ |
ज्ञेय: स नित्यसंन्यासी यो न द्वेष्टि न काङ् क्षति | निर्द्वन्द्वो हि महाबाहो सुखं बन्धात्प्रमुच्यते ॥3॥ | what is chapter 5 verse 3 in bhagvad gita ? | what is chapter 5 verse 3 in bhagvad gita ?
ज्ञेय: स नित्यसंन्यासी यो न द्वेष्टि न काङ् क्षति | निर्द्वन्द्वो हि महाबाहो सुखं बन्धात्प्रमुच्यते ॥3॥ |
साङ्ख्ययोगौ पृथग्बाला: प्रवदन्ति न पण्डिता: | एकमप्यास्थित: सम्यगुभयोर्विन्दते फलम् ॥4॥ | what is chapter 5 verse 4 in bhagvad gita ? | what is chapter 5 verse 4 in bhagvad gita ?
साङ्ख्ययोगौ पृथग्बाला: प्रवदन्ति न पण्डिता: | एकमप्यास्थित: सम्यगुभयोर्विन्दते फलम् ॥4॥ |
यत्साङ्ख्यै: प्राप्यते स्थानं तद्योगैरपि गम्यते | एकं साङ्ख्यं च योगं च य: पश्यति स पश्यति ॥5॥ | what is chapter 5 verse 5 in bhagvad gita ? | what is chapter 5 verse 5 in bhagvad gita ?
यत्साङ्ख्यै: प्राप्यते स्थानं तद्योगैरपि गम्यते | एकं साङ्ख्यं च योगं च य: पश्यति स पश्यति ॥5॥ |
संन्यासस्तु महाबाहो दु:खमाप्तुमयोगत: | योगयुक्तो मुनिर्ब्रह्म नचिरेणाधिगच्छति ॥6॥ | what is chapter 5 verse 6 in bhagvad gita ? | what is chapter 5 verse 6 in bhagvad gita ?
संन्यासस्तु महाबाहो दु:खमाप्तुमयोगत: | योगयुक्तो मुनिर्ब्रह्म नचिरेणाधिगच्छति ॥6॥ |
योगयुक्तो विशुद्धात्मा विजितात्मा जितेन्द्रिय: | सर्वभूतात्मभूतात्मा कुर्वन्नपि न लिप्यते ॥7॥ | what is chapter 5 verse 7 in bhagvad gita ? | what is chapter 5 verse 7 in bhagvad gita ?
योगयुक्तो विशुद्धात्मा विजितात्मा जितेन्द्रिय: | सर्वभूतात्मभूतात्मा कुर्वन्नपि न लिप्यते ॥7॥ |
नैव किञ्चित्करोमीति युक्तो मन्येत तत्ववित् | पश्यञ्शृण्वन्स्पृशञ्जिघ्रन्नश्नन्गच्छन्स्वपञ्श्वसन् ॥8॥ प्रलपन्विसृजन्गृह्ण्न्नुन्मिषन्निमिषन्नपि | इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेषु वर्तन्त इति धारयन् ॥9॥ | what is chapter 5 verse 8 in bhagvad gita ? | what is chapter 5 verse 8 in bhagvad gita ?
नैव किञ्चित्करोमीति युक्तो मन्येत तत्ववित् | पश्यञ्शृण्वन्स्पृशञ्जिघ्रन्नश्नन्गच्छन्स्वपञ्श्वसन् ॥8॥ प्रलपन्विसृजन्गृह्ण्न्नुन्मिषन्निमिषन्नपि | इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेषु वर्तन्त इति धारयन् ॥9॥ |
नैव किञ्चित्करोमीति युक्तो मन्येत तत्ववित् | पश्यञ्शृण्वन्स्पृशञ्जिघ्रन्नश्नन्गच्छन्स्वपञ्श्वसन् ॥8॥ प्रलपन्विसृजन्गृह्ण्न्नुन्मिषन्निमिषन्नपि | इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेषु वर्तन्त इति धारयन् ॥9॥ | what is chapter 5 verse 9 in bhagvad gita ? | what is chapter 5 verse 9 in bhagvad gita ?
नैव किञ्चित्करोमीति युक्तो मन्येत तत्ववित् | पश्यञ्शृण्वन्स्पृशञ्जिघ्रन्नश्नन्गच्छन्स्वपञ्श्वसन् ॥8॥ प्रलपन्विसृजन्गृह्ण्न्नुन्मिषन्निमिषन्नपि | इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेषु वर्तन्त इति धारयन् ॥9॥ |
ब्रह्मण्याधाय कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा करोति य: | लिप्यते न स पापेन पद्मपत्रमिवाम्भसा ॥10॥ | what is chapter 5 verse 10 in bhagvad gita ? | what is chapter 5 verse 10 in bhagvad gita ?
ब्रह्मण्याधाय कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा करोति य: | लिप्यते न स पापेन पद्मपत्रमिवाम्भसा ॥10॥ |
कायेन मनसा बुद्ध्या केवलैरिन्द्रियैरपि | योगिन: कर्म कुर्वन्ति सङ्गं त्यक्त्वात्मशुद्धये ॥11॥ | what is chapter 5 verse 11 in bhagvad gita ? | what is chapter 5 verse 11 in bhagvad gita ?
कायेन मनसा बुद्ध्या केवलैरिन्द्रियैरपि | योगिन: कर्म कुर्वन्ति सङ्गं त्यक्त्वात्मशुद्धये ॥11॥ |
युक्त: कर्मफलं त्यक्त्वा शान्तिमाप्नोति नैष्ठिकीम् | अयुक्त: कामकारेण फले सक्तो निबध्यते ॥12॥ | what is chapter 5 verse 12 in bhagvad gita ? | what is chapter 5 verse 12 in bhagvad gita ?
युक्त: कर्मफलं त्यक्त्वा शान्तिमाप्नोति नैष्ठिकीम् | अयुक्त: कामकारेण फले सक्तो निबध्यते ॥12॥ |
सर्वकर्माणि मनसा संन्यस्यास्ते सुखं वशी | नवद्वारे पुरे देही नैव कुर्वन्न कारयन् ॥13॥ | what is chapter 5 verse 13 in bhagvad gita ? | what is chapter 5 verse 13 in bhagvad gita ?
सर्वकर्माणि मनसा संन्यस्यास्ते सुखं वशी | नवद्वारे पुरे देही नैव कुर्वन्न कारयन् ॥13॥ |
न कर्तृत्वं न कर्माणि लोकस्य सृजति प्रभु: | न कर्मफलसंयोगं स्वभावस्तु प्रवर्तते ॥14॥ | what is chapter 5 verse 14 in bhagvad gita ? | what is chapter 5 verse 14 in bhagvad gita ?
न कर्तृत्वं न कर्माणि लोकस्य सृजति प्रभु: | न कर्मफलसंयोगं स्वभावस्तु प्रवर्तते ॥14॥ |
नादत्ते कस्यचित्पापं न चैव सुकृतं विभु: | अज्ञानेनावृतं ज्ञानं तेन मुह्यन्ति जन्तव: ॥15॥ | what is chapter 5 verse 15 in bhagvad gita ? | what is chapter 5 verse 15 in bhagvad gita ?
नादत्ते कस्यचित्पापं न चैव सुकृतं विभु: | अज्ञानेनावृतं ज्ञानं तेन मुह्यन्ति जन्तव: ॥15॥ |
ज्ञानेन तु तदज्ञानं येषां नाशितमात्मन: | तेषामादित्यवज्ज्ञानं प्रकाशयति तत्परम् ॥16॥ | what is chapter 5 verse 16 in bhagvad gita ? | what is chapter 5 verse 16 in bhagvad gita ?
ज्ञानेन तु तदज्ञानं येषां नाशितमात्मन: | तेषामादित्यवज्ज्ञानं प्रकाशयति तत्परम् ॥16॥ |
तद्बुद्धयस्तदात्मानस्तन्निष्ठास्तत्परायणा: | गच्छन्त्यपुनरावृत्तिं ज्ञाननिर्धूतकल्मषा: ॥17॥ | what is chapter 5 verse 17 in bhagvad gita ? | what is chapter 5 verse 17 in bhagvad gita ?
तद्बुद्धयस्तदात्मानस्तन्निष्ठास्तत्परायणा: | गच्छन्त्यपुनरावृत्तिं ज्ञाननिर्धूतकल्मषा: ॥17॥ |
विद्याविनयसम्पन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि | शुनि चैव श्वपाके च पण्डिता: समदर्शिन: ॥18॥ | what is chapter 5 verse 18 in bhagvad gita ? | what is chapter 5 verse 18 in bhagvad gita ?
विद्याविनयसम्पन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि | शुनि चैव श्वपाके च पण्डिता: समदर्शिन: ॥18॥ |
इहैव तैर्जित: सर्गो येषां साम्ये स्थितं मन: | निर्दोषं हि समं ब्रह्म तस्माद् ब्रह्मणि ते स्थिता: ॥19॥ | what is chapter 5 verse 19 in bhagvad gita ? | what is chapter 5 verse 19 in bhagvad gita ?
इहैव तैर्जित: सर्गो येषां साम्ये स्थितं मन: | निर्दोषं हि समं ब्रह्म तस्माद् ब्रह्मणि ते स्थिता: ॥19॥ |
न प्रहृष्येत्प्रियं प्राप्य नोद्विजेत्प्राप्य चाप्रियम् | स्थिरबुद्धिरसम्मूढो ब्रह्मविद् ब्रह्मणि स्थित: ॥20॥ | what is chapter 5 verse 20 in bhagvad gita ? | what is chapter 5 verse 20 in bhagvad gita ?
न प्रहृष्येत्प्रियं प्राप्य नोद्विजेत्प्राप्य चाप्रियम् | स्थिरबुद्धिरसम्मूढो ब्रह्मविद् ब्रह्मणि स्थित: ॥20॥ |
बाह्यस्पर्शेष्वसक्तात्मा विन्दत्यात्मनि यत्सुखम् | स ब्रह्मयोगयुक्तात्मा सुखमक्षयमश्नुते ॥21॥ | what is chapter 5 verse 21 in bhagvad gita ? | what is chapter 5 verse 21 in bhagvad gita ?
बाह्यस्पर्शेष्वसक्तात्मा विन्दत्यात्मनि यत्सुखम् | स ब्रह्मयोगयुक्तात्मा सुखमक्षयमश्नुते ॥21॥ |
ये हि संस्पर्शजा भोगा दु:खयोनय एव ते | आद्यन्तवन्त: कौन्तेय न तेषु रमते बुध: ॥22॥ | what is chapter 5 verse 22 in bhagvad gita ? | what is chapter 5 verse 22 in bhagvad gita ?
ये हि संस्पर्शजा भोगा दु:खयोनय एव ते | आद्यन्तवन्त: कौन्तेय न तेषु रमते बुध: ॥22॥ |
शक्नोतीहैव य: सोढुं प्राक्शरीरविमोक्षणात् | कामक्रोधोद्भवं वेगं स युक्त: स सुखी नर: ॥23॥ | what is chapter 5 verse 23 in bhagvad gita ? | what is chapter 5 verse 23 in bhagvad gita ?
शक्नोतीहैव य: सोढुं प्राक्शरीरविमोक्षणात् | कामक्रोधोद्भवं वेगं स युक्त: स सुखी नर: ॥23॥ |
योऽन्त:सुखोऽन्तरारामस्तथान्तज्र्योतिरेव य: । स योगी ब्रह्मनिर्वाणं ब्रह्मभूतोऽधिगच्छति ।। २४।। | what is chapter 5 verse 24 in bhagvad gita ? | what is chapter 5 verse 24 in bhagvad gita ?
योऽन्त:सुखोऽन्तरारामस्तथान्तज्र्योतिरेव य: । स योगी ब्रह्मनिर्वाणं ब्रह्मभूतोऽधिगच्छति ।। २४।। |
लभन्ते ब्रह्मनिर्वाणमृषय: क्षीणकल्मषा: | छिन्नद्वैधा यतात्मान: सर्वभूतहिते रता: ॥25॥ | what is chapter 5 verse 25 in bhagvad gita ? | what is chapter 5 verse 25 in bhagvad gita ?
लभन्ते ब्रह्मनिर्वाणमृषय: क्षीणकल्मषा: | छिन्नद्वैधा यतात्मान: सर्वभूतहिते रता: ॥25॥ |
कामक्रोधवियुक्तानां यतीनां यतचेतसाम् | अभितो ब्रह्मनिर्वाणं वर्तते विदितात्मनाम् ॥26॥ | what is chapter 5 verse 26 in bhagvad gita ? | what is chapter 5 verse 26 in bhagvad gita ?
कामक्रोधवियुक्तानां यतीनां यतचेतसाम् | अभितो ब्रह्मनिर्वाणं वर्तते विदितात्मनाम् ॥26॥ |
स्पर्शान्कृत्वा बहिर्बाह्यांश्चक्षुश्चैवान्तरे भ्रुवो: | प्राणापानौ समौ कृत्वा नासाभ्यन्तरचारिणौ ॥27॥ यतेन्द्रियमनोबुद्धिर्मुनिर्मोक्षपरायण: | विगतेच्छाभयक्रोधो य: सदा मुक्त एव स: ॥28॥ | what is chapter 5 verse 27 in bhagvad gita ? | what is chapter 5 verse 27 in bhagvad gita ?
स्पर्शान्कृत्वा बहिर्बाह्यांश्चक्षुश्चैवान्तरे भ्रुवो: | प्राणापानौ समौ कृत्वा नासाभ्यन्तरचारिणौ ॥27॥ यतेन्द्रियमनोबुद्धिर्मुनिर्मोक्षपरायण: | विगतेच्छाभयक्रोधो य: सदा मुक्त एव स: ॥28॥ |
स्पर्शान्कृत्वा बहिर्बाह्यांश्चक्षुश्चैवान्तरे भ्रुवो: | प्राणापानौ समौ कृत्वा नासाभ्यन्तरचारिणौ ॥27॥ यतेन्द्रियमनोबुद्धिर्मुनिर्मोक्षपरायण: | विगतेच्छाभयक्रोधो य: सदा मुक्त एव स: ॥28॥ | what is chapter 5 verse 28 in bhagvad gita ? | what is chapter 5 verse 28 in bhagvad gita ?
स्पर्शान्कृत्वा बहिर्बाह्यांश्चक्षुश्चैवान्तरे भ्रुवो: | प्राणापानौ समौ कृत्वा नासाभ्यन्तरचारिणौ ॥27॥ यतेन्द्रियमनोबुद्धिर्मुनिर्मोक्षपरायण: | विगतेच्छाभयक्रोधो य: सदा मुक्त एव स: ॥28॥ |
भोक्तारं यज्ञतपसां सर्वलोकमहेश्वरम् | सुहृदं सर्वभूतानां ज्ञात्वा मां शान्तिमृच्छति ॥29॥ | what is chapter 5 verse 29 in bhagvad gita ? | what is chapter 5 verse 29 in bhagvad gita ?
भोक्तारं यज्ञतपसां सर्वलोकमहेश्वरम् | सुहृदं सर्वभूतानां ज्ञात्वा मां शान्तिमृच्छति ॥29॥ |
श्रीभगवानुवाच | अनाश्रित: कर्मफलं कार्यं कर्म करोति य: | स संन्यासी च योगी च न निरग्निर्न चाक्रिय: ॥1॥ | what is chapter 6 verse 1 in bhagvad gita ? | what is chapter 6 verse 1 in bhagvad gita ?
श्रीभगवानुवाच | अनाश्रित: कर्मफलं कार्यं कर्म करोति य: | स संन्यासी च योगी च न निरग्निर्न चाक्रिय: ॥1॥ |
यं संन्यासमिति प्राहुर्योगं तं विद्धि पाण्डव | न ह्यसंन्यस्तसङ्कल्पो योगी भवति कश्चन ॥2॥ | what is chapter 6 verse 2 in bhagvad gita ? | what is chapter 6 verse 2 in bhagvad gita ?
यं संन्यासमिति प्राहुर्योगं तं विद्धि पाण्डव | न ह्यसंन्यस्तसङ्कल्पो योगी भवति कश्चन ॥2॥ |
आरुरुक्षोर्मुनेर्योगं कर्म कारणमुच्यते | योगारूढस्य तस्यैव शम: कारणमुच्यते ॥3॥ | what is chapter 6 verse 3 in bhagvad gita ? | what is chapter 6 verse 3 in bhagvad gita ?
आरुरुक्षोर्मुनेर्योगं कर्म कारणमुच्यते | योगारूढस्य तस्यैव शम: कारणमुच्यते ॥3॥ |
यदा हि नेन्द्रियार्थेषु न कर्मस्वनुषज्जते | सर्वसङ्कल्पसंन्यासी योगारूढस्तदोच्यते ॥4॥ | what is chapter 6 verse 4 in bhagvad gita ? | what is chapter 6 verse 4 in bhagvad gita ?
यदा हि नेन्द्रियार्थेषु न कर्मस्वनुषज्जते | सर्वसङ्कल्पसंन्यासी योगारूढस्तदोच्यते ॥4॥ |
उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत् | आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मन: ॥5॥ | what is chapter 6 verse 5 in bhagvad gita ? | what is chapter 6 verse 5 in bhagvad gita ?
उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत् | आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मन: ॥5॥ |
बन्धुरात्मात्मनस्तस्य येनात्मैवात्मना जित: | अनात्मनस्तु शत्रुत्वे वर्ते तात्मैव शत्रुवत् ॥6॥ | what is chapter 6 verse 6 in bhagvad gita ? | what is chapter 6 verse 6 in bhagvad gita ?
बन्धुरात्मात्मनस्तस्य येनात्मैवात्मना जित: | अनात्मनस्तु शत्रुत्वे वर्ते तात्मैव शत्रुवत् ॥6॥ |
जितात्मन: प्रशान्तस्य परमात्मा समाहित: | शीतोष्णसुखदु:खेषु तथा मानापमानयो: ॥7॥ | what is chapter 6 verse 7 in bhagvad gita ? | what is chapter 6 verse 7 in bhagvad gita ?
जितात्मन: प्रशान्तस्य परमात्मा समाहित: | शीतोष्णसुखदु:खेषु तथा मानापमानयो: ॥7॥ |
ज्ञानविज्ञानतृप्तात्मा कूटस्थो विजितेन्द्रिय: | युक्त इत्युच्यते योगी समलोष्टाश्मकाञ्चन: ॥8॥ | what is chapter 6 verse 8 in bhagvad gita ? | what is chapter 6 verse 8 in bhagvad gita ?
ज्ञानविज्ञानतृप्तात्मा कूटस्थो विजितेन्द्रिय: | युक्त इत्युच्यते योगी समलोष्टाश्मकाञ्चन: ॥8॥ |
सुहृन्मित्रार्युदासीनमध्यस्थद्वेष्यबन्धुषु | साधुष्वपि च पापेषु समबुद्धिर्विशिष्यते ॥9॥ | what is chapter 6 verse 9 in bhagvad gita ? | what is chapter 6 verse 9 in bhagvad gita ?
सुहृन्मित्रार्युदासीनमध्यस्थद्वेष्यबन्धुषु | साधुष्वपि च पापेषु समबुद्धिर्विशिष्यते ॥9॥ |
योगी युञ्जीत सततमात्मानं रहसि स्थित: | एकाकी यतचित्तात्मा निराशीरपरिग्रह: ॥10॥ | what is chapter 6 verse 10 in bhagvad gita ? | what is chapter 6 verse 10 in bhagvad gita ?
योगी युञ्जीत सततमात्मानं रहसि स्थित: | एकाकी यतचित्तात्मा निराशीरपरिग्रह: ॥10॥ |
शुचौ देशे प्रतिष्ठाप्य स्थिरमासनमात्मन: | नात्युच्छ्रितं नातिनीचं चैलाजिनकुशोत्तरम् ॥11॥ | what is chapter 6 verse 11 in bhagvad gita ? | what is chapter 6 verse 11 in bhagvad gita ?
शुचौ देशे प्रतिष्ठाप्य स्थिरमासनमात्मन: | नात्युच्छ्रितं नातिनीचं चैलाजिनकुशोत्तरम् ॥11॥ |
तत्रैकाग्रं मन: कृत्वा यतचित्तेन्द्रियक्रिय: | उपविश्यासने युञ्ज्याद्योगमात्मविशुद्धये ॥12॥ | what is chapter 6 verse 12 in bhagvad gita ? | what is chapter 6 verse 12 in bhagvad gita ?
तत्रैकाग्रं मन: कृत्वा यतचित्तेन्द्रियक्रिय: | उपविश्यासने युञ्ज्याद्योगमात्मविशुद्धये ॥12॥ |
समं कायशिरोग्रीवं धारयन्नचलं स्थिर: | सम्प्रेक्ष्य नासिकाग्रं स्वं दिशश्चानवलोकयन् ॥13॥ | what is chapter 6 verse 13 in bhagvad gita ? | what is chapter 6 verse 13 in bhagvad gita ?
समं कायशिरोग्रीवं धारयन्नचलं स्थिर: | सम्प्रेक्ष्य नासिकाग्रं स्वं दिशश्चानवलोकयन् ॥13॥ |
प्रशान्तात्मा विगतभीर्ब्रह्मचारिव्रते स्थित: | मन: संयम्य मच्चित्तो युक्त आसीत मत्पर: ॥14॥ | what is chapter 6 verse 14 in bhagvad gita ? | what is chapter 6 verse 14 in bhagvad gita ?
प्रशान्तात्मा विगतभीर्ब्रह्मचारिव्रते स्थित: | मन: संयम्य मच्चित्तो युक्त आसीत मत्पर: ॥14॥ |
युञ्जन्नेवं सदात्मानं योगी नियतमानस: | शान्तिं निर्वाणपरमां मत्संस्थामधिगच्छति ॥15॥ | what is chapter 6 verse 15 in bhagvad gita ? | what is chapter 6 verse 15 in bhagvad gita ?
युञ्जन्नेवं सदात्मानं योगी नियतमानस: | शान्तिं निर्वाणपरमां मत्संस्थामधिगच्छति ॥15॥ |
नात्यश्नतस्तु योगोऽस्ति न चैकान्तमनश्नत: | न चाति स्वप्नशीलस्य जाग्रतो नैव चार्जुन ॥16॥ | what is chapter 6 verse 16 in bhagvad gita ? | what is chapter 6 verse 16 in bhagvad gita ?
नात्यश्नतस्तु योगोऽस्ति न चैकान्तमनश्नत: | न चाति स्वप्नशीलस्य जाग्रतो नैव चार्जुन ॥16॥ |
युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु | युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दु:खहा ॥17॥ | what is chapter 6 verse 17 in bhagvad gita ? | what is chapter 6 verse 17 in bhagvad gita ?
युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु | युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दु:खहा ॥17॥ |
यदा विनियतं चित्तमात्मन्येवावतिष्ठते | नि:स्पृह: सर्वकामेभ्यो युक्त इत्युच्यते तदा ॥18॥ | what is chapter 6 verse 18 in bhagvad gita ? | what is chapter 6 verse 18 in bhagvad gita ?
यदा विनियतं चित्तमात्मन्येवावतिष्ठते | नि:स्पृह: सर्वकामेभ्यो युक्त इत्युच्यते तदा ॥18॥ |
यथा दीपो निवातस्थो नेङ्गते सोपमा स्मृता | योगिनो यतचित्तस्य युञ्जतो योगमात्मन: ॥19॥ | what is chapter 6 verse 19 in bhagvad gita ? | what is chapter 6 verse 19 in bhagvad gita ?
यथा दीपो निवातस्थो नेङ्गते सोपमा स्मृता | योगिनो यतचित्तस्य युञ्जतो योगमात्मन: ॥19॥ |
यत्रोपरमते चित्तं निरुद्धं योगसेवया | यत्र चैवात्मनात्मानं पश्यन्नात्मनि तुष्यति ॥20॥ | what is chapter 6 verse 20 in bhagvad gita ? | what is chapter 6 verse 20 in bhagvad gita ?
यत्रोपरमते चित्तं निरुद्धं योगसेवया | यत्र चैवात्मनात्मानं पश्यन्नात्मनि तुष्यति ॥20॥ |
सुखमात्यन्तिकं यत्तद्बुद्धिग्राह्यमतीन्द्रियम् | वेत्ति यत्र न चैवायं स्थितश्चलति तत्वत: ॥21॥ | what is chapter 6 verse 21 in bhagvad gita ? | what is chapter 6 verse 21 in bhagvad gita ?
सुखमात्यन्तिकं यत्तद्बुद्धिग्राह्यमतीन्द्रियम् | वेत्ति यत्र न चैवायं स्थितश्चलति तत्वत: ॥21॥ |
यं लब्ध्वा चापरं लाभं मन्यते नाधिकं तत: | यस्मिन्स्थितो न दु:खेन गुरुणापि विचाल्यते ॥22॥ | what is chapter 6 verse 22 in bhagvad gita ? | what is chapter 6 verse 22 in bhagvad gita ?
यं लब्ध्वा चापरं लाभं मन्यते नाधिकं तत: | यस्मिन्स्थितो न दु:खेन गुरुणापि विचाल्यते ॥22॥ |
तं विद्याद् दु:खसंयोगवियोगं योगसञ्ज्ञितम् | स निश्चयेन योक्तव्यो योगोऽनिर्विण्णचेतसा ॥23॥ | what is chapter 6 verse 23 in bhagvad gita ? | what is chapter 6 verse 23 in bhagvad gita ?
तं विद्याद् दु:खसंयोगवियोगं योगसञ्ज्ञितम् | स निश्चयेन योक्तव्यो योगोऽनिर्विण्णचेतसा ॥23॥ |
सङ्कल्पप्रभवान्कामांस्त्यक्त्वा सर्वानशेषत: | मनसैवेन्द्रियग्रामं विनियम्य समन्तत: ॥24॥ | what is chapter 6 verse 24 in bhagvad gita ? | what is chapter 6 verse 24 in bhagvad gita ?
सङ्कल्पप्रभवान्कामांस्त्यक्त्वा सर्वानशेषत: | मनसैवेन्द्रियग्रामं विनियम्य समन्तत: ॥24॥ |
शनै: शनैरुपरमेद्बुद्ध्या धृतिगृहीतया | आत्मसंस्थं मन: कृत्वा न किञ्चिदपि चिन्तयेत् ॥25॥ | what is chapter 6 verse 25 in bhagvad gita ? | what is chapter 6 verse 25 in bhagvad gita ?
शनै: शनैरुपरमेद्बुद्ध्या धृतिगृहीतया | आत्मसंस्थं मन: कृत्वा न किञ्चिदपि चिन्तयेत् ॥25॥ |
यतो यतो निश्चरति मनश्चञ्चलमस्थिरम् | ततस्ततो नियम्यैतदात्मन्येव वशं नयेत् ॥26॥ | what is chapter 6 verse 26 in bhagvad gita ? | what is chapter 6 verse 26 in bhagvad gita ?
यतो यतो निश्चरति मनश्चञ्चलमस्थिरम् | ततस्ततो नियम्यैतदात्मन्येव वशं नयेत् ॥26॥ |
प्रशान्तमनसं ह्येनं योगिनं सुखमुत्तमम् | उपैति शान्तरजसं ब्रह्मभूतमकल्मषम् ॥27॥ | what is chapter 6 verse 27 in bhagvad gita ? | what is chapter 6 verse 27 in bhagvad gita ?
प्रशान्तमनसं ह्येनं योगिनं सुखमुत्तमम् | उपैति शान्तरजसं ब्रह्मभूतमकल्मषम् ॥27॥ |
युञ्जन्नेवं सदात्मानं योगी विगतकल्मष: | सुखेन ब्रह्मसंस्पर्शमत्यन्तं सुखमश्नुते ॥28॥ | what is chapter 6 verse 28 in bhagvad gita ? | what is chapter 6 verse 28 in bhagvad gita ?
युञ्जन्नेवं सदात्मानं योगी विगतकल्मष: | सुखेन ब्रह्मसंस्पर्शमत्यन्तं सुखमश्नुते ॥28॥ |
सर्वभूतस्थमात्मानं सर्वभूतानि चात्मनि | ईक्षते योगयुक्तात्मा सर्वत्र समदर्शन: ॥29॥ | what is chapter 6 verse 29 in bhagvad gita ? | what is chapter 6 verse 29 in bhagvad gita ?
सर्वभूतस्थमात्मानं सर्वभूतानि चात्मनि | ईक्षते योगयुक्तात्मा सर्वत्र समदर्शन: ॥29॥ |
यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति | तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति ॥30॥ | what is chapter 6 verse 30 in bhagvad gita ? | what is chapter 6 verse 30 in bhagvad gita ?
यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति | तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति ॥30॥ |
सर्वभूतस्थितं यो मां भजत्येकत्वमास्थित: | सर्वथा वर्तमानोऽपि स योगी मयि वर्तते ॥31॥ | what is chapter 6 verse 31 in bhagvad gita ? | what is chapter 6 verse 31 in bhagvad gita ?
सर्वभूतस्थितं यो मां भजत्येकत्वमास्थित: | सर्वथा वर्तमानोऽपि स योगी मयि वर्तते ॥31॥ |
आत्मौपम्येन सर्वत्र समं पश्यति योऽर्जुन | सुखं वा यदि वा दु:खं स योगी परमो मत: ॥32॥ | what is chapter 6 verse 32 in bhagvad gita ? | what is chapter 6 verse 32 in bhagvad gita ?
आत्मौपम्येन सर्वत्र समं पश्यति योऽर्जुन | सुखं वा यदि वा दु:खं स योगी परमो मत: ॥32॥ |
अर्जुन उवाच | योऽयं योगस्त्वया प्रोक्त: साम्येन मधुसूदन | एतस्याहं न पश्यामि चञ्चलत्वात्स्थितिं स्थिराम् ॥33॥ | what is chapter 6 verse 33 in bhagvad gita ? | what is chapter 6 verse 33 in bhagvad gita ?
अर्जुन उवाच | योऽयं योगस्त्वया प्रोक्त: साम्येन मधुसूदन | एतस्याहं न पश्यामि चञ्चलत्वात्स्थितिं स्थिराम् ॥33॥ |
चञ्चलं हि मन: कृष्ण प्रमाथि बलवद्दृढम् | तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम् ॥34॥ | what is chapter 6 verse 34 in bhagvad gita ? | what is chapter 6 verse 34 in bhagvad gita ?
चञ्चलं हि मन: कृष्ण प्रमाथि बलवद्दृढम् | तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम् ॥34॥ |
श्रीभगवानुवाच | असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम् | अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते ॥35॥ | what is chapter 6 verse 35 in bhagvad gita ? | what is chapter 6 verse 35 in bhagvad gita ?
श्रीभगवानुवाच | असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम् | अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते ॥35॥ |
असंयतात्मना योगो दुष्प्राप इति मे मति: | वश्यात्मना तु यतता शक्योऽवाप्तुमुपायत: ॥36॥ | what is chapter 6 verse 36 in bhagvad gita ? | what is chapter 6 verse 36 in bhagvad gita ?
असंयतात्मना योगो दुष्प्राप इति मे मति: | वश्यात्मना तु यतता शक्योऽवाप्तुमुपायत: ॥36॥ |
अर्जुन उवाच | अयति: श्रद्धयोपेतो योगाच्चलितमानस: | अप्राप्य योगसंसिद्धिं कां गतिं कृष्ण गच्छति ॥37॥ | what is chapter 6 verse 37 in bhagvad gita ? | what is chapter 6 verse 37 in bhagvad gita ?
अर्जुन उवाच | अयति: श्रद्धयोपेतो योगाच्चलितमानस: | अप्राप्य योगसंसिद्धिं कां गतिं कृष्ण गच्छति ॥37॥ |
कच्चिन्नोभयविभ्रष्टश्छिन्नाभ्रमिव नश्यति | अप्रतिष्ठो महाबाहो विमूढो ब्रह्मण: पथि ॥38॥ | what is chapter 6 verse 38 in bhagvad gita ? | what is chapter 6 verse 38 in bhagvad gita ?
कच्चिन्नोभयविभ्रष्टश्छिन्नाभ्रमिव नश्यति | अप्रतिष्ठो महाबाहो विमूढो ब्रह्मण: पथि ॥38॥ |
एतन्मे संशयं कृष्ण छेत्तुमर्हस्यशेषत: | त्वदन्य: संशयस्यास्य छेत्ता न ह्युपपद्यते ॥39॥ | what is chapter 6 verse 39 in bhagvad gita ? | what is chapter 6 verse 39 in bhagvad gita ?
एतन्मे संशयं कृष्ण छेत्तुमर्हस्यशेषत: | त्वदन्य: संशयस्यास्य छेत्ता न ह्युपपद्यते ॥39॥ |
श्रीभगवानुवाच | पार्थ नैवेह नामुत्र विनाशस्तस्य विद्यते | न हि कल्याणकृत्कश्चिद्दुर्गतिं तात गच्छति ॥40॥ | what is chapter 6 verse 40 in bhagvad gita ? | what is chapter 6 verse 40 in bhagvad gita ?
श्रीभगवानुवाच | पार्थ नैवेह नामुत्र विनाशस्तस्य विद्यते | न हि कल्याणकृत्कश्चिद्दुर्गतिं तात गच्छति ॥40॥ |
प्राप्य पुण्यकृतां लोकानुषित्वा शाश्वती: समा: | शुचीनां श्रीमतां गेहे योगभ्रष्टोऽभिजायते ॥41॥ | what is chapter 6 verse 41 in bhagvad gita ? | what is chapter 6 verse 41 in bhagvad gita ?
प्राप्य पुण्यकृतां लोकानुषित्वा शाश्वती: समा: | शुचीनां श्रीमतां गेहे योगभ्रष्टोऽभिजायते ॥41॥ |
अथवा योगिनामेव कुले भवति धीमताम् | एतद्धि दुर्लभतरं लोके जन्म यदीदृशम् ॥42॥ | what is chapter 6 verse 42 in bhagvad gita ? | what is chapter 6 verse 42 in bhagvad gita ?
अथवा योगिनामेव कुले भवति धीमताम् | एतद्धि दुर्लभतरं लोके जन्म यदीदृशम् ॥42॥ |
तत्र तं बुद्धिसंयोगं लभते पौर्वदेहिकम् | यतते च ततो भूय: संसिद्धौ कुरुनन्दन ॥43॥ | what is chapter 6 verse 43 in bhagvad gita ? | what is chapter 6 verse 43 in bhagvad gita ?
तत्र तं बुद्धिसंयोगं लभते पौर्वदेहिकम् | यतते च ततो भूय: संसिद्धौ कुरुनन्दन ॥43॥ |
पूर्वाभ्यासेन तेनैव ह्रियते ह्यवशोऽपि स: | जिज्ञासुरपि योगस्य शब्दब्रह्मातिवर्तते ॥44॥ | what is chapter 6 verse 44 in bhagvad gita ? | what is chapter 6 verse 44 in bhagvad gita ?
पूर्वाभ्यासेन तेनैव ह्रियते ह्यवशोऽपि स: | जिज्ञासुरपि योगस्य शब्दब्रह्मातिवर्तते ॥44॥ |
प्रयत्नाद्यतमानस्तु योगी संशुद्धकिल्बिष: | अनेकजन्मसंसिद्धस्ततो याति परां गतिम् ॥45॥ | what is chapter 6 verse 45 in bhagvad gita ? | what is chapter 6 verse 45 in bhagvad gita ?
प्रयत्नाद्यतमानस्तु योगी संशुद्धकिल्बिष: | अनेकजन्मसंसिद्धस्ततो याति परां गतिम् ॥45॥ |
तपस्विभ्योऽधिकोयोगी ज्ञानिभ्योऽपिमतोऽधिक:| कर्मिभ्यश्चाधिकोयोगी तस्माद्योगीभवार्जुन॥46॥ | what is chapter 6 verse 46 in bhagvad gita ? | what is chapter 6 verse 46 in bhagvad gita ?
तपस्विभ्योऽधिकोयोगी ज्ञानिभ्योऽपिमतोऽधिक:| कर्मिभ्यश्चाधिकोयोगी तस्माद्योगीभवार्जुन॥46॥ |
योगिनामपि सर्वेषां मद्गतेनान्तरात्मना | श्रद्धावान्भजते यो मां स मे युक्ततमो मत: ॥47॥ | what is chapter 6 verse 47 in bhagvad gita ? | what is chapter 6 verse 47 in bhagvad gita ?
योगिनामपि सर्वेषां मद्गतेनान्तरात्मना | श्रद्धावान्भजते यो मां स मे युक्ततमो मत: ॥47॥ |
श्रीभगवानुवाच | मय्यासक्तमना: पार्थ योगं युञ्जन्मदाश्रय: | असंशयं समग्रं मां यथा ज्ञास्यसि तच्छृणु ॥1॥ | what is chapter 7 verse 1 in bhagvad gita ? | what is chapter 7 verse 1 in bhagvad gita ?
श्रीभगवानुवाच | मय्यासक्तमना: पार्थ योगं युञ्जन्मदाश्रय: | असंशयं समग्रं मां यथा ज्ञास्यसि तच्छृणु ॥1॥ |
ज्ञानं तेऽहं सविज्ञानमिदं वक्ष्याम्यशेषत: | यज्ज्ञात्वा नेह भूयोऽन्यज्ज्ञातव्यमवशिष्यते ॥2॥ | what is chapter 7 verse 2 in bhagvad gita ? | what is chapter 7 verse 2 in bhagvad gita ?
ज्ञानं तेऽहं सविज्ञानमिदं वक्ष्याम्यशेषत: | यज्ज्ञात्वा नेह भूयोऽन्यज्ज्ञातव्यमवशिष्यते ॥2॥ |
मनुष्याणां सहस्रेषु कश्चिद्यतति सिद्धये | यततामपि सिद्धानां कश्चिन्मां वेत्ति तत्वत: ॥3॥ | what is chapter 7 verse 3 in bhagvad gita ? | what is chapter 7 verse 3 in bhagvad gita ?
मनुष्याणां सहस्रेषु कश्चिद्यतति सिद्धये | यततामपि सिद्धानां कश्चिन्मां वेत्ति तत्वत: ॥3॥ |
भूमिरापोऽनलो वायु: खं मनो बुद्धिरेव च | अहङ्कार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा ॥4॥ | what is chapter 7 verse 4 in bhagvad gita ? | what is chapter 7 verse 4 in bhagvad gita ?
भूमिरापोऽनलो वायु: खं मनो बुद्धिरेव च | अहङ्कार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा ॥4॥ |
अपरेयमितस्त्वन्यां प्रकृतिं विद्धि मे पराम् | जीवभूतां महाबाहो ययेदं धार्यते जगत् ॥5॥ | what is chapter 7 verse 5 in bhagvad gita ? | what is chapter 7 verse 5 in bhagvad gita ?
अपरेयमितस्त्वन्यां प्रकृतिं विद्धि मे पराम् | जीवभूतां महाबाहो ययेदं धार्यते जगत् ॥5॥ |
एतद्योनीनि भूतानि सर्वाणीत्युपधारय | अहं कृत्स्नस्य जगत: प्रभव: प्रलयस्तथा ॥6॥ | what is chapter 7 verse 6 in bhagvad gita ? | what is chapter 7 verse 6 in bhagvad gita ?
एतद्योनीनि भूतानि सर्वाणीत्युपधारय | अहं कृत्स्नस्य जगत: प्रभव: प्रलयस्तथा ॥6॥ |
मत्त: परतरं नान्यत्किञ्चिदस्ति धनञ्जय | मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव ॥7॥ | what is chapter 7 verse 7 in bhagvad gita ? | what is chapter 7 verse 7 in bhagvad gita ?
मत्त: परतरं नान्यत्किञ्चिदस्ति धनञ्जय | मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव ॥7॥ |
रसोऽहमप्सु कौन्तेय प्रभास्मि शशिसूर्ययो: | प्रणव: सर्ववेदेषु शब्द: खे पौरुषं नृषु ॥8॥ | what is chapter 7 verse 8 in bhagvad gita ? | what is chapter 7 verse 8 in bhagvad gita ?
रसोऽहमप्सु कौन्तेय प्रभास्मि शशिसूर्ययो: | प्रणव: सर्ववेदेषु शब्द: खे पौरुषं नृषु ॥8॥ |
पुण्यो गन्ध: पृथिव्यां च तेजश्चास्मि विभावसौ | जीवनं सर्वभूतेषु तपश्चास्मि तपस्विषु ॥9॥ | what is chapter 7 verse 9 in bhagvad gita ? | what is chapter 7 verse 9 in bhagvad gita ?
पुण्यो गन्ध: पृथिव्यां च तेजश्चास्मि विभावसौ | जीवनं सर्वभूतेषु तपश्चास्मि तपस्विषु ॥9॥ |
बीजं मां सर्वभूतानां विद्धि पार्थ सनातनम् | बुद्धिर्बुद्धिमतामस्मि तेजस्तेजस्विनामहम् ॥10॥ | what is chapter 7 verse 10 in bhagvad gita ? | what is chapter 7 verse 10 in bhagvad gita ?
बीजं मां सर्वभूतानां विद्धि पार्थ सनातनम् | बुद्धिर्बुद्धिमतामस्मि तेजस्तेजस्विनामहम् ॥10॥ |
बलं बलवतां चाहं कामरागविवर्जितम् | धर्माविरुद्धो भूतेषु कामोऽस्मि भरतर्षभ ॥11॥ | what is chapter 7 verse 11 in bhagvad gita ? | what is chapter 7 verse 11 in bhagvad gita ?
बलं बलवतां चाहं कामरागविवर्जितम् | धर्माविरुद्धो भूतेषु कामोऽस्मि भरतर्षभ ॥11॥ |
ये चैव सात्विका भावा राजसास्तामसाश्च ये | मत्त एवेति तान्विद्धि न त्वहं तेषु ते मयि ॥12॥ | what is chapter 7 verse 12 in bhagvad gita ? | what is chapter 7 verse 12 in bhagvad gita ?
ये चैव सात्विका भावा राजसास्तामसाश्च ये | मत्त एवेति तान्विद्धि न त्वहं तेषु ते मयि ॥12॥ |
त्रिभिर्गुणमयैर्भावैरेभि: सर्वमिदं जगत् | मोहितं नाभिजानाति मामेभ्य: परमव्ययम् ॥13॥ | what is chapter 7 verse 13 in bhagvad gita ? | what is chapter 7 verse 13 in bhagvad gita ?
त्रिभिर्गुणमयैर्भावैरेभि: सर्वमिदं जगत् | मोहितं नाभिजानाति मामेभ्य: परमव्ययम् ॥13॥ |
दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया | मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते ॥14॥ | what is chapter 7 verse 14 in bhagvad gita ? | what is chapter 7 verse 14 in bhagvad gita ?
दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया | मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते ॥14॥ |
न मां दुष्कृतिनो मूढा: प्रपद्यन्ते नराधमा: | माययापहृतज्ञाना आसुरं भावमाश्रिता: ॥15॥ | what is chapter 7 verse 15 in bhagvad gita ? | what is chapter 7 verse 15 in bhagvad gita ?
न मां दुष्कृतिनो मूढा: प्रपद्यन्ते नराधमा: | माययापहृतज्ञाना आसुरं भावमाश्रिता: ॥15॥ |
चतुर्विधा भजन्ते मां जना: सुकृतिनोऽर्जुन | आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी च भरतर्षभ ॥16॥ | what is chapter 7 verse 16 in bhagvad gita ? | what is chapter 7 verse 16 in bhagvad gita ?
चतुर्विधा भजन्ते मां जना: सुकृतिनोऽर्जुन | आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी च भरतर्षभ ॥16॥ |
तेषां ज्ञानी नित्ययुक्त एकभक्तिर्विशिष्यते | प्रियो हि ज्ञानिनोऽत्यर्थमहं स च मम प्रिय: ॥17॥ | what is chapter 7 verse 17 in bhagvad gita ? | what is chapter 7 verse 17 in bhagvad gita ?
तेषां ज्ञानी नित्ययुक्त एकभक्तिर्विशिष्यते | प्रियो हि ज्ञानिनोऽत्यर्थमहं स च मम प्रिय: ॥17॥ |
उदारा: सर्व एवैते ज्ञानी त्वात्मैव मे मतम् | आस्थित: स हि युक्तात्मा मामेवानुत्तमां गतिम् ॥18॥ | what is chapter 7 verse 18 in bhagvad gita ? | what is chapter 7 verse 18 in bhagvad gita ?
उदारा: सर्व एवैते ज्ञानी त्वात्मैव मे मतम् | आस्थित: स हि युक्तात्मा मामेवानुत्तमां गतिम् ॥18॥ |
बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते | वासुदेव: सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभ: ॥19॥ | what is chapter 7 verse 19 in bhagvad gita ? | what is chapter 7 verse 19 in bhagvad gita ?
बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते | वासुदेव: सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभ: ॥19॥ |
कामैस्तैस्तैर्हृतज्ञाना: प्रपद्यन्तेऽन्यदेवता: | तं तं नियममास्थाय प्रकृत्या नियता: स्वया ॥20॥ | what is chapter 7 verse 20 in bhagvad gita ? | what is chapter 7 verse 20 in bhagvad gita ?
कामैस्तैस्तैर्हृतज्ञाना: प्रपद्यन्तेऽन्यदेवता: | तं तं नियममास्थाय प्रकृत्या नियता: स्वया ॥20॥ |