Answer
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अध्यात्मज्ञाननित्यत्वं तत्वज्ञानार्थदर्शनम् | एतज्ज्ञानमिति प्रोक्तमज्ञानं यदतोऽन्यथा ॥12॥ | what is chapter 13 verse 12 in bhagvad gita ? | what is chapter 13 verse 12 in bhagvad gita ?
अध्यात्मज्ञाननित्यत्वं तत्वज्ञानार्थदर्शनम् | एतज्ज्ञानमिति प्रोक्तमज्ञानं यदतोऽन्यथा ॥12॥ |
ज्ञेयं यत्तत्प्रवक्ष्यामि यज्ज्ञात्वामृतमश्रुते | अनादिमत्परं ब्रह्म न सत्तन्नासदुच्यते ॥13॥ | what is chapter 13 verse 13 in bhagvad gita ? | what is chapter 13 verse 13 in bhagvad gita ?
ज्ञेयं यत्तत्प्रवक्ष्यामि यज्ज्ञात्वामृतमश्रुते | अनादिमत्परं ब्रह्म न सत्तन्नासदुच्यते ॥13॥ |
सर्वत: पाणिपादं तत्सर्वतोऽक्षिशिरोमुखम् | सर्वत: श्रुतिमल्लोके सर्वमावृत्य तिष्ठति ॥14॥ | what is chapter 13 verse 14 in bhagvad gita ? | what is chapter 13 verse 14 in bhagvad gita ?
सर्वत: पाणिपादं तत्सर्वतोऽक्षिशिरोमुखम् | सर्वत: श्रुतिमल्लोके सर्वमावृत्य तिष्ठति ॥14॥ |
सर्वेन्द्रियगुणाभासं सर्वेन्द्रियविवर्जितम् | असक्तं सर्वभृच्चैव निर्गुणं गुणभोक्तृ च ॥15॥ | what is chapter 13 verse 15 in bhagvad gita ? | what is chapter 13 verse 15 in bhagvad gita ?
सर्वेन्द्रियगुणाभासं सर्वेन्द्रियविवर्जितम् | असक्तं सर्वभृच्चैव निर्गुणं गुणभोक्तृ च ॥15॥ |
बहिरन्तश्च भूतानामचरं चरमेव च | सूक्ष्मत्वात्तदविज्ञेयं दूरस्थं चान्तिके च तत् ॥16॥ | what is chapter 13 verse 16 in bhagvad gita ? | what is chapter 13 verse 16 in bhagvad gita ?
बहिरन्तश्च भूतानामचरं चरमेव च | सूक्ष्मत्वात्तदविज्ञेयं दूरस्थं चान्तिके च तत् ॥16॥ |
अविभक्तं च भूतेषु विभक्तमिव च स्थितम् | भूतभर्तृ च तज्ज्ञेयं ग्रसिष्णु प्रभविष्णु च ॥17॥ | what is chapter 13 verse 17 in bhagvad gita ? | what is chapter 13 verse 17 in bhagvad gita ?
अविभक्तं च भूतेषु विभक्तमिव च स्थितम् | भूतभर्तृ च तज्ज्ञेयं ग्रसिष्णु प्रभविष्णु च ॥17॥ |
ज्योतिषामपि तज्ज्योतिस्तमस: परमुच्यते | ज्ञानं ज्ञेयं ज्ञानगम्यं हृदि सर्वस्य विष्ठितम् ॥18॥ | what is chapter 13 verse 18 in bhagvad gita ? | what is chapter 13 verse 18 in bhagvad gita ?
ज्योतिषामपि तज्ज्योतिस्तमस: परमुच्यते | ज्ञानं ज्ञेयं ज्ञानगम्यं हृदि सर्वस्य विष्ठितम् ॥18॥ |
इति क्षेत्रं तथा ज्ञानं ज्ञेयं चोक्तं समासत: | मद्भक्त एतद्विज्ञाय मद्भावायोपपद्यते ॥19॥ | what is chapter 13 verse 19 in bhagvad gita ? | what is chapter 13 verse 19 in bhagvad gita ?
इति क्षेत्रं तथा ज्ञानं ज्ञेयं चोक्तं समासत: | मद्भक्त एतद्विज्ञाय मद्भावायोपपद्यते ॥19॥ |
प्रकृतिं पुरुषं चैव विद्ध्यनादी उभावपि | विकारांश्च गुणांश्चैव विद्धि प्रकृतिसम्भवान् ॥20॥ | what is chapter 13 verse 20 in bhagvad gita ? | what is chapter 13 verse 20 in bhagvad gita ?
प्रकृतिं पुरुषं चैव विद्ध्यनादी उभावपि | विकारांश्च गुणांश्चैव विद्धि प्रकृतिसम्भवान् ॥20॥ |
कार्यकारणकर्तृत्वे हेतु: प्रकृतिरुच्यते | पुरुष: सुखदु:खानां भोक्तृत्वे हेतुरुच्यते ॥21॥ | what is chapter 13 verse 21 in bhagvad gita ? | what is chapter 13 verse 21 in bhagvad gita ?
कार्यकारणकर्तृत्वे हेतु: प्रकृतिरुच्यते | पुरुष: सुखदु:खानां भोक्तृत्वे हेतुरुच्यते ॥21॥ |
पुरुष: प्रकृतिस्थो हि भुङक्ते प्रकृतिजान्गुणान् | कारणं गुणसङ्गोऽस्य सदसद्योनिजन्मसु ॥22॥ | what is chapter 13 verse 22 in bhagvad gita ? | what is chapter 13 verse 22 in bhagvad gita ?
पुरुष: प्रकृतिस्थो हि भुङक्ते प्रकृतिजान्गुणान् | कारणं गुणसङ्गोऽस्य सदसद्योनिजन्मसु ॥22॥ |
उपद्रष्टानुमन्ता च भर्ता भोक्ता महेश्वर: | परमात्मेति चाप्युक्तो देहेऽस्मिन्पुरुष: पर: ॥23॥ | what is chapter 13 verse 23 in bhagvad gita ? | what is chapter 13 verse 23 in bhagvad gita ?
उपद्रष्टानुमन्ता च भर्ता भोक्ता महेश्वर: | परमात्मेति चाप्युक्तो देहेऽस्मिन्पुरुष: पर: ॥23॥ |
य एवं वेत्ति पुरुषं प्रकृतिं च गुणै: सह | सर्वथा वर्तमानोऽपि न स भूयोऽभिजायते ॥24॥ | what is chapter 13 verse 24 in bhagvad gita ? | what is chapter 13 verse 24 in bhagvad gita ?
य एवं वेत्ति पुरुषं प्रकृतिं च गुणै: सह | सर्वथा वर्तमानोऽपि न स भूयोऽभिजायते ॥24॥ |
ध्यानेनात्मनि पश्यन्ति केचिदात्मानमात्मना | अन्ये साङ् ख्येन योगेन कर्मयोगेन चापरे ॥25॥ | what is chapter 13 verse 25 in bhagvad gita ? | what is chapter 13 verse 25 in bhagvad gita ?
ध्यानेनात्मनि पश्यन्ति केचिदात्मानमात्मना | अन्ये साङ् ख्येन योगेन कर्मयोगेन चापरे ॥25॥ |
अन्ये त्वेवमजानन्त: श्रुत्वान्येभ्य उपासते | तेऽपि चातितरन्त्येव मृत्युं श्रुतिपरायणा: ॥26॥ | what is chapter 13 verse 26 in bhagvad gita ? | what is chapter 13 verse 26 in bhagvad gita ?
अन्ये त्वेवमजानन्त: श्रुत्वान्येभ्य उपासते | तेऽपि चातितरन्त्येव मृत्युं श्रुतिपरायणा: ॥26॥ |
यावत्सञ्जायते किञ्चित्सत्वं स्थावरजङ्गमम् | क्षेत्रक्षेत्रज्ञसंयोगात्तद्विद्धि भरतर्षभ ॥27॥ | what is chapter 13 verse 27 in bhagvad gita ? | what is chapter 13 verse 27 in bhagvad gita ?
यावत्सञ्जायते किञ्चित्सत्वं स्थावरजङ्गमम् | क्षेत्रक्षेत्रज्ञसंयोगात्तद्विद्धि भरतर्षभ ॥27॥ |
समं सर्वेषु भूतेषु तिष्ठन्तं परमेश्वरम् | विनश्यत्स्वविनश्यन्तं य: पश्यति स पश्यति ॥28॥ | what is chapter 13 verse 28 in bhagvad gita ? | what is chapter 13 verse 28 in bhagvad gita ?
समं सर्वेषु भूतेषु तिष्ठन्तं परमेश्वरम् | विनश्यत्स्वविनश्यन्तं य: पश्यति स पश्यति ॥28॥ |
समं पश्यन्हि सर्वत्र समवस्थितमीश्वरम् | न हिनस्त्यात्मनात्मानं ततो याति परां गतिम् ॥29॥ | what is chapter 13 verse 29 in bhagvad gita ? | what is chapter 13 verse 29 in bhagvad gita ?
समं पश्यन्हि सर्वत्र समवस्थितमीश्वरम् | न हिनस्त्यात्मनात्मानं ततो याति परां गतिम् ॥29॥ |
प्रकृत्यैव च कर्माणि क्रियमाणानि सर्वश: | य: पश्यति तथात्मानमकर्तारं स पश्यति ॥30॥ | what is chapter 13 verse 30 in bhagvad gita ? | what is chapter 13 verse 30 in bhagvad gita ?
प्रकृत्यैव च कर्माणि क्रियमाणानि सर्वश: | य: पश्यति तथात्मानमकर्तारं स पश्यति ॥30॥ |
यदा भूतपृथग्भावमेकस्थमनुपश्यति | तत एव च विस्तारं ब्रह्म सम्पद्यते तदा ॥31॥ | what is chapter 13 verse 31 in bhagvad gita ? | what is chapter 13 verse 31 in bhagvad gita ?
यदा भूतपृथग्भावमेकस्थमनुपश्यति | तत एव च विस्तारं ब्रह्म सम्पद्यते तदा ॥31॥ |
अनादित्वान्निर्गुणत्वात्परमात्मायमव्यय: | शरीरस्थोऽपि कौन्तेय न करोति न लिप्यते ॥32॥ | what is chapter 13 verse 32 in bhagvad gita ? | what is chapter 13 verse 32 in bhagvad gita ?
अनादित्वान्निर्गुणत्वात्परमात्मायमव्यय: | शरीरस्थोऽपि कौन्तेय न करोति न लिप्यते ॥32॥ |
यथा सर्वगतं सौक्ष्म्यादाकाशं नोपलिप्यते | सर्वत्रावस्थितो देहे तथात्मा नोपलिप्यते ॥33॥ | what is chapter 13 verse 33 in bhagvad gita ? | what is chapter 13 verse 33 in bhagvad gita ?
यथा सर्वगतं सौक्ष्म्यादाकाशं नोपलिप्यते | सर्वत्रावस्थितो देहे तथात्मा नोपलिप्यते ॥33॥ |
यथा प्रकाशयत्येक: कृत्स्नं लोकमिमं रवि: | क्षेत्रं क्षेत्री तथा कृत्स्नं प्रकाशयति भारत ॥34॥ | what is chapter 13 verse 34 in bhagvad gita ? | what is chapter 13 verse 34 in bhagvad gita ?
यथा प्रकाशयत्येक: कृत्स्नं लोकमिमं रवि: | क्षेत्रं क्षेत्री तथा कृत्स्नं प्रकाशयति भारत ॥34॥ |
श्रीभगवानुवाच | परं भूय: प्रवक्ष्यामि ज्ञानानां ज्ञानमुत्तमम् | यज्ज्ञात्वा मुनय: सर्वे परां सिद्धिमितो गता: ॥1॥ | what is chapter 14 verse 1 in bhagvad gita ? | what is chapter 14 verse 1 in bhagvad gita ?
श्रीभगवानुवाच | परं भूय: प्रवक्ष्यामि ज्ञानानां ज्ञानमुत्तमम् | यज्ज्ञात्वा मुनय: सर्वे परां सिद्धिमितो गता: ॥1॥ |
इदं ज्ञानमुपाश्रित्य मम साधर्म्यमागता: | सर्गेऽपि नोपजायन्ते प्रलये न व्यथन्ति च ॥2॥ | what is chapter 14 verse 2 in bhagvad gita ? | what is chapter 14 verse 2 in bhagvad gita ?
इदं ज्ञानमुपाश्रित्य मम साधर्म्यमागता: | सर्गेऽपि नोपजायन्ते प्रलये न व्यथन्ति च ॥2॥ |
मम योनिर्महद् ब्रह्म तस्मिन्गर्भं दधाम्यहम् | सम्भव: सर्वभूतानां ततो भवति भारत ॥3॥ | what is chapter 14 verse 3 in bhagvad gita ? | what is chapter 14 verse 3 in bhagvad gita ?
मम योनिर्महद् ब्रह्म तस्मिन्गर्भं दधाम्यहम् | सम्भव: सर्वभूतानां ततो भवति भारत ॥3॥ |
सर्वयोनिषु कौन्तेय मूर्तय: सम्भवन्ति या: | तासां ब्रह्म महद्योनिरहं बीजप्रद: पिता ॥4॥ | what is chapter 14 verse 4 in bhagvad gita ? | what is chapter 14 verse 4 in bhagvad gita ?
सर्वयोनिषु कौन्तेय मूर्तय: सम्भवन्ति या: | तासां ब्रह्म महद्योनिरहं बीजप्रद: पिता ॥4॥ |
सत्वं रजस्तम इति गुणा: प्रकृतिसम्भवा: | निबध्नन्ति महाबाहो देहे देहिनमव्ययम् ॥5॥ | what is chapter 14 verse 5 in bhagvad gita ? | what is chapter 14 verse 5 in bhagvad gita ?
सत्वं रजस्तम इति गुणा: प्रकृतिसम्भवा: | निबध्नन्ति महाबाहो देहे देहिनमव्ययम् ॥5॥ |
तत्र सत्वं निर्मलत्वात्प्रकाशकमनामयम् | सुखसङ्गेन बध्नाति ज्ञानसङ्गेन चानघ ॥6॥ | what is chapter 14 verse 6 in bhagvad gita ? | what is chapter 14 verse 6 in bhagvad gita ?
तत्र सत्वं निर्मलत्वात्प्रकाशकमनामयम् | सुखसङ्गेन बध्नाति ज्ञानसङ्गेन चानघ ॥6॥ |
रजो रागात्मकं विद्धि तृष्णासङ्गसमुद्भवम् | तन्निबध्नाति कौन्तेय कर्मसङ्गेन देहिनम् ॥7॥ | what is chapter 14 verse 7 in bhagvad gita ? | what is chapter 14 verse 7 in bhagvad gita ?
रजो रागात्मकं विद्धि तृष्णासङ्गसमुद्भवम् | तन्निबध्नाति कौन्तेय कर्मसङ्गेन देहिनम् ॥7॥ |
तमस्त्वज्ञानजं विद्धि मोहनं सर्वदेहिनाम् | प्रमादालस्यनिद्राभिस्तन्निबध्नाति भारत ॥8॥ | what is chapter 14 verse 8 in bhagvad gita ? | what is chapter 14 verse 8 in bhagvad gita ?
तमस्त्वज्ञानजं विद्धि मोहनं सर्वदेहिनाम् | प्रमादालस्यनिद्राभिस्तन्निबध्नाति भारत ॥8॥ |
सत्वं सुखे सञ्जयति रज: कर्मणि भारत | ज्ञानमावृत्य तु तम: प्रमादे सञ्जयत्युत ॥9॥ | what is chapter 14 verse 9 in bhagvad gita ? | what is chapter 14 verse 9 in bhagvad gita ?
सत्वं सुखे सञ्जयति रज: कर्मणि भारत | ज्ञानमावृत्य तु तम: प्रमादे सञ्जयत्युत ॥9॥ |
रजस्तमश्चाभिभूय सत्वं भवति भारत | रज: सत्वं तमश्चैव तम: सत्वं रजस्तथा ॥10॥ | what is chapter 14 verse 10 in bhagvad gita ? | what is chapter 14 verse 10 in bhagvad gita ?
रजस्तमश्चाभिभूय सत्वं भवति भारत | रज: सत्वं तमश्चैव तम: सत्वं रजस्तथा ॥10॥ |
सर्वद्वारेषु देहेऽस्मिन्प्रकाश उपजायते | ज्ञानं यदा तदा विद्याद्विवृद्धं सत्वमित्युत ॥11॥ | what is chapter 14 verse 11 in bhagvad gita ? | what is chapter 14 verse 11 in bhagvad gita ?
सर्वद्वारेषु देहेऽस्मिन्प्रकाश उपजायते | ज्ञानं यदा तदा विद्याद्विवृद्धं सत्वमित्युत ॥11॥ |
लोभ: प्रवृत्तिरारम्भ: कर्मणामशम: स्पृहा | रजस्येतानि जायन्ते विवृद्धे भरतर्षभ ॥12॥ | what is chapter 14 verse 12 in bhagvad gita ? | what is chapter 14 verse 12 in bhagvad gita ?
लोभ: प्रवृत्तिरारम्भ: कर्मणामशम: स्पृहा | रजस्येतानि जायन्ते विवृद्धे भरतर्षभ ॥12॥ |
अप्रकाशोऽप्रवृत्तिश्च प्रमादो मोह एव च | तमस्येतानि जायन्ते विवृद्धे कुरुनन्दन ॥13॥ | what is chapter 14 verse 13 in bhagvad gita ? | what is chapter 14 verse 13 in bhagvad gita ?
अप्रकाशोऽप्रवृत्तिश्च प्रमादो मोह एव च | तमस्येतानि जायन्ते विवृद्धे कुरुनन्दन ॥13॥ |
यदा सत्वे प्रवृद्धे तु प्रलयं याति देहभृत् | तदोत्तमविदां लोकानमलान्प्रतिपद्यते ॥14॥ | what is chapter 14 verse 14 in bhagvad gita ? | what is chapter 14 verse 14 in bhagvad gita ?
यदा सत्वे प्रवृद्धे तु प्रलयं याति देहभृत् | तदोत्तमविदां लोकानमलान्प्रतिपद्यते ॥14॥ |
रजसि प्रलयं गत्वा कर्मसङ्गिषु जायते | तथा प्रलीनस्तमसि मूढयोनिषु जायते ॥15॥ | what is chapter 14 verse 15 in bhagvad gita ? | what is chapter 14 verse 15 in bhagvad gita ?
रजसि प्रलयं गत्वा कर्मसङ्गिषु जायते | तथा प्रलीनस्तमसि मूढयोनिषु जायते ॥15॥ |
कर्मण: सुकृतस्याहु: सात्विकं निर्मलं फलम् | रजसस्तु फलं दु:खमज्ञानं तमस: फलम् ॥16॥ | what is chapter 14 verse 16 in bhagvad gita ? | what is chapter 14 verse 16 in bhagvad gita ?
कर्मण: सुकृतस्याहु: सात्विकं निर्मलं फलम् | रजसस्तु फलं दु:खमज्ञानं तमस: फलम् ॥16॥ |
सत्वात्सञ्जायते ज्ञानं रजसो लोभ एव च | प्रमादमोहौ तमसो भवतोऽज्ञानमेव च ॥17॥ | what is chapter 14 verse 17 in bhagvad gita ? | what is chapter 14 verse 17 in bhagvad gita ?
सत्वात्सञ्जायते ज्ञानं रजसो लोभ एव च | प्रमादमोहौ तमसो भवतोऽज्ञानमेव च ॥17॥ |
ऊर्ध्वं गच्छन्ति सत्वस्था मध्ये तिष्ठन्ति राजसा: | जघन्यगुणवृत्तिस्था अधो गच्छन्ति तामसा: ॥18॥ | what is chapter 14 verse 18 in bhagvad gita ? | what is chapter 14 verse 18 in bhagvad gita ?
ऊर्ध्वं गच्छन्ति सत्वस्था मध्ये तिष्ठन्ति राजसा: | जघन्यगुणवृत्तिस्था अधो गच्छन्ति तामसा: ॥18॥ |
नान्यं गुणेभ्य: कर्तारं यदा द्रष्टानुपश्यति | गुणेभ्यश्च परं वेत्ति मद्भावं सोऽधिगच्छति ॥19॥ | what is chapter 14 verse 19 in bhagvad gita ? | what is chapter 14 verse 19 in bhagvad gita ?
नान्यं गुणेभ्य: कर्तारं यदा द्रष्टानुपश्यति | गुणेभ्यश्च परं वेत्ति मद्भावं सोऽधिगच्छति ॥19॥ |
गुणानेतानतीत्य त्रीन्देही देहसमुद्भवान् | जन्ममृत्युजरादु:खैर्विमुक्तोऽमृतमश्रुते ॥20॥ | what is chapter 14 verse 20 in bhagvad gita ? | what is chapter 14 verse 20 in bhagvad gita ?
गुणानेतानतीत्य त्रीन्देही देहसमुद्भवान् | जन्ममृत्युजरादु:खैर्विमुक्तोऽमृतमश्रुते ॥20॥ |
अर्जुन उवाच | कैर्लिङ्गैस्त्रीन्गुणानेतानतीतो भवति प्रभो | किमाचार: कथं चैतांस्त्रीन्गुणानतिवर्तते ॥21॥ | what is chapter 14 verse 21 in bhagvad gita ? | what is chapter 14 verse 21 in bhagvad gita ?
अर्जुन उवाच | कैर्लिङ्गैस्त्रीन्गुणानेतानतीतो भवति प्रभो | किमाचार: कथं चैतांस्त्रीन्गुणानतिवर्तते ॥21॥ |
श्रीभगवानुवाच | प्रकाशं च प्रवृत्तिं च मोहमेव च पाण्डव | न द्वेष्टि सम्प्रवृत्तानि न निवृत्तानि काङ् क्षति ॥22॥ | what is chapter 14 verse 22 in bhagvad gita ? | what is chapter 14 verse 22 in bhagvad gita ?
श्रीभगवानुवाच | प्रकाशं च प्रवृत्तिं च मोहमेव च पाण्डव | न द्वेष्टि सम्प्रवृत्तानि न निवृत्तानि काङ् क्षति ॥22॥ |
उदासीनवदासीनो गुणैर्यो न विचाल्यते | गुणा वर्तन्त इत्येवं योऽवतिष्ठति नेङ्गते ॥23॥ | what is chapter 14 verse 23 in bhagvad gita ? | what is chapter 14 verse 23 in bhagvad gita ?
उदासीनवदासीनो गुणैर्यो न विचाल्यते | गुणा वर्तन्त इत्येवं योऽवतिष्ठति नेङ्गते ॥23॥ |
समदु:खसुख: स्वस्थ: समलोष्टाश्मकाञ्चन: | तुल्यप्रियाप्रियो धीरस्तुल्यनिन्दात्मसंस्तुति: ॥24॥ | what is chapter 14 verse 24 in bhagvad gita ? | what is chapter 14 verse 24 in bhagvad gita ?
समदु:खसुख: स्वस्थ: समलोष्टाश्मकाञ्चन: | तुल्यप्रियाप्रियो धीरस्तुल्यनिन्दात्मसंस्तुति: ॥24॥ |
मानापमानयोस्तुल्यस्तुल्यो मित्रारिपक्षयो: | सर्वारम्भपरित्यागी गुणातीत: स उच्यते ॥25॥ | what is chapter 14 verse 25 in bhagvad gita ? | what is chapter 14 verse 25 in bhagvad gita ?
मानापमानयोस्तुल्यस्तुल्यो मित्रारिपक्षयो: | सर्वारम्भपरित्यागी गुणातीत: स उच्यते ॥25॥ |
मां च योऽव्यभिचारेण भक्तियोगेन सेवते | स गुणान्समतीत्यैतान्ब्रह्मभूयाय कल्पते ॥26॥ | what is chapter 14 verse 26 in bhagvad gita ? | what is chapter 14 verse 26 in bhagvad gita ?
मां च योऽव्यभिचारेण भक्तियोगेन सेवते | स गुणान्समतीत्यैतान्ब्रह्मभूयाय कल्पते ॥26॥ |
ब्रह्मणो हि प्रतिष्ठाहममृतस्याव्ययस्य च | शाश्वतस्य च धर्मस्य सुखस्यैकान्तिकस्य च ॥27॥ | what is chapter 14 verse 27 in bhagvad gita ? | what is chapter 14 verse 27 in bhagvad gita ?
ब्रह्मणो हि प्रतिष्ठाहममृतस्याव्ययस्य च | शाश्वतस्य च धर्मस्य सुखस्यैकान्तिकस्य च ॥27॥ |
श्रीभगवानुवाच | ऊर्ध्वमूलमध:शाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम् | छन्दांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित् ॥1॥ | what is chapter 15 verse 1 in bhagvad gita ? | what is chapter 15 verse 1 in bhagvad gita ?
श्रीभगवानुवाच | ऊर्ध्वमूलमध:शाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम् | छन्दांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित् ॥1॥ |
अधश्चोर्ध्वं प्रसृतास्तस्य शाखा गुणप्रवृद्धा विषयप्रवाला: | अधश्च मूलान्यनुसन्ततानि कर्मानुबन्धीनि मनुष्यलोके ॥2॥ | what is chapter 15 verse 2 in bhagvad gita ? | what is chapter 15 verse 2 in bhagvad gita ?
अधश्चोर्ध्वं प्रसृतास्तस्य शाखा गुणप्रवृद्धा विषयप्रवाला: | अधश्च मूलान्यनुसन्ततानि कर्मानुबन्धीनि मनुष्यलोके ॥2॥ |
न रूपमस्येह तथोपलभ्यते नान्तो न चादिर्न च सम्प्रतिष्ठा | अश्वत्थमेनं सुविरूढमूल मसङ्गशस्त्रेण दृढेन छित्वा ॥3॥ | what is chapter 15 verse 3 in bhagvad gita ? | what is chapter 15 verse 3 in bhagvad gita ?
न रूपमस्येह तथोपलभ्यते नान्तो न चादिर्न च सम्प्रतिष्ठा | अश्वत्थमेनं सुविरूढमूल मसङ्गशस्त्रेण दृढेन छित्वा ॥3॥ |
तत: पदं तत्परिमार्गितव्यं यस्मिन्गता न निवर्तन्ति भूय: | तमेव चाद्यं पुरुषं प्रपद्ये यत: प्रवृत्ति: प्रसृता पुराणी ॥4॥ | what is chapter 15 verse 4 in bhagvad gita ? | what is chapter 15 verse 4 in bhagvad gita ?
तत: पदं तत्परिमार्गितव्यं यस्मिन्गता न निवर्तन्ति भूय: | तमेव चाद्यं पुरुषं प्रपद्ये यत: प्रवृत्ति: प्रसृता पुराणी ॥4॥ |
निर्मानमोहा जितसङ्गदोषा अध्यात्मनित्या विनिवृत्तकामा: | द्वन्द्वैर्विमुक्ता: सुखदु:खसंज्ञै र्गच्छन्त्यमूढा: पदमव्ययं तत् ॥5॥ | what is chapter 15 verse 5 in bhagvad gita ? | what is chapter 15 verse 5 in bhagvad gita ?
निर्मानमोहा जितसङ्गदोषा अध्यात्मनित्या विनिवृत्तकामा: | द्वन्द्वैर्विमुक्ता: सुखदु:खसंज्ञै र्गच्छन्त्यमूढा: पदमव्ययं तत् ॥5॥ |
न तद्भासयते सूर्यो न शशाङ्को न पावक: | यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम ॥6॥ | what is chapter 15 verse 6 in bhagvad gita ? | what is chapter 15 verse 6 in bhagvad gita ?
न तद्भासयते सूर्यो न शशाङ्को न पावक: | यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम ॥6॥ |
ममैवांशो जीवलोके जीवभूत: सनातन: | मन:षष्ठानीन्द्रियाणि प्रकृतिस्थानि कर्षति ॥7॥ | what is chapter 15 verse 7 in bhagvad gita ? | what is chapter 15 verse 7 in bhagvad gita ?
ममैवांशो जीवलोके जीवभूत: सनातन: | मन:षष्ठानीन्द्रियाणि प्रकृतिस्थानि कर्षति ॥7॥ |
शरीरं यदवाप्नोति यच्चाप्युत्क्रामतीश्वर: | गृहीत्वैतानि संयाति वायुर्गन्धानिवाशयात् ॥8॥ | what is chapter 15 verse 8 in bhagvad gita ? | what is chapter 15 verse 8 in bhagvad gita ?
शरीरं यदवाप्नोति यच्चाप्युत्क्रामतीश्वर: | गृहीत्वैतानि संयाति वायुर्गन्धानिवाशयात् ॥8॥ |
श्रोत्रं चक्षु: स्पर्शनं च रसनं घ्राणमेव च | अधिष्ठाय मनश्चायं विषयानुपसेवते ॥9॥ | what is chapter 15 verse 9 in bhagvad gita ? | what is chapter 15 verse 9 in bhagvad gita ?
श्रोत्रं चक्षु: स्पर्शनं च रसनं घ्राणमेव च | अधिष्ठाय मनश्चायं विषयानुपसेवते ॥9॥ |
उत्क्रामन्तं स्थितं वापि भुञ्जानं वा गुणान्वितम् | विमूढा नानुपश्यन्ति पश्यन्ति ज्ञानचक्षुष: ॥10॥ | what is chapter 15 verse 10 in bhagvad gita ? | what is chapter 15 verse 10 in bhagvad gita ?
उत्क्रामन्तं स्थितं वापि भुञ्जानं वा गुणान्वितम् | विमूढा नानुपश्यन्ति पश्यन्ति ज्ञानचक्षुष: ॥10॥ |
यतन्तो योगिनश्चैनं पश्यन्त्यात्मन्यवस्थितम् | यतन्तोऽप्यकृतात्मानो नैनं पश्यन्त्यचेतस: ॥11॥ | what is chapter 15 verse 11 in bhagvad gita ? | what is chapter 15 verse 11 in bhagvad gita ?
यतन्तो योगिनश्चैनं पश्यन्त्यात्मन्यवस्थितम् | यतन्तोऽप्यकृतात्मानो नैनं पश्यन्त्यचेतस: ॥11॥ |
यदादित्यगतं तेजो जगद्भासयतेऽखिलम् | यच्चन्द्रमसि यच्चाग्नौ तत्तेजो विद्धि मामकम् ॥12॥ | what is chapter 15 verse 12 in bhagvad gita ? | what is chapter 15 verse 12 in bhagvad gita ?
यदादित्यगतं तेजो जगद्भासयतेऽखिलम् | यच्चन्द्रमसि यच्चाग्नौ तत्तेजो विद्धि मामकम् ॥12॥ |
गामाविश्य च भूतानि धारयाम्यहमोजसा | पुष्णामि चौषधी: सर्वा: सोमो भूत्वा रसात्मक: ॥13॥ | what is chapter 15 verse 13 in bhagvad gita ? | what is chapter 15 verse 13 in bhagvad gita ?
गामाविश्य च भूतानि धारयाम्यहमोजसा | पुष्णामि चौषधी: सर्वा: सोमो भूत्वा रसात्मक: ॥13॥ |
अहं वैश्वानरो भूत्वा प्राणिनां देहमाश्रित: | प्राणापानसमायुक्त: पचाम्यन्नं चतुर्विधम् ॥14॥ | what is chapter 15 verse 14 in bhagvad gita ? | what is chapter 15 verse 14 in bhagvad gita ?
अहं वैश्वानरो भूत्वा प्राणिनां देहमाश्रित: | प्राणापानसमायुक्त: पचाम्यन्नं चतुर्विधम् ॥14॥ |
सर्वस्य चाहं हृदि सन्निविष्टो मत्त: स्मृतिर्ज्ञानमपोहनं च | वेदैश्च सर्वैरहमेव वेद्यो वेदान्तकृद्वेदविदेव चाहम् ॥15॥ | what is chapter 15 verse 15 in bhagvad gita ? | what is chapter 15 verse 15 in bhagvad gita ?
सर्वस्य चाहं हृदि सन्निविष्टो मत्त: स्मृतिर्ज्ञानमपोहनं च | वेदैश्च सर्वैरहमेव वेद्यो वेदान्तकृद्वेदविदेव चाहम् ॥15॥ |
द्वाविमौ पुरुषौ लोके क्षरश्चाक्षर एव च | क्षर: सर्वाणि भूतानि कूटस्थोऽक्षर उच्यते ॥16॥ | what is chapter 15 verse 16 in bhagvad gita ? | what is chapter 15 verse 16 in bhagvad gita ?
द्वाविमौ पुरुषौ लोके क्षरश्चाक्षर एव च | क्षर: सर्वाणि भूतानि कूटस्थोऽक्षर उच्यते ॥16॥ |
उत्तम: पुरुषस्त्वन्य: परमात्मेत्युदाहृत: | यो लोकत्रयमाविश्य बिभर्त्यव्यय ईश्वर: ॥17॥ | what is chapter 15 verse 17 in bhagvad gita ? | what is chapter 15 verse 17 in bhagvad gita ?
उत्तम: पुरुषस्त्वन्य: परमात्मेत्युदाहृत: | यो लोकत्रयमाविश्य बिभर्त्यव्यय ईश्वर: ॥17॥ |
यस्मात्क्षरमतीतोऽहमक्षरादपि चोत्तम: | अतोऽस्मि लोके वेदे च प्रथित: पुरुषोत्तम: ॥18॥ | what is chapter 15 verse 18 in bhagvad gita ? | what is chapter 15 verse 18 in bhagvad gita ?
यस्मात्क्षरमतीतोऽहमक्षरादपि चोत्तम: | अतोऽस्मि लोके वेदे च प्रथित: पुरुषोत्तम: ॥18॥ |
यो मामेवमसम्मूढो जानाति पुरुषोत्तमम् | स सर्वविद्भजति मां सर्वभावेन भारत ॥19॥ | what is chapter 15 verse 19 in bhagvad gita ? | what is chapter 15 verse 19 in bhagvad gita ?
यो मामेवमसम्मूढो जानाति पुरुषोत्तमम् | स सर्वविद्भजति मां सर्वभावेन भारत ॥19॥ |
इति गुह्यतमं शास्त्रमिदमुक्तं मयानघ | एतद्बुद्ध्वा बुद्धिमान्स्यात्कृतकृत्यश्च भारत ॥20॥ | what is chapter 15 verse 20 in bhagvad gita ? | what is chapter 15 verse 20 in bhagvad gita ?
इति गुह्यतमं शास्त्रमिदमुक्तं मयानघ | एतद्बुद्ध्वा बुद्धिमान्स्यात्कृतकृत्यश्च भारत ॥20॥ |
श्रीभगवानुवाच | अभयं सत्वसंशुद्धिर्ज्ञानयोगव्यवस्थिति: | दानं दमश्च यज्ञश्च स्वाध्यायस्तप आर्जवम् ॥1॥ | what is chapter 16 verse 1 in bhagvad gita ? | what is chapter 16 verse 1 in bhagvad gita ?
श्रीभगवानुवाच | अभयं सत्वसंशुद्धिर्ज्ञानयोगव्यवस्थिति: | दानं दमश्च यज्ञश्च स्वाध्यायस्तप आर्जवम् ॥1॥ |
अहिंसा सत्यमक्रोधस्त्याग: शान्तिरपैशुनम् | दया भूतेष्वलोलुप्त्वं मार्दवं ह्रीरचापलम् ॥2॥ | what is chapter 16 verse 2 in bhagvad gita ? | what is chapter 16 verse 2 in bhagvad gita ?
अहिंसा सत्यमक्रोधस्त्याग: शान्तिरपैशुनम् | दया भूतेष्वलोलुप्त्वं मार्दवं ह्रीरचापलम् ॥2॥ |
तेज: क्षमा धृति: शौचमद्रोहोनातिमानिता | भवन्ति सम्पदं दैवीमभिजातस्य भारत ॥3॥ | what is chapter 16 verse 3 in bhagvad gita ? | what is chapter 16 verse 3 in bhagvad gita ?
तेज: क्षमा धृति: शौचमद्रोहोनातिमानिता | भवन्ति सम्पदं दैवीमभिजातस्य भारत ॥3॥ |
दम्भो दर्पोऽभिमानश्च क्रोध: पारुष्यमेव च | अज्ञानं चाभिजातस्य पार्थ सम्पदमासुरीम् ॥4॥ | what is chapter 16 verse 4 in bhagvad gita ? | what is chapter 16 verse 4 in bhagvad gita ?
दम्भो दर्पोऽभिमानश्च क्रोध: पारुष्यमेव च | अज्ञानं चाभिजातस्य पार्थ सम्पदमासुरीम् ॥4॥ |
दैवी सम्पद्विमोक्षाय निबन्धायासुरी मता | मा शुच: सम्पदं दैवीमभिजातोऽसि पाण्डव ॥5॥ | what is chapter 16 verse 5 in bhagvad gita ? | what is chapter 16 verse 5 in bhagvad gita ?
दैवी सम्पद्विमोक्षाय निबन्धायासुरी मता | मा शुच: सम्पदं दैवीमभिजातोऽसि पाण्डव ॥5॥ |
द्वौ भूतसर्गौ लोकेऽस्मिन्दैव आसुर एव च | दैवो विस्तरश: प्रोक्त आसुरं पार्थ मे शृणु ॥6॥ | what is chapter 16 verse 6 in bhagvad gita ? | what is chapter 16 verse 6 in bhagvad gita ?
द्वौ भूतसर्गौ लोकेऽस्मिन्दैव आसुर एव च | दैवो विस्तरश: प्रोक्त आसुरं पार्थ मे शृणु ॥6॥ |
प्रवृत्तिं च निवृत्तिं च जना न विदुरासुरा: | न शौचं नापि चाचारो न सत्यं तेषु विद्यते ॥7॥ | what is chapter 16 verse 7 in bhagvad gita ? | what is chapter 16 verse 7 in bhagvad gita ?
प्रवृत्तिं च निवृत्तिं च जना न विदुरासुरा: | न शौचं नापि चाचारो न सत्यं तेषु विद्यते ॥7॥ |
असत्यमप्रतिष्ठं ते जगदाहुरनीश्वरम् | अपरस्परसम्भूतं किमन्यत्कामहैतुकम् ॥8॥ | what is chapter 16 verse 8 in bhagvad gita ? | what is chapter 16 verse 8 in bhagvad gita ?
असत्यमप्रतिष्ठं ते जगदाहुरनीश्वरम् | अपरस्परसम्भूतं किमन्यत्कामहैतुकम् ॥8॥ |
एतां दृष्टिमवष्टभ्य नष्टात्मानोऽल्पबुद्धय: | प्रभवन्त्युग्रकर्माण: क्षयाय जगतोऽहिता: ॥9॥ | what is chapter 16 verse 9 in bhagvad gita ? | what is chapter 16 verse 9 in bhagvad gita ?
एतां दृष्टिमवष्टभ्य नष्टात्मानोऽल्पबुद्धय: | प्रभवन्त्युग्रकर्माण: क्षयाय जगतोऽहिता: ॥9॥ |
काममाश्रित्य दुष्पूरं दम्भमानमदान्विता: | मोहाद्गृहीत्वासद्ग्राहान्प्रवर्तन्तेऽशुचिव्रता: ॥10॥ | what is chapter 16 verse 10 in bhagvad gita ? | what is chapter 16 verse 10 in bhagvad gita ?
काममाश्रित्य दुष्पूरं दम्भमानमदान्विता: | मोहाद्गृहीत्वासद्ग्राहान्प्रवर्तन्तेऽशुचिव्रता: ॥10॥ |
चिन्तामपरिमेयां च प्रलयान्तामुपाश्रिता: | कामोपभोगपरमा एतावदिति निश्चिता: ॥11॥ | what is chapter 16 verse 11 in bhagvad gita ? | what is chapter 16 verse 11 in bhagvad gita ?
चिन्तामपरिमेयां च प्रलयान्तामुपाश्रिता: | कामोपभोगपरमा एतावदिति निश्चिता: ॥11॥ |
आशापाशशतैर्बद्धा: कामक्रोधपरायणा: | ईहन्ते कामभोगार्थमन्यायेनार्थसञ्जयान् ॥12॥ | what is chapter 16 verse 12 in bhagvad gita ? | what is chapter 16 verse 12 in bhagvad gita ?
आशापाशशतैर्बद्धा: कामक्रोधपरायणा: | ईहन्ते कामभोगार्थमन्यायेनार्थसञ्जयान् ॥12॥ |
इदमद्य मया लब्धमिमं प्राप्स्ये मनोरथम् | इदमस्तीदमपि मे भविष्यति पुनर्धनम् ॥13॥ | what is chapter 16 verse 13 in bhagvad gita ? | what is chapter 16 verse 13 in bhagvad gita ?
इदमद्य मया लब्धमिमं प्राप्स्ये मनोरथम् | इदमस्तीदमपि मे भविष्यति पुनर्धनम् ॥13॥ |
असौ मया हत: शत्रुर्हनिष्ये चापरानपि | ईश्वरोऽहमहं भोगी सिद्धोऽहं बलवान्सुखी ॥14॥ | what is chapter 16 verse 14 in bhagvad gita ? | what is chapter 16 verse 14 in bhagvad gita ?
असौ मया हत: शत्रुर्हनिष्ये चापरानपि | ईश्वरोऽहमहं भोगी सिद्धोऽहं बलवान्सुखी ॥14॥ |
आढ्योऽभिजनवानस्मि कोऽन्योऽस्ति सदृशो मया | यक्ष्ये दास्यामि मोदिष्य इत्यज्ञानविमोहिता: ॥15॥ अनेकचित्तविभ्रान्ता मोहजालसमावृता: | प्रसक्ता: कामभोगेषु पतन्ति नरकेऽशुचौ ॥16॥ | what is chapter 16 verse 15 in bhagvad gita ? | what is chapter 16 verse 15 in bhagvad gita ?
आढ्योऽभिजनवानस्मि कोऽन्योऽस्ति सदृशो मया | यक्ष्ये दास्यामि मोदिष्य इत्यज्ञानविमोहिता: ॥15॥ अनेकचित्तविभ्रान्ता मोहजालसमावृता: | प्रसक्ता: कामभोगेषु पतन्ति नरकेऽशुचौ ॥16॥ |
आढ्योऽभिजनवानस्मि कोऽन्योऽस्ति सदृशो मया | यक्ष्ये दास्यामि मोदिष्य इत्यज्ञानविमोहिता: ॥15॥ अनेकचित्तविभ्रान्ता मोहजालसमावृता: | प्रसक्ता: कामभोगेषु पतन्ति नरकेऽशुचौ ॥16॥ | what is chapter 16 verse 16 in bhagvad gita ? | what is chapter 16 verse 16 in bhagvad gita ?
आढ्योऽभिजनवानस्मि कोऽन्योऽस्ति सदृशो मया | यक्ष्ये दास्यामि मोदिष्य इत्यज्ञानविमोहिता: ॥15॥ अनेकचित्तविभ्रान्ता मोहजालसमावृता: | प्रसक्ता: कामभोगेषु पतन्ति नरकेऽशुचौ ॥16॥ |
आत्मसम्भाविता: स्तब्धा धनमानमदान्विता: | यजन्ते नामयज्ञैस्ते दम्भेनाविधिपूर्वकम् ॥17॥ | what is chapter 16 verse 17 in bhagvad gita ? | what is chapter 16 verse 17 in bhagvad gita ?
आत्मसम्भाविता: स्तब्धा धनमानमदान्विता: | यजन्ते नामयज्ञैस्ते दम्भेनाविधिपूर्वकम् ॥17॥ |
अहङ्कारं बलं दर्पं कामं क्रोधं च संश्रिता: | मामात्मपरदेहेषु प्रद्विषन्तोऽभ्यसूयका: ॥18॥ | what is chapter 16 verse 18 in bhagvad gita ? | what is chapter 16 verse 18 in bhagvad gita ?
अहङ्कारं बलं दर्पं कामं क्रोधं च संश्रिता: | मामात्मपरदेहेषु प्रद्विषन्तोऽभ्यसूयका: ॥18॥ |
तानहं द्विषत: क्रूरान्संसारेषु नराधमान् | क्षिपाम्यजस्रमशुभानासुरीष्वेव योनिषु ॥19॥ | what is chapter 16 verse 19 in bhagvad gita ? | what is chapter 16 verse 19 in bhagvad gita ?
तानहं द्विषत: क्रूरान्संसारेषु नराधमान् | क्षिपाम्यजस्रमशुभानासुरीष्वेव योनिषु ॥19॥ |
आसुरीं योनिमापन्ना मूढा जन्मनि जन्मनि | मामप्राप्यैव कौन्तेय ततो यान्त्यधमां गतिम् ॥20॥ | what is chapter 16 verse 20 in bhagvad gita ? | what is chapter 16 verse 20 in bhagvad gita ?
आसुरीं योनिमापन्ना मूढा जन्मनि जन्मनि | मामप्राप्यैव कौन्तेय ततो यान्त्यधमां गतिम् ॥20॥ |
त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मन: | काम: क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत् ॥21॥ | what is chapter 16 verse 21 in bhagvad gita ? | what is chapter 16 verse 21 in bhagvad gita ?
त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मन: | काम: क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत् ॥21॥ |
एतैर्विमुक्त: कौन्तेय तमोद्वारैस्त्रिभिर्नर: | आचरत्यात्मन: श्रेयस्ततो याति परां गतिम् ॥22॥ | what is chapter 16 verse 22 in bhagvad gita ? | what is chapter 16 verse 22 in bhagvad gita ?
एतैर्विमुक्त: कौन्तेय तमोद्वारैस्त्रिभिर्नर: | आचरत्यात्मन: श्रेयस्ततो याति परां गतिम् ॥22॥ |
य: शास्त्रविधिमुत्सृज्य वर्तते कामकारत: | न स सिद्धिमवाप्नोति न सुखं न परां गतिम् ॥23॥ | what is chapter 16 verse 23 in bhagvad gita ? | what is chapter 16 verse 23 in bhagvad gita ?
य: शास्त्रविधिमुत्सृज्य वर्तते कामकारत: | न स सिद्धिमवाप्नोति न सुखं न परां गतिम् ॥23॥ |
तस्माच्छास्त्रं प्रमाणं ते कार्याकार्यव्यवस्थितौ | ज्ञात्वा शास्त्रविधानोक्तं कर्म कर्तुमिहार्हसि ॥24॥ | what is chapter 16 verse 24 in bhagvad gita ? | what is chapter 16 verse 24 in bhagvad gita ?
तस्माच्छास्त्रं प्रमाणं ते कार्याकार्यव्यवस्थितौ | ज्ञात्वा शास्त्रविधानोक्तं कर्म कर्तुमिहार्हसि ॥24॥ |
अर्जुन उवाच | ये शास्त्रविधिमुत्सृज्य यजन्ते श्रद्धयान्विता: | तेषां निष्ठा तु का कृष्ण सत्वमाहो रजस्तम: ॥1॥ | what is chapter 17 verse 1 in bhagvad gita ? | what is chapter 17 verse 1 in bhagvad gita ?
अर्जुन उवाच | ये शास्त्रविधिमुत्सृज्य यजन्ते श्रद्धयान्विता: | तेषां निष्ठा तु का कृष्ण सत्वमाहो रजस्तम: ॥1॥ |
श्रीभगवानुवाच | त्रिविधा भवति श्रद्धा देहिनां सा स्वभावजा | सात्विकी राजसी चैव तामसी चेति तां शृणु ॥2॥ | what is chapter 17 verse 2 in bhagvad gita ? | what is chapter 17 verse 2 in bhagvad gita ?
श्रीभगवानुवाच | त्रिविधा भवति श्रद्धा देहिनां सा स्वभावजा | सात्विकी राजसी चैव तामसी चेति तां शृणु ॥2॥ |
सत्वानुरूपा सर्वस्य श्रद्धा भवति भारत | श्रद्धामयोऽयं पुरुषो यो यच्छ्रद्ध: स एव स: ॥3॥ | what is chapter 17 verse 3 in bhagvad gita ? | what is chapter 17 verse 3 in bhagvad gita ?
सत्वानुरूपा सर्वस्य श्रद्धा भवति भारत | श्रद्धामयोऽयं पुरुषो यो यच्छ्रद्ध: स एव स: ॥3॥ |
यजन्ते सात्विका देवान्यक्षरक्षांसि राजसा: | प्रेतान्भूतगणांश्चान्ये यजन्ते तामसा जना: ॥4॥ | what is chapter 17 verse 4 in bhagvad gita ? | what is chapter 17 verse 4 in bhagvad gita ?
यजन्ते सात्विका देवान्यक्षरक्षांसि राजसा: | प्रेतान्भूतगणांश्चान्ये यजन्ते तामसा जना: ॥4॥ |
अशास्त्रविहितं घोरं तप्यन्ते ये तपो जना: | दम्भाहङ्कारसंयुक्ता: कामरागबलान्विता: ॥5॥ | what is chapter 17 verse 5 in bhagvad gita ? | what is chapter 17 verse 5 in bhagvad gita ?
अशास्त्रविहितं घोरं तप्यन्ते ये तपो जना: | दम्भाहङ्कारसंयुक्ता: कामरागबलान्विता: ॥5॥ |
कर्षयन्त: शरीरस्थं भूतग्राममचेतस: | मां चैवान्त:शरीरस्थं तान्विद्ध्यासुरनिश्चयान् ॥6॥ | what is chapter 17 verse 6 in bhagvad gita ? | what is chapter 17 verse 6 in bhagvad gita ?
कर्षयन्त: शरीरस्थं भूतग्राममचेतस: | मां चैवान्त:शरीरस्थं तान्विद्ध्यासुरनिश्चयान् ॥6॥ |